महाकुंभ 2025 : अंग्रेजों ने गया ऐसा राम भजन! सुन आपका भी दिल खुश हो जाएगा!

Published : Jan 11, 2025, 06:38 PM IST
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सार

प्रयागराज महाकुंभ 2025 में परमार्थ निकेतन शिविर में भगवान राम की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हुई। स्वामी चिदानंद सरस्वती ने 'सब समान, सब का सम्मान' का संदेश दिया और सनातन धर्म के मूल्यों पर प्रकाश डाला।

प्रयागराज | महाकुंभ 2025 के दौरान संगम की पुण्यभूमि पर परमार्थ निकेतन शिविर में एक अनोखा और ऐतिहासिक कार्यक्रम आयोजित किया गया। आज के इस पवित्र दिन पर, जहां वेद मंत्रों की गूंज से वातावरण शुद्ध हुआ, वहीं प्रभु श्रीराम की दिव्य प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा भी विधिवत संपन्न हुई। यह आयोजन भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के मूल्यों का प्रतीक बना, जो न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में आध्यात्मिक जागरूकता का संदेश देने के लिए प्रेरणादायक है।

‘सब समान, सब का सम्मान’ का संदेश

स्वामी चिदानंद सरस्वती ने इस अवसर पर कहा, "महाकुंभ का असली संदेश है – एकता और समरसता। परमार्थ निकेतन शिविर में हम हर व्यक्ति को जाति, धर्म, रंग या स्थान से परे समान मानते हैं। यही सनातन धर्म का मूल सिद्धांत है – 'सब समान, सब का सम्मान'। यह संदेश न केवल भारतीय संस्कृति की नींव है, बल्कि यह पूरी मानवता के लिए एक अमूल्य धरोहर भी है।"

प्रभु श्रीराम के जीवन और उनके आदर्शों को केंद्र में रखते हुए इस महाकुंभ में उनकी भव्य प्रतिमा का प्राण-प्रतिष्ठा समारोह आयोजित किया गया। स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा, "प्रभु श्रीराम का जीवन सत्य, धर्म और न्याय का प्रतीक है। उनकी प्रतिमा की स्थापना समाज और राष्ट्र के लिए एक आधारशिला है, जो हमें सत्य और मर्यादा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।"

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दिव्य भजन और भक्ति का संगम

इटली से आए माहि गुरूजी और उनके अनुयायियों ने शिवस्तोत्र और भजनों की अद्भुत प्रस्तुति दी, जिससे शिविर का वातावरण मंगलमय हो उठा। श्रद्धालुओं ने भक्ति की गहरी अनुभूति प्राप्त की, और वातावरण में गूंजते भजन ने हर किसी का मन मोह लिया।

स्वामी चिदानंद सरस्वती ने आगे कहा, "सनातन धर्म हमें सिखाता है कि सभी जातियों, धर्मों और व्यक्तियों को समान अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए। यही हमारी संस्कृति का मूल है, जो एकता और भाईचारे की भावना को प्रगाढ़ करता है।"

इस पवित्र आयोजन में "मंगल भवन अमंगल हारी" की दिव्य ध्वनि गूंजती रही, जिससे भक्तगण प्रभु श्रीराम की महिमा का आनंद लेते रहे। यह आयोजन न केवल एक धार्मिक उत्सव था, बल्कि यह भारतीय संस्कृति के उज्जवल भविष्य का प्रतीक भी बन चुका था।

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