माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म ट्विटर खरीदने से पहले एलन मस्क ने यह जरूर कहा था कि वो ट्विटर को फ्री स्पीच का खुला मंच बनाना चाहते हैं। उन्होंने उस वक्त मॉडरेटर्स की तरफ से ट्विटर के कॉन्टेंट को दबाए जाने का आरोप भी लगाया था।
टेक डेस्क : हाल ही में माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म ट्विटर (Twitter) को खरीदने के बाद एलन मस्क (Elon Musk) लगातार चर्चाओं में हैं। उनकी घोषणाएं हर दिन मीडिया की हेडलाइन बनीं। इसके साथ ही ट्विटर पर फेक न्यूज, अभद्र कॉन्टेंट से लेकर बड़ी संख्या में कर्मचारियों को निकालने तक के वाकये ने खूब सुर्खियां बटोरीं। इसके साथ ही ट्विटर के कामकाज के तरीके से लेकर पॉलिसी, व्यवहार, सोशल मूवमेंट में भागीदारी जैसे टॉपिक्स पर भी जमतर चर्चाएं हुईं। मस्क के मालिकाना हक के बाद से अब तक ट्विटर पर हुए 5 बड़े बदलाव और उसके इफेक्ट्स के बारें में जानें..
फ्री स्पीच, झुकाव और तथ्यों में बदलाव
एलन मस्क के ट्विटर खरीदने के बाद, आरोप लगे कि ट्विटर कहीं न कहीं कथित तौर पर राइट विंग के पक्ष में काम करता है। हालांकि, मस्क ने न तो इस पर कोई प्रतिक्रिया दी और ना ही किसी तरह का आंकड़ा पेश किया। ये बात अलग है कि ट्विटर खरीदने से पहले एलन मस्क ने यह जरूर कहा था कि वो ट्विटर को फ्री स्पीच का खुला मंच बनाना चाहते हैं। उन्होंने मॉडरेटर्स द्वारा ट्विटर के कॉन्टेंट को दबाए जाने का आरोप भी लगाया था। Indiana यूनिवर्सिटी के सोशल मीडिया रिसर्चर ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि, ट्विटर पर किसी कॉन्टेंट की लोकप्रियता के हिसाब से उसकी रीच को बढ़ाने या घटाने का काम एल्गोरिद्म की तरफ से बेहतरीन तरीके से पूरा किया जाता है। बीते कुछ समय में कॉन्टेंट मॉडरेशन के जरिए हेट स्पीच, फेक न्यूज वगैरह पर लगाम लगाने की कोशिश की गई है। इन मॉडरेशन नीतियों को कमजोर करने से हेट स्पीच का गलत इस्तेमाल फिर से बड़े स्तर पर बढ़ सकता है।
हेल्थ से जुड़ी फेक जानकारी
नवंबर, 2022 में, ट्विटर ने एक पोस्ट से यह जानकारी दी थी कि अब वह कोविड से जुड़ी गलत सूचना के खिलाफ अपनी नीति को लागू नहीं करेगा। मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी की सोशल मीडिया रिसर्चर ने बताया कि इस प्लेटफार्म पर चिकित्सा से जुड़ी गलत सूचनाओं को भी आसानी से प्रचारित किया जा सकता है और लोगों तक पहुंचाया जा सकता है। इससे लोगों को जान का नुकसान होने का खतरा भी होता है।
उम्मीद की किरण
एक रिपोर्ट के मुताबिक, ट्विटर पर हर ट्वीट सेव रहता है और आसानी से एक्सेस भी किया जा सकता है। इससे हर व्यक्ति के निजी विचारों, जरूरतों के बारे में डेटा आसानी कलेक्ट भी किया जा सकता है। यह डेटा पॉलिसी मेकर्स के लिए बेहद जरूरी डाक्यूमेंट की तरह होता है। जैसे, पब्लिक हेल्थ रिसर्च करने वाले लोगों ने एचआईवी और एचआईवी की घटनाओं के बारे में ट्वीट करने वाले लोगों के बीच एक बड़ा महत्वपूर्ण संबंध पाया है। ट्विटर के स्पेस पर क्राउससोर्सिंग भी बेहतर तरीके से की जा सकी है। कोविड हो या फिर कोई और इमरजेंसी, ट्विटर के स्पेस पर जानकारी देने वालों और मदद करने वालों ने अच्छा काम किया है।
यूजर्स तक पहुंची इंफॉर्मेशन
ट्विटर पर पीड़ितों ने अपने बारे में खुलकर जानकारी भी दी है। हाल ही में, ब्लैक अमेरिकंस ने अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों के बारे में खुलकर जानकारी दी। जिनमें उन्हें धमकाने, मारपीट करने, डराने, गैर जरूरी मामलों में फंसाने जैसे मामले भी देखे गए हैं। ट्विटर पर ब्लैक अमेरिकन लोगों पर पुलिस के अत्याचारों के खिलाफ लोगों ने खुलकर विरोध जताया, आंकड़े पेश किए, तस्वीरें और वीडियो के जरिए सच्चाई सभी तक पहुंचाने की कोशिश की। इसलिए इसे ब्लैक ट्विटर तक का नाम भी दिया गया।
क्या ट्विटर स्पेस छोड़कर जा सकते हैं यूजर्स
सोशल मीडिया रिसर्चर ने अपनी रिपोर्ट में इस बारे में लिखते हुए बताया कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म से लोगों ने जाने की उम्मीद न के बराबर है। उनके मुताबिक, ट्विटर स्पेस कोई एक कम्युनिटी नहीं है, बल्कि कई सारी अलग-अलग कम्युनिटी को मिलाकर एक नया स्पेस बना है। यहां पर लोग अपने विचारों, कोशिशों, तकलीफों, आरोपों के बारे में खुलकर अपनी बात रखते हैं। लोगों के लिए ये एक खुले में जीने का अवसर देने वाली जगह है। फेक न्यूज, मीडिया ट्रायल, कॉन्टेंट लॉस, हेट स्पीच जैसी चुनौतियों के बावजूद ट्विटर का स्पेस आने वाले समय में और ज्यादा बढ़ने की उम्मीद है।
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