
लखनऊ। जंगल की हवा, नदी की लहरें और जनजातीय संस्कृति की महक... उत्तर प्रदेश सरकार अब पर्यटन प्रेमियों को यह पूरा अनुभव एक नई पहचान के साथ देने की तैयारी में है। दुधवा की शांत वादियों से लेकर कतर्नियाघाट की नदी सफारी तक, राज्य सरकार ने इको-टूरिज्म को नए स्तर पर ले जाने के लिए कई बड़े प्रस्तावों पर मुहर लगाने की प्रक्रिया तेज कर दी है। इन योजनाओं का लक्ष्य केवल पर्यटन को बढ़ाना नहीं, बल्कि स्थानीय जनजातियों की सांस्कृतिक धरोहर और आजीविका को मजबूत करना भी है।
नेपाल सीमा से सटे कतर्नियाघाट वन्यजीव अभ्यारण्य में गेरूआ नदी पर बोट सफारी बेहद लोकप्रिय है। फिलहाल यहां दो नावों का संचालन हो रहा है, लेकिन बढ़ती मांग को देखते हुए इको टूरिज्म बोर्ड ने दो और पर्यावरण-अनुकूल नावें जोड़ने का प्रस्ताव तैयार किया है।नई बोट्स के आने से पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होगी और उन्हें जंगल व नदी के मनोहारी दृश्य का और बेहतर अनुभव मिलेगा।
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इको टूरिज्म विकास बोर्ड ने थारू जनजाति की अनोखी संस्कृति, परंपराओं और खान-पान को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए 'अनुभव – थारू संस्कृति' योजना का प्रस्ताव रखा है।इसके तहत:
इस योजना से थारू जनजाति को नए रोजगार और आय के अवसर मिलेंगे। साथ ही पर्यटकों को एक अनोखा लोक-सांस्कृतिक अनुभव भी प्राप्त होगा।
बोर्ड ने होटल, रिसॉर्ट व होम-स्टे संचालकों को अपने मेन्यू में 'थारू-थाली' को अनिवार्य रूप से शामिल करने के निर्देश दिए हैं।यह थाली थारू समुदाय के पारंपरिक व्यंजनों से बनती है, जिनमें स्थानीय अनाज, जड़ी-बूटियाँ और प्राकृतिक मसालों का विशेष प्रयोग होता है।
इसके लिए:
दुधवा क्षेत्र में स्थित चंदन चौकी शिल्पग्राम, जो लंबे समय से बंद पड़ा है, उसे फिर से विकसित कर जनजातीय कला व संस्कृति के केंद्र के रूप में पुनर्जीवित करने की योजना बनाई गई है। यहां प्रस्तावित सुविधाएं:
यह केंद्र निजी निवेश मॉडल के तहत पर्यटन विभाग या इको टूरिज्म बोर्ड द्वारा संचालित किया जा सकता है।
इन सभी परियोजनाओं से:
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की योजना है कि उत्तर प्रदेश को देश के सबसे बड़े इको-टूरिज्म केंद्रों में शामिल किया जाए, और ये प्रस्ताव उसी दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।
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