
लखनऊ: चाय, जो भारतीय घरों की सबसे प्रिय और लोकप्रिय मेहमाननवाजी का पेय है, अब एक गंभीर संकट में फंसती नजर आ रही है। चायपत्तियों में हो रही मिलावट और केमिकल्स के मिश्रण ने इसे संदेह के घेरे में डाल दिया है। लखनऊ और गोरखपुर में हो रहे चायपत्तियों के मिलावटी खेल ने स्थानीय बाजार को हिला कर रख दिया है। अब यह सवाल उठने लगा है कि कहीं हम जो चाय पी रहे हैं, वह चमड़ा रंगने वाली चाय तो नहीं?
लखनऊ और गोरखपुर में हाल ही में चायपत्तियों के मिलावटी कारोबार का खुलासा हुआ। एसटीएफ ने लखनऊ में एक गिरोह को पकड़ा था, जो चायपत्तियों में गेरू, हार्ड स्टोन पाउडर, और अन्य खतरनाक रसायन मिलाकर उसे अलग-अलग ब्रांड के पैकेटों में पैक कर प्रदेश भर में बेचते थे। इससे पहले गोरखपुर में चमड़ा रंगने वाला केमिकल मिलाकर चाय बेची जा रही थी। यही नहीं, मिलावटी चायपत्तियों की खपत मुख्य रूप से ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में ज्यादा हो रही है, जहां सस्ती और रंगतदार चाय की मांग बढ़ी है।
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मिलावटी चायपत्ती की पहचान करना अब आसान हो गया है। खाद्य सुरक्षा विभाग के मुताबिक, मिलावटी चायपत्तियों में छोटे-छोटे लाल रंग के कण दिखाई देते हैं। आप एक साधारण तरीका अपना सकते हैं - एक गिलास पानी में ब्रांडेड चायपत्ती डालें और दूसरे में मिलावटी चायपत्ती डालें। ब्रांडेड चायपत्ती धीरे-धीरे नीचे जाएगी और हल्का रंग निकलेगा, जबकि मिलावटी चायपत्ती तुरंत पानी को हल्का लाल कर देती है और तंग नीचे चली जाती है।
मिलावटी चायपत्तियों की बिक्री सस्ती होने की वजह से ज्यादा हो रही है। एक किलो सस्ती चायपत्ती 150-160 रुपये में मिल रही है, जबकि ब्रांडेड चायपत्तियों का 250 ग्राम पैकेट 120-140 रुपये में मिलता है। सस्ती चायपत्तियों से चाय का रंग गाढ़ा हो जाता है, और यह उस चाय की गुणवत्ता को छुपा देता है। हालांकि, यह स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक साबित हो सकता है, क्योंकि उसमें केमिकल और अन्य जहरीले तत्व मिलाए जाते हैं।
खाद्य सुरक्षा विभाग के अधिकारी धर्मराज मिश्र ने बताया कि विभाग लगातार चायपत्तियों की जांच कर रहा है। हाल ही में सात नमूने जांच के लिए भेजे गए थे, जिनमें से केवल दो नमूने असुरक्षित पाए गए थे। विभाग ने चेतावनी दी है कि मिलावटी चायपत्तियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी और बाजार में ऐसे उत्पादों की बिक्री पर निगरानी रखी जाएगी।\
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