
महाकुंभ नगर। संगम तट पर देवी चित्रलेखा ने लिया आशीर्वाद, जगद्गुरु रामभद्राचार्य से की भेंट प्रसिद्ध कथावाचिका देवी चित्रलेखा ने शनिवार को संगम तट पहुंचकर जगद्गुरु रामभद्राचार्य से भेंट की और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। इस अवसर को उन्होंने अत्यंत आनंददायक बताते हुए कहा कि पद्मविभूषण तुलसीपीठाधीश्वर स्वामी रामभद्राचार्य महाराज का स्नेह एवं आशीर्वाद सदैव मिलता रहे।
इस दौरान उन्होंने तुलसीपीठ के उत्तराधिकारी आचार्य रामचंद्र दास से भी मुलाकात की और प्रसन्नता व्यक्त की। इसके पश्चात देवी चित्रलेखा परमार्थ निकेतन शिविर, अरैल पहुंचीं, जहां उन्होंने पूज्य स्वामी चिदानंद सरस्वती और साध्वी भगवती सरस्वती से भेंट कर आशीर्वाद लिया। इस पावन अवसर पर उनके माता-पिता, स्वामी अनंतानंद (रामजी) महाराज और स्वामी अमृतानंद महाराज भी उपस्थित रहे।
महाकुंभ न केवल धार्मिक आस्था का संगम है, बल्कि यह सामाजिक उत्थान और नारी सशक्तिकरण का भी प्रेरणास्रोत है। परमार्थ निकेतन शिविर में आयोजित एक विशेष चर्चा में नारी शक्ति के नेतृत्व, भक्ति और संकल्प पर गहन विचार-विमर्श किया गया। इस दौरान स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि नारी को अपनी शक्ति और सामर्थ्य को पहचानने की जरूरत है। जब शिक्षित और आत्मनिर्भर महिलाएं समाज का नेतृत्व करती हैं, तो विकास का मार्ग स्वतः प्रशस्त होता है। उन्होंने कहा कि नारी सशक्तिकरण के लिए एक प्रभावी रोडमैप तैयार करने की आवश्यकता है, ताकि समाज में महिलाओं को समान अवसर मिल सकें और वे अपनी प्रतिभा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकें।
देवी चित्रलेखा ने कहा कि आज के समय में महिलाओं को अपनी शक्ति और सामर्थ्य को पहचानने की आवश्यकता है। वे केवल परिवार ही नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उन्होंने कहा कि समाज को अपनी सोच में बदलाव लाकर नारी शक्ति को उचित सम्मान और नेतृत्व के अवसर देने चाहिए।
साध्वी भगवती सरस्वती ने अपने उद्बोधन में कहा कि शक्ति केवल शारीरिक नहीं होती, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। महाकुंभ केवल भक्ति का प्रतीक नहीं, बल्कि नारी शक्ति के जागरण का भी संदेश देता है। उन्होंने कहा कि जब महिलाएं आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ती हैं, तो वे समाज को भी प्रगति की दिशा में ले जाती हैं।
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स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि महाकुंभ प्रयागराज की पुण्यभूमि से नारी शक्ति के उत्थान और सम्मान का संकल्प लेना चाहिए। यह न केवल समाज को नई दिशा देगा, बल्कि आने वाले समय में राष्ट्र के लिए भी सकारात्मक बदलाव का मार्ग प्रशस्त करेगा।
महाकुंभ हमें यह सिखाता है कि जब हम अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानते हैं और उसे सकारात्मक दिशा में लगाते हैं, तो हम समाज और राष्ट्र के भविष्य को सशक्त बना सकते हैं। इस महाकुंभ में शक्ति, भक्ति और संकल्प का समागम हुआ, जो एक नए युग की शुरुआत का संकेत देता है।
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