यूनिफॉर्म सिविल कोड की राह में क्या रोड़ा बन सकते हैं ये दो आर्टिकल, जानिए UCC लागू करने के लिए फिर क्या करना होगा?

देश में एक बार फिर यूनिफॉर्म सिविल कोड की चर्चा तेज हो गई है। इस कानून के लागू होते ही भारत में सभी नागरिकों के लिए एक ही कानून हो जाएगा। केंद्र सरकार इस कानून को लाने पर विचार कर रही है। जबकि कई राजनैतिक दल इसका विरोध कर रहे हैं।

ट्रेंडिंग डेस्क : देश में एक बार फिर यूनिफॉर्म सिविल कोड की चर्चा है। हर किसी की इस कानून पर अपनी राय है। मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने भोपाल में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का जिक्र किया और देशभर में इसकी बहस छिड़ गई। पीएम मोदी ने कहा- 'एक घर में दो कानून स्वीकार नहीं किए जा सकते हैं।' जिसके बाद कुछ लोग इसके पक्ष में आ गए और कुछ ने चिंता जाहिर की है। कई नेताओं का मानना है कि इस कानून के आने से भारत की विविधता को खतरा हो सकता है। इसमें पूर्वोत्तर राज्यों के ज्यादातर नेता शामिल हैं।

UCC पर पूर्वोत्तर राज्यों की चिंता क्या है

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दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 371(A) और 371(G) में पूर्वोत्तर राज्यों की जनजातियों को विशेष प्रावधानों की गारंटी दी गई है। ये अनुच्छेद संसद को उनके पारिवारिक कानूनों को खत्म करने वाले किसी भी कानून को लागू करने से रोकने का काम करती है। इसलिए वे यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध कर रहे हैं।

अनुच्छेद 371A क्या है

हमारे देश का हर राज्य की अलग भौगोलिक और संस्कृति स्थिति है। यही कारण है कि देश के कई राज्यों के लिए संविधान में विशेष प्रावधान हैं। राज्यों की संस्कृति, भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए ये प्रावधान किए गए हैं। अनुच्छेद 371(ए) और 371(जी) भी इसी तरह के प्रावधान हैं। अनुच्छेद 371 (ए) पूर्वोत्तर राज्यों में नागालैंड के लिए बनाया गया है। साल 1962 में संविधान के 13वें संशोधन के बाद इसे जोड़ा गया। नागाओं और केंद्र सरकार के बीच हुए 16 सूत्रीय समझौते के बाद यह सामने आया। इसके मुताबिक, देश की संसद नागालैंड विधानसभा की मंजूरी के बिना नागा समुदाय से जुड़े कोई भी कानून नहीं बना सकती है।

नागाओं के विशेष अधिकार क्या हैं

अनुच्छेद 371(ए) के तहत संसद नागा धर्म से जुड़ी सामाजिक परंपराओं, पारंपरिक नियमों पर कानून नहीं बना सकती है। इतना ही नहीं नागा परंपराओं द्वारा किए जाने वाले न्यायों और नागाओं की जमीन के मामलों में भी संसद को कानून बनाने का अधिकार नहीं है। इसी अनुच्छेद में नागालैंड के तुएनसांग जिले को भी विशेष दर्जा संसद ने दिया है। यही कारण है कि नागालैंड सरकार में यहां के लिए अलग से एक मंत्री बनाया जाता है। इस जिले के लिए 35 सदस्यों वाली स्थानीय काउंसिल भी गठित की जाती है।

अनुच्छेद 371G क्या है

अब बात अनुच्छेद 371(जी) की...यह मिजोरम राज्य के लिए बनाया गया है। 1986 में संविधान के 53वें संशोधन के बाद इस अनुच्छेद को मिजोरम के लिए जोड़ा गया। इसके तहत प्रावधान है कि देश की संसद मिजो समुदाय से जुड़े किसी भी नए कानून को मिजोरम विधानसभा की मंजूरी के बिना नहीं बना सकती है। संसद में मिजो समुदाय के रीति-रिवाजों, प्रशासन और न्याय के तरीकों के साथ ही जमीनों से जुड़े नए कानून बनाने से पहले राज्य की विधानसभा से मंजूरी लेनी होगी। जानकार बताते हैं कि अनुच्छेद 371 के बनाए गए कुछ नियम समय के साथ समय के साथ भले ही अप्रांसगिक (Irrelevant) हो चुके हैं लेकिन नार्थ-ईस्ट के राज्यों में आदिवासियों के पारंपरिक रीति-रिवाजों के लिए बनाए गए नियम आज भी प्रासंगिक हैं। इन्हीं का हवाला देकर यहां के ज्यादातर राजनीतिक दल समान नागरिक कानून संहिता का विरोध कर रहे हैं।

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