
Bada Mangal Lucknow history: जब शहर की हवाओं में इत्र घुला हो, तहज़ीब लफ़्ज़ों में और दिलों में इबादत हो तो समझ जाइए और मुस्कुराइए की आप लखनऊ में हैं। यहां नवाबों ने सिर्फ शानो-शौकत ही नहीं छोड़ी, बल्कि एक ऐसी परंपरा की नींव रखी जो आज भी शहरवासियों के दिल में उसी श्रद्धा से बसी है। बात हो रही है बड़े मंगल की जो सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि लखनऊ की गंगा-जमुनी तहज़ीब का ज़िंदा सबूत है। और इसके पीछे की कहानी जुड़ी है नवाब वाजिद अली शाह और उनकी बेगमों से, जो हनुमान जी के परम भक्त थे।
देश के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. योगेश प्रवीन ने अपनी किताब 'लखनऊ नामा' में उल्लेख किया है कि नवाब वाजिद अली शाह ने अलीगंज के प्राचीन हनुमान मंदिर में मन्नत पूरी होने पर बड़े स्तर पर भंडारा करवाया था। यही नहीं, उनकी बेगमों ने भी इसमें भाग लिया था। यही आयोजन आज "बड़ा मंगल" के रूप में मनाया जाता है, बड़ा मंगल यानि हिन्दू पंचांग का ज्येष्ठ महीना, इस महीने के हर मंगलवार को पूरे शहर में जगह जगह भंडारा होता है, कोई भी भूखा नहीं सोता, जिसमें सिर्फ हिन्दू ही नहीं, बल्कि सभी धर्मों के लोग शामिल होते हैं।
लखनऊ नामा में इतिहासकार लिखते हैं, नवाब साहब की श्रद्धा इतनी गहरी थी कि उनके शासन काल में बंदरों की हत्या पर सख्त पाबंदी लगा दी गई थी। एक बार किसी ने बंदरों पर गोली चला दी, तो उसे इसकी सज़ा भी भुगतनी पड़ी। नवाब और उनकी बेगमें हर मंगलवार को मंदिर में चना लेकर बंदरों को खिलाने जाती थीं। यह परंपरा उस समय के शासन की धार्मिक सहिष्णुता और मानवीय दृष्टिकोण को दर्शाती है।
अलीगंज हनुमान मंदिर के शिखर पर आज भी एक चांद लगा है, जो नवाब वाजिद अली शाह द्वारा लगवाया गया था। यह कोई साधारण चिह्न नहीं, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता और आस्था की मिसाल है। नवाब ने इसे बजरंगबली के प्रति सम्मान स्वरूप लगवाया था। यह चांद आज भी उस दौर की कहानी कहता है, जब धर्म और सत्ता के बीच पुल बनाया जाता था, दीवारें नहीं।
आज बड़ा मंगल सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि लखनऊ की सांझी संस्कृति का उत्सव बन गया है। जगह-जगह भंडारे, पंडाल, जलपान की व्यवस्था और सबसे खास बात सब कुछ बिना किसी भेदभाव के। यह परंपरा लखनऊ की मिट्टी में रच-बस चुकी है, जिसकी शुरुआत नवाब वाजिद अली शाह ने अपने प्रेम और आस्था से की थी।
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