संगम तट पर मौजूद है एक ऐसा मंदिर, जिसे मुग़ल सेना भी नहीं कर पाई नष्ट

सार

प्रयागराज के संगम तट पर स्थित लेटे हनुमान जी का मंदिर एक चमत्कारी स्थान है। 600 साल पुरानी यह मूर्ति कैसे मिली और मुग़ल काल में कैसे बची रही, जानिए इस रहस्यमयी कहानी को।

प्रयागराज, जिसे संगम नगरी भी कहा जाता है, सिर्फ धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए भी मशहूर है। यहां की धरती पर कई अनोखी घटनाएं और चमत्कारी स्थान हैं, जिनमें से एक है लेटे हनुमानजी का मंदिर। संगम के तट पर स्थित यह मंदिर न सिर्फ भक्तों के लिए आस्था का केन्द्र है, बल्कि एक चमत्कारी प्रतिमा भी है, जो सदियों से श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती आ रही है।

लेटे हनुमान मंदिर की कहानी

हनुमानजी को अपनी शक्ति और भक्ति के लिए जाना जाता है, लेकिन संगम तट पर स्थित यह मंदिर उनकी थकान और विश्राम के पल की याद दिलाता है। कहा जाता है कि लंका विजय के बाद हनुमानजी थककर असमर्थ हो गए थे और माता सीता के आदेश पर वे संगम के तट पर विश्राम के लिए लेट गए थे। उसी पल को याद करते हुए यहां 20 फीट लंबी और 6-7 फीट नीचे धरती पर स्थित एक विशाल लेटे हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित की गई। यह प्रतिमा दक्षिणाभिमुखी है और इसे किले वाले हनुमानजी, बांध वाले हनुमानजी और बड़े हनुमानजी के नाम से भी जाना जाता है।

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कैसे मिली यह 600 साल पुरानी अद्भुत मूर्ति?

इस मंदिर का इतिहास भी उतना ही रोमांचक और चमत्कारी है। माना जाता है कि यह मंदिर करीब 600-700 साल पुराना है और इसकी प्रतिमा को लेकर एक अद्भुत कहानी जुड़ी हुई है। एक समय कन्नौज के राजा ने विंध्याचल पर्वत से इस प्रतिमा को लाने का प्रयास किया, लेकिन वह प्रतिमा जलमग्न हो गई। वर्षों बाद, जब गंगा का जलस्तर घटा, तो बाबा बालगिरी महाराज को यह प्रतिमा मिली और उसी दिन से इस मंदिर का निर्माण शुरू हुआ।

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मुग़ल काल में भी अडिग रही प्रतिमा

इतिहास के पन्नों में यह भी दर्ज है कि मुग़ल काल के दौरान इस मंदिर को नष्ट करने की कई बार कोशिश की गई। लेकिन हर बार यह प्रतिमा उतनी ही मजबूती से धरती में धंसती चली गई। मुग़ल सैनिकों की कोई भी कोशिश इसे हिला नहीं पाई। यह चमत्कारी घटना आज भी भक्तों की आस्था को और भी मजबूत बनाती है।

संगम स्नान के बाद ज़रूर करने चाहिए दर्शन

यहां की धार्मिक मान्यता के अनुसार, संगम में स्नान करने के बाद यदि इस मंदिर में दर्शन नहीं किए जाएं तो तीर्थ यात्रा अधूरी मानी जाती है। यह मान्यता आज भी लोगों में गहरे विश्वास के रूप में जीवित है। श्रद्धालु यहां अपनी सभी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आते हैं और उनका विश्वास है कि हनुमानजी उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं।

इस मंदिर में आने वाले भक्त न केवल अपने पापों से मुक्ति की कामना करते हैं, बल्कि अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति और जीवन में सफलता के लिए भी प्रार्थना करते हैं। संगम के इस पवित्र तट पर स्थित हनुमानजी की प्रतिमा अपने चमत्कारों से भक्तों के दिलों में बस गई है। बजरंगबली की इस असीम शक्ति और आस्था के प्रतीक मंदिर के दर्शन से ही तीर्थ यात्रा पूरी मानी जाती है।

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Akshansh Kulshreshtha

अक्षांश कुलश्रेष्ठ एक अनुभवी पत्रकार हैं और इस क्षेत्र में 4 साल से अधिक समय से कार्यरत हैं। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से पत्रकारिता और जनसंचार की डिग्री पूरी की, जहां उन्होंने उत्तर प्रदेश की राजनीति, अपराध की कहानियों और स्वास्थ्य और जीवन शैली पर फीचर लेखों में गहरी रुचि विकसित की। वर्तमान में, वह एशियानेट हिंदी के साथ काम कर रहे हैं, जहां वह अपने रिपोर्टिंग कौशल को निखारना जारी रखते हैं। डिजिटल मीडिया मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव और सोशल मीडिया मार्केटिंग पेशेवर के रूप में उनके अनुभव ने ऑनलाइन ब्रांडिंग, कंटेंट प्रमोशन और दर्शकों की सहभागिता में उनकी क्षमताओं को तेज किया है। अक्षांश पारंपरिक पत्रकारिता को आधुनिक डिजिटल रणनीतियों के साथ जोड़ते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि उनका काम पाठकों के लिए प्रभावशाली और जानकारीपूर्ण बना रहे।Read More...
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