बेटी को बचाने वाले डॉक्टर के लिए 31 लीटर गंगाजल! भावुक कर देगी ये श्रद्धा

Published : Jul 20, 2025, 11:05 PM IST
kanwar yatri carries gangajal for doctor baghpat emotional story

सार

Kanwar yatra emotional story: बागपत के विशाल भारद्वाज ने अपनी बेटी के इलाज के लिए कृतज्ञता जताते हुए डॉक्टर के सम्मान में 31 लीटर गंगाजल की कांवड़ उठाई। यह अनोखी श्रद्धा की कहानी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है।

Doctor honored with kanwar yatra: कांवड़ यात्रा आमतौर पर शिवभक्तों द्वारा भोलेनाथ के जलाभिषेक के लिए की जाती है, लेकिन इस बार बड़ौत (बागपत) के एक युवक ने इसे कृतज्ञता का माध्यम बना दिया है। हरिद्वार से लौट रहे कांवड़िए विशाल भारद्वाज की कांवड़ किसी मंदिर के लिए नहीं, बल्कि एक डॉक्टर के लिए लाई जा रही है। वह भी पूरे 31 लीटर गंगाजल के साथ।

विशाल का मानना है कि उन्होंने भगवान शिव को एक डॉक्टर के रूप में देखा है, और उसी श्रद्धा के साथ उन्होंने यह अनोखी कांवड़ उठाई है।

कौन हैं वो डॉक्टर, जिन्हें मिला 'भोलेनाथ' जैसा सम्मान?

यह सम्मान बड़ौत के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अभिनव तोमर को मिला है, जो वर्षों से मूर्ति नर्सिंग होम और आस्था मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। डॉक्टर अभिनव सिर्फ एक चिकित्सक नहीं, बल्कि समाज सेवा में भी अग्रणी माने जाते हैं। उनके प्रति विशाल की श्रद्धा किसी भक्ति से कम नहीं है।

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क्यों उठाई गई ये कांवड़? क्या है इसके पीछे की कहानी?

विशाल भारद्वाज ने बताया कि उसकी बेटी समय से पहले यानी प्रीमैच्योर पैदा हुई थी। वह लगभग डेढ़ महीने तक डॉ. अभिनव की देखरेख में रही। डॉक्टर की मेहनत और समर्पण से अब उसकी बेटी पूरी तरह स्वस्थ है। इसी आभार को जताने के लिए विशाल ने यह कांवड़ उठाने का फैसला लिया।

भोलेनाथ के बाद डॉक्टर का जलाभिषेक

विशाल ने कहा कि वह इस 31 लीटर गंगाजल को पहले भोलेनाथ के चरणों में अर्पित करेगा, और फिर डॉक्टर साहब के क्लीनिक पहुंचकर वहीं उनका जलाभिषेक करेगा। विशाल का यह भी कहना है कि अगले वर्ष वह 51 लीटर गंगाजल की कांवड़ लेकर आएगा।

इस अनोखी आस्था और सेवा भावना का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब शेयर किया जा रहा है। लोगों ने इसे डॉक्टरों के प्रति श्रद्धा और मानवीय संबंधों का एक प्रेरणादायक उदाहरण बताया है। इसने डॉक्टर-पेशेंट रिश्तों में एक नई ऊंचाई जोड़ दी है।

विशाल की यह पहल यह बताती है कि भक्ति सिर्फ मंदिरों तक सीमित नहीं, बल्कि वह किसी भी रूप में प्रकट हो सकती है, चाहे वह आभार हो, सेवा हो या सम्मान। जब एक डॉक्टर अपने कर्तव्य से परे जाकर किसी परिवार की उम्मीद बनता है, तो वह सच में ‘धरती का भगवान’ बन जाता है।

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