
Rishikesh Shiva temples Sawan visit: हरियाली की बौछारों के बीच जब बादलों की गड़गड़ाहट गूंजती है और हवा में भक्ति की सुगंध घुल जाती है, तो यह संकेत होता है सावन महीने की शुरुआत का वह महीना जो समर्पित है भगवान शिव को। उत्तराखंड की आध्यात्मिक राजधानी ऋषिकेश, सावन के आगमन के साथ शिवभक्तों से भर जाती है। यहां के प्राचीन शिव मंदिर ना केवल श्रद्धा का केंद्र हैं, बल्कि हजारों वर्षों से जुड़ी कथाओं और मान्यताओं से भी समृद्ध हैं।
सावन, हिन्दू पंचांग का पांचवां महीना, भगवान शिव को अत्यंत प्रिय माना गया है। ऋषिकेश, जो गंगा नदी के किनारे बसा है, न सिर्फ योग और तप का केंद्र रहा है बल्कि शिवभक्तों के लिए भी तीर्थ बन चुका है। यहां के मंदिरों में सावन के दौरान विशेष पूजा-अर्चना, रुद्राभिषेक और रात्रि जागरण का आयोजन होता है, जो भक्तों को अलौकिक अनुभव प्रदान करता है।
ऋषिकेश से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर सावन के सबसे प्रमुख मंदिरों में गिना जाता है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय निकले विष को भगवान शिव ने यहीं आकर ग्रहण किया था और ठंडक पाने के लिए 60,000 वर्षों तक ध्यानस्थ हो गए थे। यही कारण है कि इस स्थान को अत्यंत पवित्र माना जाता है।
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गंगानगर स्थित सोमेश्वर महादेव मंदिर भी सावन में भक्तों का प्रमुख केंद्र बनता है। यह मंदिर उस स्थान पर स्थित है जहां सतयुग में सोम ऋषि ने कठोर तप किया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और यह स्थान 'सोमेश्वर' कहलाया। यहां का शिवलिंग स्वयंभू माना जाता है।
वीरभद्र क्षेत्र में स्थित वीरभद्र महादेव मंदिर की कथा अत्यंत रोचक है। राजा दक्ष के यज्ञ में माता सती के आत्मदाह के बाद, शिव ने अपनी जटा से वीरभद्र को उत्पन्न किया था। वीरभद्र ने दक्ष का सिर काटा और जब उनका क्रोध शांत नहीं हुआ, तो शिव ने उन्हें यहीं गले लगाकर शांत किया। उसी स्थान पर शिवलिंग के रूप में वीरभद्र विराजमान हुए।
चंद्रेश्वर नगर स्थित यह मंदिर उस समय का साक्षी है जब चंद्रमा को श्राप मिला था और उन्होंने भगवान शिव की कठोर आराधना की थी। वर्षों की तपस्या के बाद शिव ने उन्हें दर्शन दिए और श्राप से मुक्ति दिलाई। यह स्थान आज भी भक्ति और तपस्या का प्रतीक माना जाता है।
राम झूला से थोड़ी दूरी पर स्थित यह मंदिर भगवान शिव की बारात से जुड़ी कथा को समेटे हुए है। मान्यता है कि जब शिव विवाह के लिए माता सती संग बारात लेकर निकले, तो राजा दक्ष ने उन्हें इसी स्थान पर ठहराया था। इस मंदिर को भूतेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है।
ऋषिकेश के ये मंदिर ना सिर्फ भक्ति की शक्ति का प्रतीक हैं, बल्कि यहां की शुद्ध हवा, गंगा का प्रवाह और आध्यात्मिक ऊर्जा भक्तों को आत्मिक शांति का अनुभव कराते हैं। सावन में यहां दर्शन करने से माना जाता है कि भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
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Disclaimer: यह लेख धार्मिक मान्यताओं और लोककथाओं पर आधारित है। Asianet Hindi इन तथ्यों की आधिकारिक पुष्टि नहीं करता। पाठकों से अनुरोध है कि वे इसे आस्था और सामान्य जानकारी के उद्देश्य से पढ़ें।
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