एशियानेट न्यूज हिंदी क्राइम डायरी पर एक सीरीज चला रहा है। हम हर दिन यूपी के अलग-अलग जगहों के क्राइम केसों की हैरतअंगेज कहानी लेकर आएंगे। आज 04 मई, दिन गुरुवार को पढ़िए बाराबंकी जिले के क्राइम की एक अनसुलझी कहानी पूर्व IPS राजेश पांडे की जुबानी।
राजेश कुमार पांडेय। हम आपको एक ऐसी घटना के बारे में बताने जा रहे हैं, जो क्राइम, कानून और वर्दी में इंटरेस्ट रखने वाले लोगों के लिए एक पहेली और लेसन (सीख) की तरह है। ऐसा इंसिडेंट (घटना), जिसमें मैं भी धोखा खा गया।
बहन और दो बच्चों की हत्या का बहनोई पर आरोप
3 जुलाई 2004 को सीतापुर जिले के मुहब्बतपुरवां निवासी अरविन्द रावत नाम का एक शख्स आया और बताया कि इंडलपुरवा, थाना बड्डुपर निवासी कमल बाबू रावत से मेरी बहन पूनम रावत की शादी हुई थी। कुछ दिनों से मेरी बहन और उनके दो बच्चे टिनू और मोनू गायब हैं। उसने आशंका जताई कि बहनोई ने बहन और दोनों बच्चों की हत्या करके लाश कहीं ग़ायब कर दिया है।
पूछताछ: दो बच्चों के साथ घर छोड़कर चली गई पूनम
बड्डुपुर, बाराबंकी के थाना अध्यक्ष डी.एन. मिश्रा ने अरविन्द के साथ जाकर कमलबाबू के घर की तलाशी ली। पूछताछ में पता चला कि वर्ष 1994 में उनकी शादी हुई थी। 9 साल और 7-8 साल के दो बच्चे हैं। शादी के कुछ दिनों बाद दोनों में आर्थिक तंगी और अन्य आरोप-प्रत्यारोप की वजह से झगड़ा शुरु हो गया। पूरा गांव यह जानता था। पत्नी काम करके गुज़ारा करती थी। एक दिन कमल की आदतों से मजबूर होकर पूनम ने घर छोड़ दिया और दोनों बच्चों के साथ कहीं चली गई।
दो बच्चों और पत्नी की मिली लाश, मुंह कुचला हुआ था
यह जानकारी अरविंद को मिलने पर पहले उसने अपने स्तर पर खोजबीन की और बाद में थाने में शिकायत दर्ज कराई। 4 जुलाई को संदोहा गांव के पास शारदा सहायक नदी के किनारे एक बच्चे का शव मिला। 5 जुलाई को कुर्सी थाना क्षेत्र के एक तालाब से दूसरे बच्चे की लाश मिली। दोनों बच्चे पूरे कपड़े पहने हुए थे और उनका मुंह कुचला हुआ था।
6 जुलाई को बड्डुपर में ही एक नहर के किनारे बड़े से तालाब में उसकी पत्नी की लाश भी बरामद हो गई और 11 जुलाई 2004 को कमलबाबू रावत को अपनी पत्नी और दो बच्चों टिनू और मीनू की हत्या के जुर्म में गिरफ़्तार कर लिया गया। उस समय मैं बाराबंकी में एडिशनल एसपी के पद पर तैनात था। पूछताछ में भी कमल ने हत्या की बात स्वीकारी। अरविंद ने अपनी बहन और दोनों भांजों की लाश को कपड़ों से पहचाना। यह भी बताया कि जो कपड़े वह पहने हुए थे। वह कहां से आए थे।
कमलबाबू का कोर्ट में चौंकाने वाला दावा
23 सितम्बर 2004 को इस तिहरे हत्याकांड की चार्जशीट दाखिल कर दी गई। 9 दिसंबर 2004 को डिस्ट्रिक्ट जज श्यामबाबू वैश्य की अदालत में पेशी पर आए कमलबाबू ने एक दरखास्त दी कि “जिन पत्नी और बच्चों की हत्या के आरोप में मैं पिछले पांच महीनों से जेल में बंद हूं, उनके बारे में मुझे जानकारी हुई है कि वो पत्नी और बच्चे ज़िंदा हैं।” तो जज ने पूछा कि फिर जिनको तुमने और तुम्हारे साले ने पहचाना वो कौन थे?
उसने आरोप लगाया कि पुलिस ने यह कहानी मुझसे जबरदस्ती गढ़वाई, थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया। जज ने 9 दिसंबर 2004 को कमलबाबू को 15 दिन की सशर्त जमानत दी कि अगर 15 दिनों में आप अपनी पत्नी और बच्चों को ढूंढकर हाज़िर करते हो तो फिर हम इसमें आगे की कार्रवाई करेंगे।
सीतापुर से पत्नी और बच्चों को किया बरामद, फिर जेल गए
कमलबाबू ने अपने कुछ रिश्तेदारों और बाकी कुछ लोगों को साथ लेकर सीतापुर के एक कस्बे बिसवां के जगदीश (आपराधिक इतिहास वाला व्यक्ति) नाम के शख्स के घर से अपनी पत्नी और बच्चों को बरामद किया। इस बारे में कमलबाबू ने पुलिस से कोई मदद नहीं मांगी। 15 दिसंबर को अपनी पत्नी और बच्चों को लेकर सीजीएम शांति प्रकाश की अदालत में हाज़िर हो गया, क्योंकि ये मामला डिस्ट्रिक्ट जज की अदालत से डील हो रहा था। इसलिए सीजीएम ने ये फैसला दिया कि यह मेरा क्षेत्राधिकार नहीं है। कमलबाबू 4 जनवरी को डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में हाज़िर हुए। बताया कि 24 दिसंबर को सीजीएम के यहां पत्नी और बच्चों को पेश किया था। अदालत ने कहा कि आपको 9 दिसम्बर को 15 दिनों का पैरोल दिया गया था। आप 4 जनवरी को मेरी अदालत में आए हैं, एक तो आपने पैरोल जंप किया और दूसरा आपने अपनी पत्नी और बच्चों को इस अदालत में समय से हाज़िर नहीं किया। उनकी जमानत रद्द हो गई और वह फिर जेल गए।
कोर्ट ने दिए रि-इंवेस्टिगेशन के आदेश
अब अदालती लड़ाई शुरू हुई। इस बीच मेरा ट्रांसफ़र हो गया। एक दिन मीडिया से पता चला कि तत्कालीन एसएसपी प्रशांत कुमार ने पूरे मामले की जांच का आदेश दिया और कहा कि अब डीएनए टेस्ट ही डिसाइड करेगा कि ये दोनों बच्चे किसके हैं। वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी ने कोर्ट में केस के रि-इंवेस्टिगेशन की मांग की। कमलबाबू के वकील ने कोर्ट में सारे डॉक्युमेंट पेश करते हुए कहा कि पुलिस ने फ़र्ज़ी कहानी गढ़ी है। फिलहाल, कोर्ट ने नए सिरे से केस के विवेचना के आदेश दिए, लेकिन अदालती लड़ाई में कमलबाबू रावत फिर 3-4 महीने जेल में रहे। इधर, घटना को लेकर अखबारों के फ्रंट पेज रंगे हुए थे।
पूनम रावत की हैरतअंगेज आपबीती
पूनम रावत ने कोर्ट में बयान दिया कि एक दिन महमूदाबाद से डॉक्टर को दिखाने बच्चों के साथ निकली। रास्ते में बाबूराम पुत्र भरोसे, तुलाराम और हिसाम एक जीप में मिले। पूनम से कहा कि कमलबाबू का एक्सीडेंट हो गया है, तुम्हें चलना है। वह इमोशनल हो गई और दोनों बच्चों के साथ उसकी जीप में बैठ गई। उसे वहां से लखनऊ लाकर बार-बार रेप किया गया। कुछ दिन बाद सीतापुर के पास बिसवा में जगदीश को 2000 हज़ार रुपए में बेच दिया गया। जगदीश भी मुझे वेश्यावृत्ति में ढकेलने लगा। भागने की कोशिश की तो धमकाया कि अगर भागोगी तो दोनों बच्चों की आंखें निकालकर अस्पताल में बेच देंगे। बच्चों के लिए वो जुल्म सहती रही। जगदीश को कमलबाबू के केस की जानकारी थी और वह यह भी कहता था कि वहां जाकर क्या करोगी। उसे सजा हो जाएगी। पूनम ने एक पड़ोसी से सारी बातें बताई और कहा कि वह जेल में कमलबाबू से मिलकर पूरी बात बताएं कि हम लोग मरे नहीं, ज़िंदा हैं। पड़ोसी जेल में कमलबाबू से मिला और पूरी बात बताई।
कमलबाबू की मौत के बाद आज भी अनसुलझे सवाल
कई साल बाद कमलबाबू की मौत हो गई। यह केस अब भी एक पहेली की तरह है। सबसे बड़ा सवाल है कि जो तीन लाशें मिली थीं आखिर वो किसकी थीं? डीएनए टेस्ट में क्या उन लाशों के बारे में आगे की जांच पड़ताल हुई? कहीं बच्चों और महिला की गुमशुदगी लिखी गई हो, क्या उस हुलिए से लाशों को मैच कराया गया कि नहीं? जांच में क्या हुआ, वो कैसे बाहर आया? ये कुछ भी पता नहीं लगा। पुलिस, प्रॉसिक्यूशन, इंवेस्टिगेशन और जुडीशियरी के बीच ये केस झूलता रहा। मामले की जांच के दौरान इंस्पेक्टर बड्डुपुर और दो सब इंस्पेक्टर को सस्पेंड कर दिया गया। 18 साल पहले की घटना में कोई कुछ बात सकने की स्थिति में नहीं था कि उस केस में हुआ क्या था, कमल जो सारी बात बता सकता था। उसकी मृत्यु हो गई थी तो उसके साथ ही इस केस की सच्चाई ने भी दम तोड़ दिया।
—राजेश कुमार पांडेय सेवानिवृत्त आईपीएस हैं। इन्हीं के द्वारा यूपी पुलिस में एसटीएफ और एटीएस सर्विलांस सिस्टम की शुरुआत की गई।