
टेक डेस्क। बीपीसी ग्लोबल (BPC Global) की ओ-सिटी और स्मार्ट सिटी डिविजन ने दुनिया भर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के सिस्टम को ज्यादा कारगर बनाने के लिए कुछ बेहद ही खास कदम उठाए हैं। इसने हाल ही में Visa Ready से टाईअप किया है, जो कोविड-19 महामारी में कॉन्टैक्टलेस ट्रैवल के प्रोजेक्ट को पूरा करने में कारगर साबित होगा। हमने भारत में पब्लिक ट्रैवल और इसके डिजिटाइजेशन के भविष्य को लेकर चित्रजित चक्रबर्ती से बात की है। चित्रजित चक्रबर्ती जीसीसी, साउथ ईस्ट एशिया, भारत, बीपीसी बैंकिंग टेक्नोलॉजीज के सेल्स हेड हैं। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के अंश।
सवाल: आज अर्बन मोबिलिटी की प्रायोरिटी कितना महत्व रखती है?
जवाब: शहर लगातर बदल रहे हैं। ग्रामीण इलाकों से रोजगार के लिए बड़े पैमाने पर लोग आ रहे हैं। इससे शहरों का मौजूदा ट्रांसपोर्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रभावित हो रहा है। ऐसा अनुमान जाहिर किया गया है कि साल 2030 तक दुनिया की आबादी का 60 फीसदी हिस्सा शहरों में रहने लगेगा। शहरों में मध्य वर्ग की आबादी बढ़ेगी। मध्य वर्ग ऑटोमोबाइल्स में काफी निवेश करेगा। इससे ट्रैफिक की समस्या तो बढ़ेगी ही, प्रदूषण का स्तर भी काफी बढ़ जाएगा। शहरों का मौजूदा इन्फ्रास्ट्रक्चर व्हीकल्स की बड़ी संख्या का बोझ नहीं उठा सकेगा। यही कारण है कि सरकारों ने अर्बन मोबिलिटी को अपने टॉप एजेंडा पर रखा है। नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर नए बिजनेस मॉडल को लेकर एक्सपेरिमेंट किए जा रहे हैं, ताकि शहरों को ज्यादा आकर्षक और सुविधाजनक बनाया जा सके। कई उद्योगों ने अपने स्ट्रक्चर को डिजिटल फॉर्म में बदल दिया है। अब समय आ गया कि शहर भी इसे अपनाएं।
सवाल: वो क्या मुख्य बातें हैं जो पॉलिसी मेकर्स, गवर्नमेंट अथॉरिटीज और कंपनियों को ध्यान में रखनी चाहिए, जिससे अर्बन मोबिलिटी में किसी तरह की बाधा नहीं आए?
अर्बन मोबिलिटी में सुधार लाने के लिए तीन प्रमुख बातों पर ध्यान देना जरूरी है।
पहला है इकोसिस्टम। प्राइवेट और पब्लिक एजेंसियों को पूरे शहर में एक यूनिफाइड मल्टी मॉडल और बिना किसी बाधा वाली व्यवस्था शुरू करनी होगी। मोबिलिटी की समस्या का समाधान करने की जिम्मेदारी सिर्फ ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर्स की ही नहीं है। इसके लिए पॉलिसी मेकर्स को भी इकोसिस्टम के क्षेत्र में काम करने वालों का सहयोग करना होगा। अर्बन मोबिलिटी के लिए सहयोग के आधार पर मिशन चलाना होगा।
दूसरा फैक्टर है टेक्नोलॉजी। टेक्नोलॉजी में जो विकास हुआ है, उससे यह बड़ा अवसर सामने आया है कि यह फिर से सोचा जा सके कि शहरों में लोग कैसे रहें। टेक्नोलॉजी के जरिए ट्रैफिक के सिस्टम में बदलाव लाया जा सकता है। इससे शहरों में लोग मोबाइल फोन के जरिए बेहतर प्लान कर सकते हैं। शहरों में पब्लिक ट्रांजिट सिस्टम को डिजिटलाइज किया जा रहा है। इसमें पेमेंट के तरीके का खास ध्यान रखा जा रहा है, ताकि लोगों को लंबी लाइन लगाने की जरूरत नहीं रहे और इन्फ्रास्ट्रक्चर में बहुत ज्यादा निवेश नहीं करना पड़े। ओपन लूप टेक्नोलॉजी का तेजी से विकास हो रहा है। इसमें कॉन्टैक्टलेस कार्ड, क्यूआर कोड और फेशियल पेमेंट के तरीके का इस्तेमाल किया जाता है। इससे काफी बदलाव आएगा।
तीसरा है वाहनों के विकल्प। इसके लिए कई तरीके अपनाए जा सकते हैं। ट्रेन, मेट्रो, बस और ट्रामवे का आपस में जुड़ा बेहतर नेटवर्क होना जरूरी है। इसके साथ ही शेयर राइड और दूसरे ऑन डिमांड मोबिलिटी सर्विेसेस भी होने चाहिए। जैसे ही हमारे बिहेवियर पैटर्न में बदलाव होगा, इनका भी विस्तार होगा।
सवाल: . ट्रांसपोर्टेशन के क्षेत्र में भारत का विकास किस हद तक हुआ है?
जवाब: शहरीकरण की वर्तमान गति को देखते हुए भारत में पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर ध्यान देना होगा। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद शहर केंद्रित आर्थिक विकास को मजबूती से शुरू किया गया और 'स्मार्ट सिटी' के विकास की बात की गई। भारत में केंद्र सरकार ने 100 से भी ज्यादा स्मार्ट सिटी के फ्लैगशिप प्रोग्राम लॉन्च किए और 1 लाख की आबादी वाले 500 शहरों के लिए अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन प्रोग्राम की शुरुआत की। अभी इन्फ्रास्ट्रक्चर के आधुनिकीकरण का काम पूरी तरह शुरू नहीं हुआ है। ट्रांसपोर्ट के नए सिस्टम विकसित हो रहे हैं। दिल्ली मेट्रो की सफलता के बाद भारत के कई शहरों में मेट्रो रेल नेटवर्क शुरू किए जाने की योजनाओं पर काम चल रहा है। फिलहाल, भारत अपने ट्रांजिट सिस्टम में सुधार कर रहा है और इन्फ्रास्ट्रक्चर में काफी निवेश किया जा रहा है। राज्य स्तर पर ट्रांसपोर्ट की नीतियों में बदलाव लाया जा रहा है और इसकी क्षमता बढ़ाई जा रही है, उदाहरण के लिए गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में। इसका उद्देश्य शहरों में हरियाली को बढ़ावा देना और बढ़ती आबादी की जरूरतों का ध्यान रखना है।
सवाल: अर्बन ट्रांजिट सिस्टम के डिजिटल होने में क्या चुनौतियां हैं? कैसे O-City इस चैलेंज को पूरा करेगी?
जवाब: तकनीकी दृष्टि से सबसे बड़ी चुनौती कई राज्य सरकारों द्वारा संचालित की जा रही ट्रांसपोर्ट सर्विसेस में ओपन लूप प्लेटफॉर्म का नहीं होना है। जब हम सभी स्तर के लोगों को सुविधा देने की बात करते हैं तो ओपन लूप पेमेंट सिस्टम का होना बहुत जरूरी है। इससे क्लाइंटअपने क्रेडिट-डेबिट कार्ड और वॉलेट्स से पेमेंट कर सकता है। O-City बड़े स्तर पर और पूरी तरह ओपन लूप पेमेंट प्लेटफॉर्म मुहैया कराती है। यह अलग-अलग पेमेंट नेटवर्क से जुड़ कर क्लाइंट को पूरी सुविधा दिलाती है।
अर्बन ट्रांजिट सिस्टम को डिजिटल बनाना सिर्फ टेक्नोलॉजी से ही जुड़ा हुआ नहीं है। यह सांस्कृतिक बदलाव को भी दिखलाता है। एक टेक्नोलॉजी फर्म और एक ऑपरेटर के रूप में हम यह भली-भांति समझते हैं कि पब्लिक और प्राइवेट एजेंसियों को अपने यूजर्स और साथ ही साथ इम्पलॉइज, जैसे बस ड्राइवर्स को यह सिखाने की जरूरत है कि कैसे कैशलेस सिस्टम को अपनाया जाए। भारत में किए गए डिमोनेटाइजेशन ने लोगों को इस बात के लिए तैयार कर दिया है कि वे अपनी रोजाना जरूरत की चीजें खरीदने के लिए डिजिटल पेमेंट के तरीके अपनाएं। दूसरी चुनौती सहयोगी दृष्टिकोण अपनाने की है। कोई भी शहर तब तक स्मार्ट नहीं हो सकता, जब तक कि सही तरीके से को-ऑर्डिनेशन नहीं हो। इसमें राज्यों को खास भूमिका निभानी होगी। कोविड महामारी की वजह से अर्बन मोबिलिटी को लेकर दोबारा सोचना जरूरी हो गया है। इसके साथ ही सिटी प्लानिंग और पब्लिक ट्रांजिट सिस्टम में तेजी से डिजिटलाइजेशन बढ़ेगा।
सवाल: मोबिलिटी के लिए O-City का विजन क्या है?
जवाब: हमारी अवधारणा स्मार्ट, डिजिटल और कनेक्टेड सिटीज की है, जहां लोग खुल कर घूम सकें और एक बटन टच करके, टैप करके या स्वाइप करके बिना कैश के अपना काम कर सकें। इसमें जर्नी की प्लानिंग से लेकर टिकट लेने और पब्लिक ट्रांसपोर्ट का यूज करने से लेकर रोजाना की सारी चीजें मोबाइल से जुड़ी रहेंगी। हमारा यह भी मानना है कि मोबिलिटी लंबे समय तक अर्बन नहीं रहेगी। यह शहरों से ग्रामीण क्षेत्रों तक विकसित होगी। मोबिलिटी हर क्षेत्र में बढ़ेगी। यही वजह है कि हम छोटे शहरों को सपोर्ट देते हैं और उन्हें सबसे विकसित टेक्नोलॉजी से लैस कर वहां के लोगों को बेहतर सर्विस देते हैं। टेक्नोलॉजी से उन्हें बढ़िया एक्सपीरियंस मिल सकता है। मोबिलिटी मार्केट में अब सुपर ऐप्स आ रहे हैं। ओपन एपीआई कन्फिग्युरेशन (API Configuration) से किसी दूसरे सिस्टम से जुड़ना संभव हुआ है। मोबिलिटी सर्विसेस के इकोसिस्टम का यह एक कम्पोनेंट है। यह एक ही ऐप से मैनेज किया जाता है। इसके साथ ही सोशल कम्पोनेंट भी काफी मायने रखता है, क्योंकि इसी के आधार पर कीमतें तय होती हैं और यूजर के प्रोफाइल को देख कर उन्हें छूट भी दी जाती है।