देखिए महाकुंभ में 100 महिलाओं का नागा संन्यास, अमेरिका-इटली की भी महिलाएं शामिल!

सार

महाकुंभ 2025 में 100 महिलाओं ने नागा संन्यासी की दीक्षा ली, जिनमें अमेरिका और इटली की महिलाएं भी शामिल थीं। जूना अखाड़े में शामिल होकर उन्होंने कठोर तपस्या का मार्ग अपनाया और अपना जीवन बदला।

प्रयागराज: महाकुंभ 2025 में इस बार एक विशेष और ऐतिहासिक घटना घटी है, जब संगम घाट पर 100 महिलाओं ने नागा संन्यासी की दीक्षा ली। इन महिलाओं में न केवल भारत की महिलाएं शामिल थीं, बल्कि अमेरिका और इटली से भी दो महिलाएं इस प्रक्रिया का हिस्सा बनीं। इन महिलाओं ने अपने जीवन को पूरी तरह से बदलने का संकल्प लिया और जूना अखाड़े से जुड़कर कठोर तपस्या की शुरुआत की।

संगम घाट पर इन महिला संन्यासियों का जीवन अब पूरी तरह से बदल चुका था। यहां पर उन्होंने अपनी सात पीढ़ियों का पिंडदान किया और गंगा में 17 पिंड बनाए, जिनमें से 16 उनके पूर्वजों के थे और एक पिंडदान उन्होंने खुद का किया। इसके बाद, गंगा स्नान के बाद इन महिलाओं ने गेरुआ वस्त्रों को छोड़कर बिना सिले श्वेत वस्त्र पहन लिए, जो उनके नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक था।

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नागा संन्यासी बनने की कठिन प्रक्रिया

नागा संन्यासी बनने के लिए महिलाओं को वही कठिन तपस्या करनी होती है, जो पुरुषों को करनी होती है। उन्हें अपने श्रृंगार का त्याग करना होता है, शारीरिक और मानसिक रूप से स्वयं को शुद्ध करना होता है। इस प्रक्रिया में महिलाओं को 24 घंटे बिना भोजन-पानी के तपस्या करनी होती है। इसके बाद, गंगा तट पर जाकर 108 डुबकियां लगाई जाती हैं, जिसके बाद उन्हें नागा संन्यासी की दीक्षा दी जाती है।

विदेश से आईं महिलाएं भी हुईं शामिल

महाकुंभ 2025 में इस अनूठी दीक्षा को लेने वाली महिलाओं में अमेरिका और इटली से आईं दो महिलाएं भी शामिल थीं। इनमें से एक महिला 55 वर्ष की थीं और दूसरी युवावस्था में थीं। इन महिलाओं को दीक्षा लेने के बाद विशेष नाम दिए गए – कामाख्या देवी और शिवानी। दीक्षा लेने के बाद इन महिलाओं ने संन्यास के मार्ग पर कदम बढ़ाया।

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महिला संन्यासियों का योगदान

महिला नागा संन्यासी भी पुरुषों की तरह कठिन तपस्या करती हैं और अपनी ब्रह्मचर्य की परीक्षा में कई वर्षों का समय लगा सकती हैं। इन महिलाओं को इस कठोर जीवन के लिए अपनी पूरी तैयारी साबित करने में 10 से 12 साल भी लग सकते हैं। ये महिलाएं न केवल अपनी साधना से अपनी आत्मा को शुद्ध करती हैं, बल्कि समाज को भी एक नया दृष्टिकोण देती हैं।

जूना अखाड़े का महत्वपूर्ण योगदान

जूना अखाड़ा, जो देश का सबसे पुराना और बड़ा अखाड़ा है, ने इन महिलाओं को नागा संन्यासी बनने का अवसर दिया है। इस अखाड़े की सबसे सीनियर महिला नागा संन्यासी को श्रीमहंत की पदवी मिलती है, और यहाँ महिलाएं सिर्फ ब्रह्मचर्य पालन नहीं करतीं, बल्कि अपनी तपस्या से समाज को एक नई दिशा भी दिखाती हैं।

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Akshansh Kulshreshtha

अक्षांश कुलश्रेष्ठ एक अनुभवी पत्रकार हैं और इस क्षेत्र में 4 साल से अधिक समय से कार्यरत हैं। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से पत्रकारिता और जनसंचार की डिग्री पूरी की, जहां उन्होंने उत्तर प्रदेश की राजनीति, अपराध की कहानियों और स्वास्थ्य और जीवन शैली पर फीचर लेखों में गहरी रुचि विकसित की। वर्तमान में, वह एशियानेट हिंदी के साथ काम कर रहे हैं, जहां वह अपने रिपोर्टिंग कौशल को निखारना जारी रखते हैं। डिजिटल मीडिया मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव और सोशल मीडिया मार्केटिंग पेशेवर के रूप में उनके अनुभव ने ऑनलाइन ब्रांडिंग, कंटेंट प्रमोशन और दर्शकों की सहभागिता में उनकी क्षमताओं को तेज किया है। अक्षांश पारंपरिक पत्रकारिता को आधुनिक डिजिटल रणनीतियों के साथ जोड़ते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि उनका काम पाठकों के लिए प्रभावशाली और जानकारीपूर्ण बना रहे।Read More...
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