
Shubhanshu Shukla Return Updates : 15 जुलाई की दोपहर 3 बजे भारतीय स्पेस हिस्ट्री में एक नया चैप्टर जुड़ गया। भारत के एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला, एक्सियम मिशन 4 (Axiom 4 Mission) के तहत 20 दिन तक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) में रहने के बाद पृथ्वी पर लौट आएं। उनका सफर सिर्फ एक मिशन नहीं, बल्कि उन टेक्नोलॉजी की झलक था, जो पथ्वी पर मुमकिन नहीं होता है। ऐसे में आइए जानते हैं इंटरनेशन स्पेस स्टेशन (International Space Station) की वो 7 सुपरह्यूमन टेक्नोलॉजी, जिनके बीच शुभांशु शुक्ला ने 20 दिन बिताए...
ISS में गुरुत्वाकर्षण (Gravity) लगभग ना के बराबर होता है। वहां हर चीज हवा में तैरती है। यही कारण है कि वैज्ञानिक रिसर्च और मानव शरीर पर ग्रैविटी का प्रभाव यहां बेहतर तरीके से स्टडी किया जाता है। ये अनुभव पृथ्वी पर कहीं भी नहीं दोहराया जा सकता।
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ISS पूरी तरह से सोलर एनर्जी से चलता है। इसके सोलर पैनल्स हर वक्त सूर्य की दिशा में खुद को एडजस्ट करते हैं और पूरा स्टेशन 24x7 इसी एनर्जी से बिना किसी जनरेटर या फ्यूल के ऑपरेट होता है।
ISS में इस्तेमाल किया गया पानी, यहां तक कि पेशाब को भी फिल्टर करके पीने योग्य बनाया जाता है। यह धरती (Earth) पर नामुमकिन जैसा लगता है, लेकिन स्पेस में पानी रिसाइकल करना एक जबरदस्त टेक्नोलॉजी है।
स्पेस स्टेशन में एक फ्लोटिंग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) असिस्टेंट CIMON होता है, जो एस्ट्रोनॉट्स को रिसर्च, डॉक्यूमेंटेशन और साइकोलॉजिकली हेल्प करता है। यह सुनने में किसी स्पेस फिल्म से कम नहीं है।
आईएसएस में खाना डिहाइड्रेटेड और वैक्यूम पैक्ड होता है, जिसे गर्म पानी मिलाकर खाया जाता है। माइक्रोग्रैविटी में खाना पकाना नहीं, खाना तैरता है और उसे पकड़ना भी एक मिशन होता है।
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में हवा को फिल्टर करने के लिए खास Carbon Dioxide Scrubbers और Oxygen Generation Systems होते हैं, जो स्पेस के अंदर इंसान की जिंदगी बनाए रखने की असली रीढ़ हैं।
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में हर चीज रीसायकल होती है। खाना, कपड़े और यहां तक कि वेस्ट भी रिसायकल किया जाता है, क्योंकि किसी भी रिसोर्स का एक-एक ग्राम ISS में कीमती होता है।