सुबह 5.30 बजे लगने वाले 'टॉर्चर' स्कूल : यहां सड़कों पर 'जॉम्बी' की तरह नजर आते हैं स्कूली छात्र, वजह - गवर्नर का अजीब फरमान

इस नियम के लागू होते ही विवादों ने जन्म लेना शुरू कर दिया है। इस अजीब समय से छात्रों के पेरेंट्स काफी नाराज हैं। उनका कहा है कि बच्चों की नींद पूरी नहीं हो रही है और सुबह 5.30 स्कूल पहुंचने के लिए बच्चों को अंधेरे में निकलना होता है

Piyush Singh Rajput | Published : Mar 15, 2023 10:45 AM IST

ट्रेंडिंग डेस्क. इंडोनेशिया का कुपांग इन दिनों बच्चों के स्कूल के अजीब नियम को लेकर चर्चा में है। जितने बजे ज्यादातर लोग सोकर उठने का सोच भी नहीं सकते उतने समय पर यहां स्कूल लगाया जा रहा है। हैरानी की बात यह है कि यहां स्कूल की पहली क्लास सुबह 5.30 बजे लगाई जा रही है। जिसकी वजह से कई स्कूली छात्र सुबह सूर्योदय से पहले सड़कों पर जॉम्बी की तरह नजर आते हैं। बच्चों की तुलना जॉम्बी से इसलिए की जा रही है क्योंकि नींद पूरी न होने की वजह से सभी बेमन से स्कूल पहुंचते हैं।

क्यों बनाया गया ये अजीब नियम?

दरअसल, यहां कुपांग शहर में गवर्नर विक्टर लाइस्कोदत ने ये अजीब नियम लाया है। इसे पायलट प्रोजेक्ट नाम दिया गया है जिसके तहत 10 स्कूलों में क्लास 12th के स्टूडेंट्स की क्लास सुबह 5:30 बजे से शुरू हो जाती है। गवर्नर विक्टर ने इस अजीब शेड्यूल के पीछे यह तर्क दिया कि ऐसा उन्होंने बच्चों में अनुशासन लाने के लिए किया है।

बच्चों और पेरेंट्स का बुरा हाल

दुनिया के कई देशों में स्कूल आमतौर पर सुबह 7 से 9 बजे के बीच शुरू होते हैं। इंडोनेशिया में बाकी क्लास इसी समय पर लग रही हैं पर 12वीं के बच्चों को जैसे टॉर्चर किया जा रहा है। ये नया नियम एक एक्सपेरिमेंट भी कहा जा रहा है। हालांकि, इसके लागू होते ही विवादों ने जन्म लेना शुरू कर दिया है। इस अजीब समय से छात्रों के पेरेंट्स काफी नाराज हैं। उनका कहा है कि बच्चों की नींद पूरी नहीं हो रही है और सुबह 5.30 स्कूल पहुंचने के लिए बच्चों को अंधेरे में निकलना होता है, जो खतरनाक है।

बच्चों के स्वास्थ्य पर होगा बुरा असर

इस मामले पर शिक्षा विशेषज्ञ मार्सेल रोबोट ने कहा इस नियम से शिक्षा की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं होगा। उल्टा बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा असर जरूर देखने को मिलेगा। उन्होंने कहा कि नींद पूरी नहीं होने से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होगी और वे जल्दी बीमार पड़ेंगे। वहीं शेड्यूल पूरी तरह बदल देने से उनमें चिड़चिड़ापन, व्यवहार में बदलाव व तनाव देखने को मिल सकता है।

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