
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 30 किलोमीटर दूर बाराबंकी का एक गांव खुशी से झूम रहा है. नंबर और ग्रेड की होड़ के इस दौर में, एक छात्र की दसवीं कक्षा की सफलता ने पूरे गांव में उत्सव का माहौल बना दिया है. गांव से दसवीं बोर्ड परीक्षा पास करने वाले पहले छात्र रामकेवल के लिए यह जश्न बनता भी है.
रामकेवल निसाम्पुर गांव का रहने वाला है, जहां दलित समुदाय के लगभग 300 लोग रहते हैं. वह अपने परिवार के चार बच्चों में सबसे बड़ा है. परिवार का पेट पालने के लिए दिन में छोटे-मोटे काम करता था और परीक्षा की तैयारी के लिए रात-रात भर पढ़ाई करता था.
रामकेवल ने बताया कि वह शादियों में लाइट का काम करता है और रोजाना 250 से 300 रुपये कमाता है. रविवार को बाराबंकी के जिलाधिकारी शशांक त्रिपाठी ने रामकेवल और उसके माता-पिता को सम्मानित किया. उन्होंने पढ़ाई में हर संभव मदद का आश्वासन दिया. उन्होंने कहा कि हम ऐसे इलाकों की पहचान करने की कोशिश कर रहे हैं जहां परिवारों को बुनियादी शिक्षा हासिल करने में कठिनाई हो रही है. इस मामले में, जिला विद्यालय निरीक्षक ओ पी त्रिपाठी ने बच्चे पर ध्यान दिया और यह सुनिश्चित किया कि वह नियमित रूप से स्कूल जाए.
रामकेवल ने बताया कि उसकी मां एक स्कूल में खाना बनाती है और पिता मजदूरी करते हैं. उनकी मदद के लिए, वह शादियों में लाइट का काम करता था और रोजाना 250 से 300 रुपये कमाता था. देर रात घर लौटने के बाद, वह घर के एक सोलर लैंप की रोशनी में कम से कम दो घंटे पढ़ाई करता था. गांव के कुछ लोगों ने उसका मजाक उड़ाया था कि वह कभी हाई स्कूल पास नहीं कर पाएगा. लेकिन उसने कड़ी मेहनत करके उन्हें गलत साबित कर दिया.
रामकेवल निसाम्पुर के पास अहमदपुर के एक सरकारी स्कूल में पढ़ता है. परिवार की कम आय के बावजूद, रामकेवल के तीन अन्य भाई-बहन भी पढ़ाई कर रहे हैं. एक नौवीं कक्षा में, दूसरा पांचवीं कक्षा में और सबसे छोटा पहली कक्षा में है. रामकेवल की मां पुष्पदेवी ने कहा कि हमारे पास खाने के भी लाले हैं. छोटी-छोटी चीजों के लिए भी हमें संघर्ष करना पड़ता है. हमें विश्वास है कि शिक्षा से इसमें बदलाव आएगा.
डीआईओएस ओ पी त्रिपाठी ने छात्र के दृढ़ संकल्प की सराहना की. रामकेवल उस गांव से बोर्ड परीक्षा में बैठने वाला एकमात्र छात्र था. निसाम्पुर गांव के 2-3 किलोमीटर के दायरे में कई सरकारी स्कूल हैं, लेकिन बहुत कम छात्र दाखिला लेते हैं. ओ पी त्रिपाठी ने कहा कि ज्यादातर लोग गरीब हैं और दिहाड़ी मजदूर या मजदूर के रूप में काम करते हैं.
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