
Muzaffarnagar honor killing: उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर में एक लड़की का अधजला शव जंगल में मिलने की खबर ने पूरे इलाके को हिला कर रख दिया। लेकिन जो सच्चाई सामने आई, वह और भी ज्यादा खौफनाक थी, उसकी जान उसी के अपने पिता और भाई ने ली थी। प्यार की इजाज़त मांगने आई बेटी को मारकर जंगल में जलाया गया, ताकि उसका वजूद तक मिटाया जा सके।
23 वर्षीय सरस्वती मलियान गुरुग्राम की एक ई-कॉमर्स कंपनी में ऑर्डर और डिलीवरी हैंडल करती थी। वह पिछले दो सालों से अपने गांव के ही युवक अमित के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही थी। 2022 से दोनों साथ रह रहे थे और एक ही कंपनी में काम कर रहे थे। सरस्वती पहले 2019 में एक शादी कर चुकी थी, जो दो साल बाद टूट गई। परिवार ने 2022 में दोबारा रिश्ता तय किया, लेकिन वह भी नहीं चला।
बावजूद इसके, सरस्वती ने अमित के साथ रिश्ता बनाए रखा। 10 मई को वह अपने गांव वापस आई थी आखिरी बार परिवार को मनाने और इस रिश्ते को स्वीकार करवाने के लिए।
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पुलिस के अनुसार, 29 से 30 मई की रात सरस्वती की उसी के घर में गला घोंटकर हत्या कर दी गई।
पिता राजवीर सिंह (55) और भाई सुमित सिंह (24) ने मिलकर उसकी जान ली, जबकि सुमित के दोस्त गुरदयाल सिंह ने उसे पकड़कर रखा। इसके बाद तीनों ने मिलकर शव को 5 किलोमीटर दूर जंगल में नहर के पास ले जाकर पेट्रोल डालकर जला दिया।
हत्या के दो दिन बाद परिवार ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई ताकि शक न हो और पुलिस भ्रमित हो जाए।
लेकिन 3 जून को ककरौली थाना क्षेत्र के जंगल में एक अधजला शव मिलने से कहानी में बड़ा मोड़ आया।
पहचान मुश्किल थी, लेकिन SHO जोगिंदर सिंह और कांस्टेबल ललित मोरल ने शव की कलाई पर मौजूद चूड़ियों को सोशल मीडिया पर देखे गए एक पोस्ट से मिलाया और सरस्वती की पहचान की पुष्टि की।
मुज़फ्फरनगर SSP संजय कुमार वर्मा ने बताया कि राजवीर सिंह ने पूछताछ में स्वीकार किया कि उसने गुस्से में बेटी की हत्या की क्योंकि वह अमित के साथ संबंध में थी।
SHO और कांस्टेबल की सतर्कता के लिए उन्हें इनाम भी दिया गया है।
तीसरा आरोपी गुरदयाल सिंह अभी भी फरार है। पुलिस लगातार छापेमारी कर रही है। मामला भारतीय दंड संहिता (BNS) की धारा 103 (हत्या) और 238 (साक्ष्य मिटाना) के तहत दर्ज किया गया है। कानूनी कार्रवाई जारी है।
सरस्वती का मामला समाज में लड़कियों की स्वतंत्रता, लिव-इन रिलेशनशिप और ऑनर किलिंग पर कई गंभीर सवाल खड़े करता है। क्या अब भी बेटियों को अपने जीवन के फैसले लेने का हक नहीं? और अगर वे अपने हक़ के लिए खड़ी होती हैं, तो क्या उनका अंत इस तरह से होगा?
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