
Decision on Abbas Ansari hate speech case: राजनीति में भाषण एक हथियार होता है, लेकिन जब वही भाषण कानून की सीमाओं को पार कर जाए तो सजा तय होती है। ऐसा ही हुआ है मऊ के सदर विधायक अब्बास अंसारी के साथ, जिन्हें चुनावी रैली में नफरत फैलाने वाले भाषण और आचार संहिता के उल्लंघन का दोषी पाया गया है। मामला बीते विधानसभा चुनाव का है, लेकिन फैसला शनिवार को हुआ जिसने एक बार फिर से 'वोट के लिए जहर घोलने' की राजनीति को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
मऊ शहर कोतवाली में एसआई गंगाराम बिंद की तहरीर पर यह मामला दर्ज किया गया था। 3 मार्च 2022 को, सुभासपा प्रत्याशी अब्बास अंसारी ने चुनावी जनसभा के दौरान प्रशासन के खिलाफ तीखा और भड़काऊ बयान दिया था। उन्होंने खुले मंच से कहा था कि "चुनाव खत्म होने के बाद मऊ प्रशासन से हिसाब-किताब होगा और उन्हें सबक सिखाया जाएगा।" इस बयान को चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन और नफरत फैलाने वाली भाषा के तौर पर देखा गया।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) डॉ. केपी सिंह की अदालत में सुनवाई के बाद इस मामले में शनिवार को फैसला सुनाया गया। पक्ष और विपक्ष की दलीलों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने अब्बास अंसारी को दोषी करार दिया। मामले की अंतिम सुनवाई 31 मई को रखी गई थी, जिसमें अदालत ने सख्त रुख अपनाते हुए यह फैसला सुनाया।
यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति या पार्टी से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह पूरे राजनीतिक परिदृश्य को आईना दिखाता है। चुनावी माहौल में बढ़ती नफरती भाषाओं और धमकी भरे बयानों को अब कानून सख्ती से ले रहा है। अब्बास अंसारी के खिलाफ यह फैसला राजनीतिक दलों को एक चेतावनी भी है कि जनता को भड़काने वाली भाषा का इस्तेमाल अब सजा दिला सकता है।
अब्बास अंसारी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए (साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने), 171एफ (चुनाव अपराध) और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत कार्रवाई की जा सकती है। सजा का ऐलान अदालत की अगली कार्यवाही में किया जाएगा, लेकिन दोष सिद्ध होने के बाद उनकी विधायकी और राजनीतिक भविष्य पर भी प्रश्नचिह्न खड़े हो सकते हैं।
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