
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) इस बार एक ऐतिहासिक पल की साक्षी बनने जा रही है। अपनी 149 साल की परंपरा में पहली बार यहां दिवाली उत्सव मनाया जाएगा। कुलपति प्रो. नईमा खातून ने इस आयोजन को अनुमति दे दी है। इस बार का दीपोत्सव न केवल रोशनी का पर्व होगा, बल्कि एकता, सौहार्द और भाईचारे का प्रतीक भी बनेगा।
दिवाली उत्सव रविवार शाम 4:30 बजे से यूनिवर्सिटी के नॉन-रेजिडेंट स्टूडेंट्स सेंटर (NRSC क्लब) में आयोजित होगा। कैंपस को 2100 मिट्टी के दीयों से सजाया जा रहा है। इस वर्ष की थीम “अंधकार पर प्रकाश की विजय” के अनुरूप पूरा परिसर दीपों और सजावट से आलोकित किया जाएगा। कैंपस में ग्रीन पटाखों से आतिशबाजी होगी ताकि पर्यावरण को कोई नुकसान न पहुंचे। इसके अलावा उत्सव के दौरान 21 किलो लड्डू और मिठाइयाँ छात्रों को वितरित की जाएँगी।
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इस अनूठे आयोजन का उद्देश्य केवल दीप जलाना नहीं, बल्कि एक भारत, श्रेष्ठ भारत की भावना को साकार करना है। हिंदू छात्र अपने हाथों से मुस्लिम और अन्य धर्मों के साथियों को मिठाई खिलाएंगे और मिलकर दीप जलाएंगे। उत्सव के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम, रंगोली प्रतियोगिता, लक्ष्मी-गणेश पूजा और संवाद सत्र भी होंगे। कुलपति प्रो. नईमा खातून को भी इस आयोजन में आमंत्रित किया गया है। आयोजन का संयोजन सोशल साइंस और मास कम्युनिकेशन विभाग के छात्रों द्वारा किया जा रहा है, जिनका नेतृत्व छात्र अखिल कौशल कर रहे हैं।
1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा स्थापित अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी लंबे समय से अपनी इस्लामी शैक्षिक परंपरा के लिए जानी जाती रही है। यहां अब तक केवल ईद और बकरीद जैसे पर्व ही मनाए जाते थे। लेकिन इस बार इतिहास बदल गया है — पहली बार विश्वविद्यालय प्रबंधन ने अन्य धर्मों के पर्व को कैंपस में मनाने की अनुमति दी है।
मार्च 2025 में छात्र अखिल कौशल ने पहली बार विश्वविद्यालय में होली मनाने की अनुमति मांगी थी, जो उस समय अस्वीकृत कर दी गई थी। बाद में भाजपा सांसद सतीश गौतम के हस्तक्षेप के बाद आंशिक अनुमति दी गई। इसी सिलसिले में अब दिवाली उत्सव की पूरी अनुमति मिलना एक बड़ा कदम माना जा रहा है, जिसे छात्र और शिक्षक दोनों “ऐतिहासिक निर्णय” बता रहे हैं।
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