मलाला की किताब से- कुरान में कहीं नहीं है कि महिला को बुर्का पहनना चाहिए, मैं सिर्फ अपना शॉल पहनूंगी

 मलाला शिक्षा के पक्ष में बोलने और इस्लामिक व्यवस्थाओं के विरोध की वजह से एक बार मौत के मुंह से बाहर निकली हैं। अपनी किताब में उन्होंने तमाम घटनाओं का उल्लेख भी किया है, मगर कर्नाटक में जब हिजाब प्रकरण और ड्रेस कोड लागू करने की बात आई तो उन्होंने अपना रुख बदल लिया। 

Asianet News Hindi | Published : Feb 9, 2022 12:42 PM IST / Updated: Feb 10 2022, 08:32 AM IST

नई दिल्ली। कर्नाटक में हिजाब प्रकरण के बीच नोबेल शांति सम्मान से नवाजी गई पाकिस्तानी सामाजिक कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई ने छात्राओं के समर्थन में अपना पक्ष रखा है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, स्कूलों में लड़कियों को हिजाब पहनकर प्रवेश देने से रोकना भयावह है। महिलाओं का उद्देश्य कम या ज्यादा बना रहता है। भारतीय नेताओं को मुस्लिम महिलाओं के हाशिए पर जाने से उन्हें रोकना चाहिए। 

हालांकि, मलाला शिक्षा के पक्ष में बोलने और इस्लामिक व्यवस्थाओं के विरोध की वजह से एक बार मौत के मुंह से बाहर निकली हैं। अपनी किताब में उन्होंने तमाम घटनाओं का उल्लेख भी किया है, मगर कर्नाटक में जब हिजाब प्रकरण और ड्रेस कोड लागू करने की बात आई तो उन्होंने अपना रुख बदल लिया। ऐसे ही कुछ घटनाओं का हम यहां जिक्र कर रहे हैं, जो उन्होंने अपनी किताब में बताए हैं। 

- शांति समझौते के बाद स्वात में हर कोई खुश था, लेकिन मुझे सबसे ज्यादा खुशी महसूस हुई, क्योंकि इसका सीधा सा मतलब था कि स्कूल फिर से खुल रहे हैं। हालांकि, तालिबान ने यह फरमान जरूर दिया कि लड़कियां तभी स्कूल जा सकेंगी, जब वो पर्दा करके बाहर निकलेंगी। हमने कहा, ठीक है अगर आप यही चाहते हैं, तो जब तक हमारा जीवन रहेगा, हम ऐसा करेंगे। 

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- स्कूल में एक दिन पैरेंट्स डे और पुरस्कार वितरण समारोह था। सभी लड़कों को भाषण देने के लिए प्रेरित किया गया। इसमें कुछ लड़कियां भी शामिल हुईं, मगर उन्हें सार्वजनिक रूप से बोलने की इजाजत नहीं थी। उन्हें अपनी क्लास में ही माइक्रोफोन पर बोलना था और आवाज स्पीकर के जरिए मुख्य हॉल तक पहुंच रही थीं। मतलब उन्हें सार्वजनिक रूप से आकर नहीं बोलना था। लेकिन मैं क्लास से बाहर मुख्य हॉल में आ गई और वहां सभी के सामने एक कविता पढ़ी। इसमें मैंने पैगंबर की तारीफ की। इसके बाद टीचर से पूछकर कुछ और कविताएं पढ़ीं। इसके बाद मैंने अपने बारे में कुछ बातें की और मलालाई के किस्से सुनाए। मैंने देखा, सामने बैठे लोग हैरानी से मुझे देख रहे थे। वे आपस में बातें कर रहे थे कि मैं बिना किसी पर्दे के बाहर क्यों और कैसे आ गई। 

- तालिबानी नेता फजलुल्लाह के निर्देंश अक्सर महिलाओं के लिए ही होते थे। वह जानता था कि यहां के पुरूष घर से दूर हैं। कोई कोयले की खदानों में काम करने गया है तो कोई खाड़ी देशों में काम करने। वह महिलाओं से कहता- औरतें सिर्फ घर की जिम्मेदारियों को पूरा करें। केवल आपात स्थिति में ही वह बाहर निकलें, लेकिन पर्दे में। 

- यह पहली बार था, जब मां ने फोटो खिंचवाया और वह पर्दें में नहीं थीं। उन्होंने अपना पूरा जीवन पर्दें में गुजारा और यह उनके त्याग और बलिदान का परिचायक था, जो बेहद कठिन था। 

- तालिबानी नेता अदनान राशिद ने मुझे पत्र भेजकर धमकी दी कि मैं शिक्षा के पक्ष में और इस्लामिक व्यवस्थाओं के खिलाफ जो आवाज उठा रही हूं, वह मेरे लिए घातक और जानलेवा साबित होगा। वह चाहते थे कि मैं बुर्का पहनूं और शिक्षा अगर हासिल करनी है तो मदरसे में जाऊं। लेकिन मैंने कहा कि तालिबान नहीं तय कर सकता कि मैं क्या पहनूं और अपना जीवन कैसे जियूं। 

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- मुझे ठीक-ठीक याद नहीं कि उस दिन असल में क्या हुआ था। यह जून का महीना था। हम उमरा करने अबू धाबी गए थे। यहां एक शॉपिंग मॉल में मां के साथ गई। वहां उन्होंने मक्का में प्रार्थना करने के लिए विशेष बुर्का खरीदा। मुझे यह नहीं चाहिए था। मैंने कहा, मैं सिर्फ अपना शॉल पहनूंगी कोई बुर्का नहीं, क्योंकि कुरान में यह कहीं नहीं है कि महिला को बुर्का पहनना चाहिए। 

- तालिबानी लड़ाके चीना बाजार में गश्त कर रहे थे। एक दिन मैं, मेरी मां और चचेरी बहन खरीदारी करने बाजार गए थे। तभी एक तालिबानी लड़ाके ने उन्हें घेर लिया। उसने कहा, अगर अगली बार मैंने तुम्हें बुर्का नहीं पहने देखा तो तुम्हें सरेआम पीटूंगा। मां डर गई। उन्होंने कहा- ठीक है, आगे से ऐसा ही करेंगे। हालांकि, मेरी मां हमेशा अपना सिर ढंकती थी। हम पश्तून हैं और बुर्का हमारी परंपरा का हिस्सा नहीं है। 

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