जल्लीकट्टू खेल प्राचीनकाल से चला आ रहा है, इस खेल को तकरीबन दो हजार साल पुराना माना जाता है।
ट्रेंडिंग डेस्क. जल्लीकट्टू (Jallikattu) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। गुरुवार को सर्वोच्च अदालत ने इस खतरनाक खेल के लिए तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र सरकार को राहत दी है। कोर्ट ने कर्नाटक, तमिलनाडु व महाराष्ट्र के संशोधन अधिनियम को सही ठहराया है और माना कि ऐसे खेल राज्य की सांस्कृतिक विरासत हैं। आइए जानते हैं कि आखिर ये खतरनाक जल्लीकट्टू खेल क्या है और कहां से इसकी शुरुआत हुई।
आखिर क्या है जल्लीकट्टू?
जल्लीकट्टू तमिलनाडू में पोंगल पर खेला जाता है। इसे खतरनाक इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस खेल में गांव के तीन सबसे बूढ़े बैलों को खुला छोड़ दिया जाता है। बैलों के सींगों पर सिक्कों की थैली बांध दी जाती है और फिर उन्हें भड़काकर भीड़ की धकेल दिया जाता है। इसके बाद शुरू होता है असली खेल। गुस्साए बैल भीड़ की ओर दौड़ते हैं और लोगों को उनके सींगों पर बंधी सिक्के की थैली छुड़ानी होती है।
मिलता है बड़ा इनाम
इस खेल में काफी खतरा भी होता है। कई लोग गिरकर तो कई लोग बैलों के सींगों से बुरी तरह घायल भी हो जाते हैं। इस दौरान जो व्यक्ति बैल को कंट्रोल करके थैली निकाल लेता है वह इनाम का हकदार होता है। जल्दी शांत हो जाने वाले बैलों को कमजोर मान कर खेतीबाड़ी के काम में लगा दिया जाता है, जबकि जो बैल पकड़ में नहीं आते उनको ताकतवर समझा जाता है और नस्ल बढ़ाने के लिए रख लिया जाता है।
यहां से हुई जल्लीकट्टू खेल की शुरुआत
जल्लीकट्टू खेल प्राचीनकाल से चला आ रहा है, इस खेल को तकरीबन दो हजार साल पुराना माना जाता है। इसके माध्यम से महिलाएं अपने होने वाले पति को चुनती थीं। खेल में जो व्यक्ति ने बैलों को काबू कर लेता था उसे ताकतवर योद्धा माना जाता था और महिलाएं उनसे शादी कर लेती थी। एक और मान्यता के मुताबिक इसे पहले सल्लीकासू भी कहा जाता था। जो व्यक्ति लंबे समय तक बैल पर काबू रखता था उसे सिकंदर कहा जाता था। हालांकि समय के साथ-साथ इस खेल में बदलाव आने लगे और ये काफी खतरनाक भी हो गया।
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