अंटार्कटिका में पिरामिड या प्राकृतिक संरचना? रहस्य का खुलासा

अंटार्कटिका में पिरामिड जैसी संरचनाओं की तस्वीरें वायरल होने के बाद, कई लोगों ने प्राचीन सभ्यताओं के होने का दावा किया। हालांकि, वैज्ञानिकों ने इसे प्राकृतिक पर्वत संरचना बताया है जो लाखों सालों के कटाव और बर्फ के प्रभाव से बनी है।

जलवायु परिवर्तन के कारण अंटार्कटिका में बर्फ तेजी से पिघल रही है, और पहले बर्फ से ढके इलाके अब हरे-भरे हो गए हैं। इसी बीच, अंटार्कटिका में मानव निर्मित पिरामिड होने का दावा करते हुए कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं। इलुमिनाटिबोट नाम के एक एक्स हैंडल से अंटार्कटिका के पिरामिड की तस्वीर और मिस्र के पिरामिड की तस्वीर को एक साथ पोस्ट करते हुए लिखा गया, 'अंटार्कटिका का विशाल पिरामिड इन कोऑर्डिनेट्स पर देखा जा सकता है: 79°58'39.2"S, 81°57'32.2"W. बेशक, इसे आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी गई है, क्योंकि इससे हमारा पूरा इतिहास बदल जाएगा।' इस पोस्ट को अब तक 14 लाख से ज्यादा लोग देख चुके हैं। 

फोटो में हवा के कारण बर्फ में तीन मुख्य संरचनाएं और कुछ छोटी संरचनाएं दिखाई दे रही हैं, जो दिखने में पिरामिड जैसी हैं। तस्वीर वायरल होने के बाद, कई लोगों ने अंटार्कटिका में पिरामिड होने पर सवाल उठाए। कुछ लोगों ने दावा किया कि प्राचीन मानव अंटार्कटिका में रहते थे, और यह पिरामिड जैसी संरचना किसी प्राचीन सभ्यता द्वारा बनाई गई है। 

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वहीं, कुछ लोगों ने ऐसे किसी पिरामिड के होने से इनकार किया। उन्होंने बताया कि 79°58'39.2"S, 81°57'32.2"W कोऑर्डिनेट अंटार्कटिका की एल्सवर्थ पर्वत श्रृंखला को दर्शाते हैं। 400 किलोमीटर लंबी इस पर्वत श्रृंखला में कई चोटियाँ हैं। इस क्षेत्र, जिसे "हेरिटेज रेंज" कहा जाता है, से 500 मिलियन वर्ष पुराने जीवाश्म मिले हैं, यानी कई साल पहले शोधकर्ता यहां आ चुके हैं। 

भूवैज्ञानिकों का कहना है कि लाखों सालों के कटाव के कारण पहाड़ों की यह संरचना बनी है। साथ ही, तेज हवाओं और बर्फ ने भी पहाड़ के आकार को प्रभावित किया है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एरिक रिग्नॉट का कहना है कि पिरामिड जैसी आकृति महज एक संयोग है। जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंसेज के भूवैज्ञानिक डॉ. मिच डार्सी भी यही मानते हैं। 'यह एक ग्लेशियर या बर्फ की चादर पर उभरी हुई चट्टान की चोटी है। इसका आकार पिरामिड जैसा है, लेकिन यह मानव निर्मित नहीं है।' 4,150 फीट ऊंचा यह पहाड़ सालों से वैज्ञानिकों और लोगों को आकर्षित करता रहा है।

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