16 साल बाद फोन पर बोला बेटा, 'पापा मैं जिंदा हूं मुझे...', जानें क्या है कहानी?

Published : Aug 28, 2024, 08:05 PM ISTUpdated : Aug 29, 2024, 04:51 PM IST
son story missing

सार

उत्तराखंड के देहरादून से 2008 में लापता हुए एक बच्चे का 16 साल बाद अपने परिवार से संपर्क हुआ है। यह घटना सोशल मीडिया के माध्यम से प्रकाश में आई है, जिसमे बच्चे ने अपने परिवार को ढूंढ निकाला।

दिल्ली में मिला खोया बेटा। पहले की इंडियन मूवी में एक कहानी काफी दिखाई जाती थी, जिसमें एक बच्चा रहता था, जो बचपन में मां-बाप से बिछड़ जाता था। फिर फिल्म के आखिरी में वो परिवार से मिल जाता था। ठीक इसी तरह की स्टोरी हकीकत में देखने को मिली, जब माता-पिता को अपने उस बेटे का कॉल आया, जो 16 साल पहले यानी 2008 में देहरादून से लापता हो गया था। बेटे ने फेसबुक पर अपने असली परिवार वालों को खोज निकाला। किसी को भी यकीन नहीं हो पा रहा है कि सच में भी ऐसा कुछ हो सकता है।

बता दें, पूर्व सैनिक अमरपाल सिंह 2008 में अपने 8 साल के बड़े बेटे गौरव के साथ मार्केट गए थे। खचाखच भरी भीड़ में उनका हाथ बच्चे से छूट जाता है और वो लापता हो जाता है। काफी खोजबीन के बाद भी उसका कुछ भी पता नहीं चला। लेकिन अमरपाल सिंह ने हिम्मत नहीं हारी। बेटे को तलाश करने के लिए उन्होंने 50 शहरों के मंदिर, गुरुद्वारा, मस्जिद, पुलिस स्टेशन और हॉस्पिटल तक में खाक छान मारी। फिर भी जिगर का टुकड़ा नहीं मिला।

16 साल के लंबे वनवास के बाद आया बेटे का कॉल

गौरव के माता-पिता उम्मीद खो दिया था। उन्हें लगने लगा था उनका बेटा अब कभी नहीं मिलेगा। लेकिन तभी अचानक 16 साल बाद उनकी जिंदगी में एक चमत्कार हो गया। मोबाइल की घंटी बजी और सामने से आवाज आई। हैल्लो, पापा! मैं जिंदा हूं। ये सुनकर अमरपाल पूरी तरह से चौंक गए। उन्हें एक पल को तो अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। उन्हें लगा जैसे वो कोई सपना देख रहे हो। तभी दूसरी आवाज आती है- मुझे घर आना है।

गौरव की आवाज सुन अमरपाल खुशी से झूम उठे

बेटे गौरव की आवाज सुन अमरपाल खुशी से झूम उठे। दोनों ने जल्द मिलने का प्लान बनाया। जब 16 साल के लंबें इंतजार के बाद दोनों मिले तो आंखों से खुशी के आंसू छलक उठे। मां ने देखते ही बेटे को सीने से लगा लिया। छोटा भाई सौरव और बहन अंजिल भी भाई को गले लगाकर रो पड़े। गौरव ने बताया कि उसे दिल्ली में रहने वाले एक दंपति अपने साथ ले गए थे। उनका कोई बच्चा नहीं था। उन्होंने उनका अपने बच्चे जैसा ख्याल रखा और पढ़ाया-लिखाया। बड़ा होने पर किराने की दुकान खुलाव दी। हालांकि, मैं अपने असली मां-बाप को नहीं भूल सका था।

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