
UP school merger scheme: उत्तर प्रदेश में स्कूलों के विलय यानी 'पेयरिंग सिस्टम' को लेकर एक नई बहस खड़ी हो गई है। योगी आदित्यनाथ सरकार जहां इसे शिक्षा सुधार और संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल का कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इस फैसले को गरीब और वंचित तबकों के खिलाफ करार दे रहा है। खासतौर से कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा, बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सरकार की इस योजना पर तीखी प्रतिक्रिया दी है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 14 जुलाई को बेसिक शिक्षा विभाग की समीक्षा बैठक में पेयरिंग व्यवस्था के फायदे गिनाते हुए कहा कि इसका उद्देश्य केवल विद्यालयों को जोड़ना नहीं है, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता, संसाधनों का कुशल उपयोग और प्रशासनिक दक्षता सुनिश्चित करना है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जिन स्कूलों में 50 से अधिक छात्र हैं, उन्हें स्वतंत्र विद्यालय के रूप में संचालित किया जाए। इससे अध्यापक, छात्रों और अभिभावकों के बीच जवाबदेही और शिक्षा की मॉनिटरिंग बेहतर तरीके से की जा सकेगी।
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सीएम योगी ने स्पष्ट किया कि पेयरिंग के चलते जो विद्यालय भवन खाली होंगे, उनका पुनर्पयोग किया जाएगा। इनमें बाल वाटिकाएं, प्री-प्राइमरी स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्रों को संचालित किया जाएगा। यह कदम शिशु शिक्षा को मज़बूती देने और विद्यालय परिसरों के बहुउद्देशीय इस्तेमालकी दिशा में उठाया जाएगा।
उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए कि यह प्रक्रिया समयबद्ध ढंग से पूरी होनी चाहिए और इसमें कोई ढील न बरती जाए।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने सरकार के इस फैसले को गरीब बच्चों के शिक्षा के अधिकार पर हमला बताया है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा कि उत्तर प्रदेश सरकार करीब 5,000 स्कूलों को विलय के नाम पर बंद करने जा रही है।
प्रियंका ने यह भी दावा किया कि शिक्षक संगठनों के अनुसार, लगभग 27,000 स्कूलों को बंद करने की योजना पर काम हो रहा है। उनका सवाल था, “अगर स्कूल दूर हुए तो छोटे बच्चे, खासकर लड़कियां, कैसे पहुंचेंगी?” उन्होंने इसे शिक्षा का अधिकार कानून (RTE) और वंचित तबकों के खिलाफ करार दिया। उनके अनुसार यह फैसला दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और गरीब बच्चों की शिक्षा के दरवाज़े बंद करने जैसा है।
बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने भी इस निर्णय की आलोचना करते हुए कहा कि इससे ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों की स्कूल तक पहुंचसीमित हो जाएगी। विपक्ष का तर्क है कि अगर स्कूल दूर हुए तो बच्चों के बीच ड्रॉपआउट दर बढ़ेगी, खासतौर पर लड़कियों और गरीब परिवारों के बच्चों के लिए यह व्यवस्था असुविधाजनक साबित हो सकती है।
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