
कौशांबी। यूपी की राजनीति इन दिनों समाजवादी पार्टी (SP) के वरिष्ठ नेताओं के विवादित बयानों को लेकर गरमा गई है। जहां एक तरफ कौशांबी में इंद्रजीत सरोज ने मंदिरों की ताकत और देवी-देवताओं पर बयान देकर बवाल खड़ा किया, वहीं सपा के राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन ने हिंदू धर्म और आस्थाओं को लेकर दिए बयान से आग में घी डालने का काम किया है।
कौशांबी में आंबेडकर जयंती के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में सपा के राष्ट्रीय महासचिव और मंझनपुर से विधायक इंद्रजीत सरोज ने कहा: "अगर भारत के मंदिरों में ताकत होती, तो मोहम्मद बिन कासिम, महमूद ग़ज़नवी और मोहम्मद गौरी जैसे लुटेरे देश में नहीं आते। ताकत सत्ता के मंदिर में होती है, जहां बाबा (योगी आदित्यनाथ) विराजमान हैं और हेलिकॉप्टर में घूमते हैं।"
इंद्रजीत सरोज यहीं नहीं रुके, उन्होंने कहा कि राम का नारा लगाने से कुछ नहीं होगा, जय भीम का नारा लगाओ, तभी आगे बढ़ोगे। खुद को जय भीम का सच्चा अनुयायी बताते हुए उन्होंने कहा कि वह इसी नारे की वजह से 5 बार विधायक और एक बार मंत्री बने हैं।
सरोज ने तुलसीदास को लेकर कहा, "तुलसीदास ने लिखा था कि अगर कोई नीच जाति का व्यक्ति पढ़-लिख जाए तो वह सांप के दूध पीने जैसा होता है। उन्होंने हमारे बारे में बहुत कुछ लिखा, लेकिन अकबर के समय मुसलमानों के खिलाफ एक शब्द नहीं लिखा। शायद उनकी हिम्मत नहीं हुई।"
सरोज ने कहा कि करणी सेना समाजवादी नेताओं को गालियां देती है, लेकिन उन पर कोई FIR दर्ज नहीं होती। वहीं दलित समाज की बेटियां मजबूरी में बिक रही हैं, क्योंकि उनके माता-पिता के पास शादी कराने के पैसे नहीं हैं और सरकार मदद नहीं कर रही।
सिर्फ इंद्रजीत सरोज ही नहीं, सपा के राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन ने भी कुछ दिन पहले राम और रामायण को लेकर विवादित बयान दिया था। उन्होंने कहा: "राम के नाम पर दलितों और पिछड़ों के खिलाफ हिंसा की गई है। तुलसीदास ने ऐसी रामायण लिखी, जिससे दलितों और पिछड़ों की मानसिक गुलामी हुई।" सुमन के इस बयान ने धार्मिक संगठनों को नाराज़ कर दिया था। कई संगठनों ने सपा के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए एफआईआर दर्ज कराने की मांग की थी।
भाजपा नेताओं ने इन बयानों की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि सपा नेताओं की सोच हिंदू विरोधी है। भाजपा प्रवक्ताओं ने कहा: "समाजवादी पार्टी की विचारधारा ही हिंदू धर्म को नीचा दिखाने की है। मंदिरों, देवी-देवताओं और संतों पर निशाना साधना इनकी आदत बन गई है।"
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सपा नेताओं का ये बयान दलित और पिछड़े वर्ग को साधने की कोशिश है, लेकिन इसका असर धार्मिक ध्रुवीकरण में बदल सकता है। यूपी की राजनीति में जाति और धर्म की खींचतान कोई नई बात नहीं, लेकिन इस तरह के बयान आने वाले चुनावों में माहौल को ज़रूर प्रभावित कर सकते हैं।
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