
महाकुंभ नगर, प्रयागराज। महाकुंभ 2025 में गंगा तट पर एक ऐसी अनूठी कुटिया है जो पिछले 18 वर्षों से भक्ति और तपस्या का केंद्र बनी हुई है। संगम लोअर मार्ग के सेक्टर 19 में स्थित यह कुटिया न केवल साधकों और श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र है, बल्कि हर मौसम और परिस्थिति में अडिग रहने का प्रेरणास्रोत भी है। इस कुटिया में संत रामदास लगातार 18 वर्षों से अपने इष्ट भगवान भोलेनाथ की आराधना में लीन हैं।
संत रामदास ने 18 साल पहले शास्त्री पुल के निकट गंगा की रेत पर अपना साधनास्थल बनाया। झूंसी कोहना के स्थानीय निवासियों ने उनकी भक्ति और तपस्या देखकर बांस और बल्लियों की मदद से एक अस्थायी कुटिया का निर्माण किया। शुरुआत में यह कुटिया साधारण थी, लेकिन संत रामदास के समर्पण और आस्था ने इसे एक अद्वितीय आध्यात्मिक स्थल में बदल दिया।
संत रामदास का यह तपस्थल किसी चमत्कार से कम नहीं है। चाहे गर्मी की झुलसाने वाली लू हो, बारिश और बाढ़ का प्रचंड स्वरूप, या कड़ाके की ठंड, संत रामदास अपनी साधना से कभी विचलित नहीं हुए। बाढ़ के दौरान जब गंगा का जलस्तर बढ़ जाता है, तो वे नाव में बैठकर अपनी आराधना जारी रखते हैं। उनकी अडिगता और साधना के प्रति समर्पण स्थानीय लोगों के लिए प्रेरणा बन गया है।
भदरी के राजा उदय प्रताप सिंह की मदद से कुटिया के पास 55 फीट ऊंचे पारदर्शी घेरे में अखंड ज्योति प्रज्वलित की गई। इस ज्योति की व्यवस्था ने संत रामदास की साधना को और गहनता प्रदान की। इसके साथ ही, 13 फीट ऊंचा मचान भी बनाया गया, जहां से वे गंगा की ओर मुख करके साधना करते हैं। देवरहा बाबा को अपना गुरु मानने वाले संत रामदास के अनुसार, यह स्थान भगवान भोलेनाथ का सच्चा आश्रय स्थल है।
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संत रामदास की तपस्या ने स्थानीय निवासियों को भी गहराई से प्रभावित किया। झूंसी कोहना के पार्षद अनिल कुमार यादव, मुकेश पहलवान, और अन्य सहयोगियों ने बताया कि संत रामदास की सेवा के लिए कई बार सामूहिक प्रयास किए गए। उनके लिए बांस, बल्लियों, और अन्य सामग्रियों से स्थायी कुटिया बनाई गई। संत रामदास की साधना और उनकी प्रेरणा से हजारों श्रद्धालु गंगा तट पर आते हैं और उनके दर्शन करते हैं।
महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए संत रामदास की कुटिया एक विशेष आस्था केंद्र है। यह स्थान न केवल तपस्या की शक्ति को दर्शाता है, बल्कि भक्ति के प्रति संत रामदास का समर्पण हर किसी को प्रेरित करता है। उनकी साधना महाकुंभ की धार्मिक गरिमा को और भी बढ़ा देती है।
संत रामदास की 18 वर्षों की साधना इस बात का प्रतीक है कि भक्ति और तपस्या के मार्ग में कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती। उनका जीवन हर व्यक्ति को यह प्रेरणा देता है कि विश्वास और दृढ़ता से किसी भी परिस्थिति में अपने इष्ट की आराधना की जा सकती है। महाकुंभ 2025 में संत रामदास की यह कुटिया उन लाखों श्रद्धालुओं के लिए एक चमत्कारिक स्थान है, जो अपने जीवन में भक्ति और साधना का महत्व समझना चाहते हैं।
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