
Nanaji Deshukh untold Story: भारतीय राजनीति में अक्सर कहा जाता है कि "राजनेता कभी संन्यास नहीं लेता", लेकिन कुछ नेता ऐसे भी हुए जिन्होंने पद और सत्ता की लालसा को त्यागकर समाज सेवा को प्राथमिकता दी। नानाजी देशमुख (Nanaji Deshmukh) उन्हीं में से एक थे। 15 साल पहले उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन जब भी राजनीति से संन्यास की बात होगी, उनका नाम जरूर लिया जाएगा।
80 के दशक में जब भारतीय राजनीति करवट ले रही थी, जेपी आंदोलन (JP Andolan) के बाद देश राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था। जनसंघ (Jansangh) से निकले नेता बीजेपी (BJP) को खड़ा करने में जुटे थे, और यूपी जैसे बड़े राज्य में पार्टी को सबसे ज्यादा जरूरत नानाजी देशमुख की थी। लेकिन तभी नानाजी ने राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया। यह फैसला बीजेपी के लिए किसी झटके (Political Shock) से कम नहीं था। राजनीति में जब राम के नाम पर सत्ता हासिल करने की होड़ लगी थी, तब नानाजी ने कहा – "मैं तो वनवासी राम की शरण में जा रहा हूं।" उन्होंने राजनीति को त्यागकर चित्रकूट (Chitrakoot) में समाज सेवा का मार्ग चुना।
संन्यास के बाद नानाजी चित्रकूट पहुंचे और वहां दीनदयाल शोध संस्थान (Deendayal Research Institute) की स्थापना की। उन्होंने ग्रामीण विकास को प्राथमिकता देते हुए चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय (Chitrakoot Gramodaya Vishwavidyalaya) की नींव रखी। यह विश्वविद्यालय आज भी ग्रामीण भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
1974 के जेपी आंदोलन (JP Andolan) के दौरान जब पटना (Patna) में लाठीचार्ज हुआ, तब नानाजी देशमुख जयप्रकाश नारायण (JP) के साथ थे। जब पुलिस ने हमला किया, तो नानाजी ने अपने बुजुर्ग नेता को बचाने के लिए खुद को उनके ऊपर डाल दिया। लाठियों की बौछार नानाजी पर पड़ी और उनका हाथ टूट गया, लेकिन उन्होंने जेपी पर आंच नहीं आने दी।
1977 में नानाजी देशमुख बलरामपुर (Balrampur) से सांसद बने। मोरारजी देसाई (Morarji Desai) के नेतृत्व में जनता पार्टी सरकार बनी और नानाजी को मंत्री बनाए जाने की पेशकश की गई, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया। उन्होंने कहा कि वे सरकार में शामिल होने की बजाय संगठन को मजबूत करेंगे।
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