अमरुल्ला सालेह (Amrullah Saleh) का जन्म अक्टूबर 1972 में पंजशीर में हुआ। वे कम उम्र में ही अनाथ हो गए। फिर वे तालिबान के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले नेता अहमद शाह मसूद से मिले।
काबुल. अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद अशरफ गनी देश छोड़कर भाग गए। ऐसे में एक नेता ऐसा था जो डटा रहा। देश छोड़कर भागा नहीं, बल्कि तालिबान के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया। नाम है अमरुल्ला सालेह। आखिर कौन है अमरुल्ला सालेह, जो अफगानिस्तान में एक रोशनी के रूप में देखा जा रहा है। कयास लगाए जा रहे हैं कि ये ही तालिबान को मुंहतोड़ जवाब देगा।
पंजशीर से शुरू होगी तालिबान के खिलाफ बगावत
तालिबान के खिलाफ अफगानिस्तान के पंजशीर में बगावत की तैयारी की जा रही है। ये वह जगह है जहां पर अभी तक तालिबान कब्जा नहीं कर सका है। खुद को कार्यकारी राष्ट्रपति घोषित कर चुके अमरुल्ला सालेह इस वक्त अफगानिस्तान के पंजशीर में ही हैं और तालिबान के खिलाफ रणनीति बना रहे हैं। सालेह ने कहा, मैं अपने देश के लिए खड़ा हूं और युद्ध खत्म नहीं हुआ है।
पंजशीर में ही हुआ अमरुल्ला सालेह का जन्म
अमरुल्ला सालेह का जन्म अक्टूबर 1972 में पंजशीर में हुआ। वे कम उम्र में ही अनाथ हो गए। फिर वे तालिबान के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले नेता अहमद शाह मसूद से मिले। उन्हीं के साथ लड़ाई तेज कर दी।
सालेह की बहन को तालिबान ने प्रताड़ित किया
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमरुल्ला सालेह की बहन को 1996 में तालिबान लड़ाकों ने प्रताड़ित किया था। 1997 में सालेह को ताजिकिस्तान में अफगानिस्तान के दूतावास में नौकरी मिल गई। वहां उन्होंने विदेशी इंटेलीजेंस के साथ मिलकर काम किया। 2004 में वे अफगानिस्तान खुफिया एजेंसी एनडीएस के चीफ बन गए।
इस दौरान उन्होंने तालिबान के खिलाफ कई खुफिया जानकारी इकट्टा की। उन्होंने उन संगठनों की भी जानकारी ली, जो अफगानिस्तान के अंदर से और बाहर से तालिबान की मदद कर रहे थे। उन्होंने एक मीटिंग में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल मुशर्रफ से कहा था कि ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में छिपा है। यह सुन जनरल बैठक से बाहर चले गए।
साल 2010 में एनडीएस से इस्तीफा दे दिया
सालेह ने 6 जून 2010 को एक आतंकवादी हमले के बाद एनडीएस से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा, हमले के बाद उन्होंने करजई का विश्वास खो दिया है। 2011 में उन्होंने हामिद करजई के खिलाफ एक अभियान शुरू किया। उनकी नीतियों की आलोचना करना शुरू कर दिया। इसके बाद बसेज-ए मिल्ली (राष्ट्रीय आंदोलन) की स्थापना की।
सालेह ने अशरफ गनी से हाथ मिलाया
साल 2014 में गनी सत्ता में आए तो उन्होंने सालेह को इंटरिम मिनिस्टर बना दिया। लेकिन 2019 में उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया। चुनाव में अशरफ गनी फिर से जीते और सालेह को अफगानिस्तान का पहला उपराष्ट्रपति नियुक्त किया गया। अशरफ गनी के देश छोड़ देने के बाद उन्होंने फिर से तालिबान के खिलाफ लड़ाई का मोर्चा संभाल लिया है।
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