झांसी मेडिकल कॉलेज अग्निकांड:दूसरों के लिए मसीहा बने शख्स ने खुद सहा बड़ा नुकसान

झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में शॉर्ट सर्किट के कारण लगी आग में 10 नवजात शिशुओं की मौत हो गई। परिजनों ने अस्पताल स्टाफ पर लापरवाही का आरोप लगाया। याकूब मंसूरी ने वीरतापूर्वक कई शिशुओं को बचाया लेकिन अपने जुड़वा बच्चों को खो दिया।

झांसी। यूपी के झांसी जिले में स्थित महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के नवजात गहन चिकित्सा इकाई में शुक्रवार रात शॉर्ट सर्किट से आग लग गई। इस दर्दनाक हादसे में 10 नवजात शिशुओं की जान चली गई। परिजनों का आरोप है कि अस्पताल प्रशासन ने समय पर कार्रवाई नहीं की, जिससे यह त्रासदी हुई। आग में मारे गए जुड़वां बच्चों के पिता याकूब मंसूरी ने वीरतापूर्वक कई शिशुओं को तो बचा लिया, लेकिन खुद की बेटियों को नहीं बचा पाए, जो इसी अग्निकांड त्रासदी में स्वाहा हो गईं।

दूसरों के बच्चों को बचाने वाले युवा पिता ने खो दी अपनी जुड़वा बेटी

20 वर्षीय याकूब मंसूरी शुक्रवार की रात को दूसरों के बच्चों के लिए तो हीरो बन गए लेकिन उनकी अपनी नवजात जुड़वां बेटियां, जिन्हें वे कभी नहीं जान पाएंगी, उनको हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया। हमीरपुर का यह युवा खाद्य विक्रेता एक सप्ताह से महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के नवजात गहन चिकित्सा इकाई के बाहर सो रहा था, जहां उसकी दो नवजात जुड़वां बेटियां भर्ती थीं। अपनी पत्नी नज़मा के साथ याकूब ने बारी-बारी से जुड़वा बच्चों पर नज़र रखी।

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खिड़की का शीशा तोड़कर यूनिट में घुसा था याकूब

शुक्रवार की रात जब आग लगी, तो याकूब खिड़की तोड़कर यूनिट में घुस गया और जितने शिशुओं को बचा सका, उसने उन्हें बचाया। लेकिन अफसोस, जिन बच्चों को उसने बचाया उसमें उसकी दो नवाजत बेटियां शामिल नहीं थीं। जुड़वां लड़कियों के शवों की पहचान शनिवार को बाद में की गई। नज़मा और याकूब पूरे दिन अस्पताल के बाहर बैठे रहे, उनकी आंखें अविश्वास और दुख से भरी हुई थीं।

पहली बार मां बनी युवती ने अपनी आंखों के सामने जलता देखा अपना बच्चा

इसी तरह पहली बार मां बनी संजना कुमारी ने भी अपने बच्चे को खो दिया। अस्पताल के बाहर बिलख रही संजना का चिल्ला रही थी, कि ये दिन किसी दुश्मन को भी न देखना पड़े। ये ऐसा नुकसान है, जिसकी भरपाई पूरे जीवन नहीं हो पाएगी और इसका दर्द उसे हमेशा रहेगा।

अस्पताल प्रशासन की लापरवाही से परिजनों में आक्रोश

संजना ने कहा "मेरे बच्चे को मेरी आंखों के सामने जलाकर मार दिया गया और मैं असहाय होकर देखती रही। अस्पताल की लापरवाही ने मेरे सपनों को नष्ट कर दिया। मैं अपने बच्चे को गोद में भी नहीं ले सकी," उसने कहा कि मेरा दर्द अभी भी ताजा है। जालौन की संतोषी देवी प्रसव के दौरान आई जटिलताओं के बाद अपने बच्चे को अस्पताल लेकर आई थीं। लेकिन जब आग लगी, तो वह अफरा-तफरी में खो गया। शनिवार को उसके शव की पहचान हुई। "मैंने चीखें सुनीं, लेकिन मेरा बच्चा चला गया था,"। बच्चों के परिजनों का कहना है कि अस्पताल स्टाफ ने समय पर कार्रवाई नहीं की।

11 दिन पहले मां बनी महिला की भी सूनी हो गई गोद

संतोषी देवी ने बताया कि ने 11 दिन पहले ही उसने एक बच्चे को जन्म दिया था जो अब उसके पास नहीं है। उसने कहा, "मैंने शोर सुना और भाग गई, लेकिन मैं अपने बच्चे को कैसे बचा सकती थी? किसी ने हमें नहीं बताया कि क्या हो रहा था।" ललितपुर के सोनू और संजना ने अपने समय से पहले जन्मे बेटे के बारे में बताया, जिसका सांस संबंधी समस्याओं के लिए इलाज चल रहा था। संजना ने कहा, "हमें उसे खाना न खिलाने के लिए कहा गया था, इसलिए हमने कुछ देर आराम किया। जब तक हम अस्पताल वापस पहुंचे, तब तक आग ने यूनिट को तबाह कर दिया था।"

जिस बेटे के इलाज के लिए सब कुछ बेचा, वहीं नहीं बचा

सोनू ने कहा, "हमने वह सब कुछ किया जो हम कर सकते थे, लेकिन अंत में वह हमसे दूर चला गया।" उनके भाई परशुराम ने कहा, "हमने अपना सब कुछ बेच दिया, कर्ज लिया, यह सब इस उम्मीद में कि हमारा बेटा बच जाएगा।" ललितपुर के निरंजन महाराज ने अपने पोते के शव की पहचान नाम के टैग से की। उन्होंने कहा, "वह आग में जल गया था।" उन्होंने आरोप लगाया कि अस्पताल के कर्मचारियों ने समय पर कार्रवाई नहीं की। उन्होंने मासूमों की जान बचाने की कोशिश भी नहीं की।" अन्य परिजनों ने भी अस्पताल पर गंभीर लापरवाही के आरोप लगाए हैं।

परिजनों ने जिला प्रशासन से की जांच कराकर कार्रवाई की मांग

इस दर्दनाक घटना के बाद परिजनों और स्थानीय निवासियों ने प्रशासन से मामले की जांच और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की है। अस्पताल प्रशासन ने घटना की जांच का भरोसा दिया है, लेकिन इस हादसे ने झांसी और आसपास के इलाकों में गहरा सदमा और गुस्सा पैदा कर दिया है।

 

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