बलिया (उत्तर प्रदेश). कहते हैं कि शिक्षा ज्ञान के लिए, काम जीवनयापन और खुशी के लिए होता है। ज़रूरी नहीं कि आपने जो पढ़ा है उसी क्षेत्र में काम करें। बी.टेक (B. Tech) करने वाला एक शख्स आज खेती के क्षेत्र में सफलता हासिल कर रहा है। उत्तर प्रदेश में एक सफल किसान के रूप में पहचाने जाने वाले दुष्यंत कुमार (Dushyant Kumar) सिंह ने बंगलौर में आयोजित एक कृषि कार्यक्रम के बाद अपनी राह बदली। कृषि विशेषज्ञ सुभाष पालेकर (Agriculture Expert Subhash Palekar) की बातों से प्रेरित होकर दुष्यंत कुमार सिंह ने नौकरी छोड़ खेती करना शुरू कर दिया। आज वो अपने खेतों में दो तरह के धान की खेती के साथ-साथ पशुपालन (Animal Husbandry) भी करते हैं और लाखों रुपये कमा रहे हैं।
दुष्यंत कुमार सिंह, उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बलिया ज़िले के बसंतपुर गाँव के रहने वाले हैं। बी.टेक करने के बाद वो बंगलौर आ गए। यहाँ एक निजी कंपनी में एक साल काम करने के बाद उन्हें इस काम में संतुष्टि नहीं मिली। उनका मन था कि वो अपने गाँव वापस जाकर खेती करें। साल 2017 में दुष्यंत कुमार सिंह ने बी.टेक की पढ़ाई पूरी की थी।
बंगलौर में आयोजित एक कार्यक्रम में दुष्यंत कुमार सिंह ने हिस्सा लिया। यहाँ उनकी मुलाक़ात कृषि विशेषज्ञ सुभाष पालेकर से हुई। सुभाष पालेकर से मिलने के बाद दुष्यंत की खेती में रुचि और बढ़ गई। सुभाष पालेकर के मार्गदर्शन में खेती शुरू करने के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। पालेकर की सलाह पर खेती में नई-नई तकनीकों का इस्तेमाल करके दुष्यंत कुमार उत्तर प्रदेश के एक सफल किसान बन गए।
इस साल की शुरुआत में दुष्यंत ने चार बीघा ज़मीन पर मनीला धान की रोपाई की थी। इसके अलावा उन्होंने 65 बीघा ज़मीन पर काला नमक किरण धान की खेती की है। पिछले चार साल से वो काला नमक किरण धान की खेती कर रहे हैं और इसी वजह से उन्हें पहचान मिली है। इस धान की काफ़ी माँग भी है। एक बीघा की खेती में लगभग 4,000 से 5,000 रुपये का खर्च आता है। एक बीघा में हुई फसल से दुष्यंत को लगभग 60,000 रुपये का मुनाफ़ा होता है। 65 बीघा से उन्हें 39 लाख रुपये तक की कमाई होने की उम्मीद है। इसके लिए उन्होंने लगभग 3 लाख रुपये खर्च किए हैं। बीघा ज़मीन मापने की एक पारंपरिक इकाई है। भारत, नेपाल समेत पड़ोसी देशों में ज़मीन को बीघा में मापा जाता है। एक बीघा 3/10 एकड़ के बराबर होता है।
दुष्यंत अपने खेतों में काला नमक के साथ-साथ मनीला धान की भी खेती करते हैं। मनीला धान को पानी कम चाहिए होता है। इसके अलावा, इसकी पैदावार प्रति हेक्टेयर 55 से 60 क्विंटल होती है। दुष्यंत प्राकृतिक खेती पर ज़ोर देते हैं। यही वजह है कि वो धान की खेती के साथ-साथ पशुपालन भी करते हैं। इससे उन्हें खाद बनाने में मदद मिलती है। दुष्यंत का कहना है कि ज़्यादा उत्पादन और मुनाफ़े के लिए जैविक खाद काफ़ी मददगार है।