जात-धर्म से ऊपर निकला मुस्लिम पति, हिंदू पत्नी को दी ऐसी विदाई जो बन गई मिसाल

Published : Jun 22, 2025, 12:25 PM IST
auraiya muslim man cremates hindu wife after burial refusal by community

सार

interfaith marriage funeral : औरैया में वाकर अली ने अपनी हिंदू पत्नी का अंतिम संस्कार हिंदू रीति से किया, जब मुस्लिम बिरादरी ने इनकार कर दिया। 30 साल के रिश्ते को सम्मान देते हुए, उन्होंने समाज को इंसानियत का पाठ पढ़ाया।

Muslim man Hindu wife cremation: मजहब से बड़ा इंसानियत का रिश्ता होता है, इस बात को औरैया के वाकर अली ने सच कर दिखाया। जब समाज ने साथ नहीं दिया, तब उन्होंने अपने जीवनसाथी के लिए वो रास्ता चुना जो शायद परंपरा से अलग था, लेकिन इंसानियत के बेहद करीब था।

बीमार पत्नी की मौत के बाद खड़ा हुआ धर्मसंकट

दिबियापुर थाना क्षेत्र के असेनी गांव में रहने वाले वाकर अली की पत्नी भागवती, जो कि हिंदू थीं, लंबी बीमारी के बाद 55 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वाकर ने परंपरागत रूप से पत्नी को मुस्लिम रीति से दफनाने की तैयारी की, लेकिन बिरादरी ने यह कहकर इनकार कर दिया कि "भागवती का निकाह नहीं हुआ था, इसलिए उसे कब्रिस्तान में नहीं दफनाया जा सकता।"

अपने ही समुदाय से नकारे जाने के बाद वाकर अली ने फैसला लिया कि वह अपनी पत्नी को उस रीति से अंतिम विदाई देंगे, जो उनकी पत्नी के मूल धर्म से जुड़ी थी। उन्होंने हिंदू समुदाय की मदद ली और पत्नी का अंतिम संस्कार मुक्तिधाम ले जाकर अग्नि संस्कार के रूप में किया।

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30 साल से साथ थे, नहीं देख पाए समाज की कठोरता

वाकर अली मूल रूप से रसूलाबाद थाना क्षेत्र के उसरी विला गांव के रहने वाले हैं, लेकिन पिछले 30 वर्षों से वे असेनी गांव में अपनी पत्नी के साथ रह रहे थे। उनका कहना है कि जब बेटे की मौत हुई थी तो उसे कब्रिस्तान में दफनाया गया था, लेकिन पत्नी को वही सम्मान नहीं मिल सका।

जब मुस्लिम बिरादरी ने अंतिम संस्कार में साथ नहीं दिया, तब गांव के हिंदू समुदाय के लोग आगे आए। उन्होंने न केवल वाकर अली की मदद की, बल्कि पूरी प्रक्रिया में उनका साथ भी दिया। भागवती का अंतिम संस्कार हिंदू धर्म के अनुसार श्मशान घाट में किया गया।

यह घटना केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं है, बल्कि समाज के सामने एक बड़ा प्रश्नचिह्न भी है। क्या किसी महिला का निकाह न होना उसकी अंतिम विदाई को रोक सकता है? क्या रिश्तों की गहराई मजहब से कमतर है? असेनी गांव और आसपास के क्षेत्रों में यह मामला चर्चा का विषय बना हुआ है। जहां एक ओर कुछ लोग वाकर अली के फैसले की सराहना कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग इसे धार्मिक नियमों का उल्लंघन मानते हैं।

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