Exclusive: राम के रंग में ऐसा रंगे रामफल कि छूटी गवर्नमेंट जॉब, मुस्लिमों की कारसेवा से इंस्पायर...रामनगरी के होकर रह गए

राममंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह से पहले जब एशियानेट न्यूज टीम अयोध्या पहुंची तो ऐसे किरदार भी मिले जो एक बार रामनगरी आएं तो यहीं के होकर रह गए। आइए जानते हैं उनकी रोचक कहानी।

Rajkumar Upadhyay | Published : Dec 18, 2023 7:47 AM IST / Updated: Dec 18 2023, 02:56 PM IST

अयोध्या। कहते हैं कि अयोध्या राम मंदिर का ऐतिहासिक और पौराणिक इतिहास शब्दों में समेटना संभव नहीं है। अब, 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी। यहां राम के रंग में रंगे ऐसे किरदार भी हैं, जो रामनगरी आएं तो फिर यहीं के होकर रह गए। बहराइच के रिसिया के रहने वाले रामफल प्रजापति ऐसे ही शख्स हैं, जो मुस्लिमों द्वारा पत्थरों की साफ-सफाई की खबर से इंस्‍पायर हुए और राम सेवा को जीवन समर्पित कर दिया।

एशियानेट न्‍यूज टीम जब राममंदिर के लिए बन रही मूर्तियों की निर्माण कार्यशाला राम कथा कुंज पहुंची तो एक बुजुर्ग (रामफल प्रजापति) श्रद्धालुओं से रजिस्टर में अपना कमेंट लिखने के लिए अनुरोध कर रहे थे। परिसर में भगवान राम के जन्म से लेकर महत्वपूर्ण घटनाओं को मूर्तियों के माध्यम से दर्शाया गया है। रामफल कहते हैं कि यहां पर मूर्तिया बनेंगी। जब राम मंदिर स्थापित हो जाएगा तो उसके चारो तरफ ये मूर्तियां रखी जाएंगी। ताकि जब भक्त रामलला के दर्शन कर उनकी परिक्रमा करें तो उनके सामने राम कथा इन्हीं मूर्तियों के जरिए एक बार फिर जीवंत हो।

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1984 में आए अयोध्या

रामफल प्रजापित कहते हैं कि 7 अक्टूबर 1984 का वह दिन था। जब श्रीराम जन्मभूमि का ताला खोलने का आंदोलन शुरु हुआ। सभी भक्त राम की पैड़ी पर इकट्ठा हुए। वहीं संकल्प लिया। फिर 7 दिन रथ चलकर लखनऊ पहुंचा। कोई निर्णय नहीं हो पाया तो संत बोलें कि आप लोग घर जाइए। फिर 2 दिसम्बर को दिल्ली के रामलीला ग्राउंड पर आने का निर्णय हुआ।

​डिग्री कॉलेज की नौकरी छूटी

रामफल गायत्री विद्यापीठ पीजी कॉलेज, रिसिया, बहराइच में वॉटरमैन के पद पर कार्यरत थे। वह कहते हैं कि ताला खुलने के बाद फिर राम सेवा के लिए अयोध्या आना चाहते थे। पर हमारे कॉलेज के प्रिंसिपल नहीं आने देते थे तो 3 अप्रैल 1987 की रात में किसी को बिना बताए वहां से अयोध्या भाग आया। इसका असर यह हुआ कि प्रिंसिपल ने मेरा इस्तीफा लिखकर लगा दिया। सरकारी नौकरी चली गई। इधर मैं तीन महीने राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख संत जगद्गुरु रामानन्दाचार्य शिवरामाचार्य के आश्रम में रहा। दुर्भाय से साल 1988 में वह नहीं रहे। उन्होंने आदेश दिया था कि राम कार्य करना है तो फिर राम काज में ही जुट गया।

बब्लू खान के काम से हुए इंस्पायर

रामफल कहते हैं कि राम जन्मभूमि के बगल में एक वट वृक्ष है। वहां रामायण का पाठ होता था। रात को 3 से 6 बजे तक हमारी ड्यूटी रामायण पाठ के लिए होती थी। फिर बीच-बीच में परिवार को देखने के लिए गांव भी जाने लगे। उनके आने-जाने का क्रम चलता रहा। 18 अक्टूबर 2018 को अखबार में एक खबर पढ़ी कि एक मुस्लिम बब्लू खान 100 मुस्लिम कारसेवकों के साथ राममंदिर के लिए तराशे जा पत्थरों में लगी काई को साफ करने के लिए कारसेवा करेंगें। यह खबर पढ़ने के बाद मुझे ग्लानि महसूस हुई और फिर मैं अयोध्या चला आया। तब से घर की तरफ पलटकर नहीं देखा। राम काज को ही जीवन समर्पित कर दिया।

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