नेचर डॉट कॉम पर छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, कई लोग जो संक्रमित हो चुके हैं, उनके शरीर में सालों तक वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनती रहेगी। रिसर्च कोरोना से ठीक हो चुके लोगों पर की गई, जिसमें COVID-19 से उबरने वाले लोगों के बोन मैरो में लंबे समय तक एंटीबॉडी पैदा करने वाले सेल्स की पहचान की गई।
नई दिल्ली. कोरोना महामारी से लोग डरे हुए हैं। जो लोग कोरोना से ठीक हो चुके हैं उनमें भी कुछ न कुछ शारीरिक दिक्कत आ रही है, जैसे आंत में दिक्कत या लगातार थकान महसूस करना। हालांकि, एक रिसर्च में पाया गया है कि जो हल्के COVID से ठीक हो गए हैं, उनके लिए खुशी की बात है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि जो लोग हल्के कोविड के लक्षणों से ठीक हो जाते हैं, उनकी बोम मैरो सेल्स में दशकों तक एंटीबॉडी बनता रहता है।
एंटीबॉडी और प्लाज्मा कोशिकाएं क्या हैं?
एंटीबॉडी प्रोटीन होते हैं जो वायरल कणों को पहचान सकते हैं और निष्क्रिय करने में मदद कर सकते हैं।
केवल हल्के COVID-19 को ही फायदा क्यों?
रिसर्च में सामने आया कि जब रोगी कोरोना से गंभीर बीमार होता है तब COVID-19 कोशिकाओं के निर्माण को रोक सकता है।
वैक्सीन के बाद कितनी रहती है प्रतिरोधक क्षमता
रिसर्च में वैज्ञानिकों ने पाया कि Sars-2 या Covid-19 के खिलाफ रोग से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता कम से कम एक साल तक रहती है। उन्होंने अनुमान लगाया कि कोविड -19 के खिलाफ प्रतिरक्षा कुछ लोगों में दशकों तक रह सकती है।
वैज्ञानिकों ने किस आधार पर ये निष्कर्ष निकाला?
वैज्ञानिकों की रिसर्च का आधार शरीर में मौजूद बोन मैरो था। उन्होंने कहा कि सार्स -2 से लड़ने के लिए बोन मैरो भी एंटीबॉडी बनाने का काम कर सकता है। दोनों रिसर्च में शोधकर्ताओं ने बोन मैरो में मौजूद इम्युनिटी सेल्स की तलाश की। ये सेल्स बोन मैरो में रहती हैं और जरूरत पड़ने पर एंटीबॉडी का उत्पादन करती हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि कोविड-19 से ठीक होने के कुछ महीने बाद ही खून में एंटीबॉडी कम होने लगती हैं। उन्होंने 11 महीने तक Sars-2 के लिए एंटीबॉडी का पता लगाया।
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