21 जुलाई 2023 को वाराणसी जिला कोर्ट ने हिंदू पक्ष की याचिका पर फैसला सुनाते हुए ज्ञानवापी परिसर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को मंजूरी दे दी है। अब परिसर में रेडियो कार्बन डेटिंग की जा सकेगी।
ट्रेंडिंग डेस्क : वाराणसी जिला अदालत की मंजूरी के बाद ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण यानी कार्बन डेटिंग की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया अब ज्ञानवापी परिसर (Gyanwapi Masjid) में मिले कथित शिवलिंग की रेडियो कार्बन डेटिंग (What is Radio Carbon Dating) करेगी। जिससे शिवलिंग की उम्र यानी यह पता चल जाएगा कि शिवलिंग कितना पुराना है? लेकिन क्या आप जानते हैं कि कार्बन डेटिंग आखिर होती क्या है और इससे किसी वस्तु की सही-सही उम्र का पता कैसे लगाया जा सकता है? आइए जानते हैं...
रेडियो कार्बन डेटिंग की खोज किसने की
1949 में शिकागो यूनिवर्सिटी के विलियर्ड लिबी और उनकी टीम ने रेडियो कार्बन डेटिंग तकनीक की खोज की थी। इसके लिए 1960 में उन्हें रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। बता दें कि कार्बन डेटिंग विधि से सबसे पहली बार वैज्ञानिकों ने लकड़ी की उम्र का पता लगाया था।
क्या है रेडियो कार्बन डेटिंग
रेडिया कार्बन डेटिंग से किसी जीवाश्म या पुरातत्व की वस्तु की उम्र की सही जानकारी मिल जाती है। हालांकि यह वस्तु की सिर्फ अनुमानित उम्र ही बता पाती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं के कारण हर प्राचीन वस्तु पर समय के साथ कार्बन के 3 आइसोटोप आ जाते हैं। इनमें कार्बन-12, कार्बन-13 और कार्बन-14 शामिल होता है। कार्बन-14 से ही डेटिंग विधि अपनाई जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि कार्बन-14 के मुकाबले कार्बन 12 और कार्बन 13 वायुमंडल में ज्यादा मौजूद है। इसीलिए दोनों जीवाश्म ईंधन के जलने के साथ अध्ययन के लिए कम भरोसा किया जाता है।
कार्बन-14 क्या होता है
27 फरवरी, 1940 में मार्टिन कैमेन और सैम रुबेन ने कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी रेडियेशन प्रयोगशाला बर्कले में कार्बन-14 की खोज की थी। उन्होंने बताया, जब कार्बन का अंश जमीन में दब जाता है, तब कार्बन-14 की रेडियोधर्मिता की वजह से कमी होती रहती है। जमीन में दबे कार्बन में उसके दूसरे आइसोटोप के साथ अनुपात से ही वह कब से पृथ्वी में दबी है, उसके उम्र की जानकारी लग सकती है।
कार्बन डेटिंग से किसी वस्तु के सही उम्र की जानकारी कैसे लग जाती है
कार्बन-14 से किसी वस्तु के उम्र की विधि का इस्तेमाल पुरातत्व-जीव विज्ञान में जंतुओं और पौधों के अवशेषों के आधार पर जीवन काल, समय चक्र तय करने में होता है। कार्बन 12 और 14 के बीच अनुपात निकालकर इसका पता लगाया जाता है। कई वैज्ञानिक नतीजों में यह साबित हो चुका है कि कार्बन-14 के एक तय मात्रा से ही 5,730 साल के बाद आधी मात्रा का हो जाता है। रेडियोधर्मिता क्षय (Radioactive Decay) के कारण ऐसा होता है।
रेडियो कार्बन डेटिंग में किन-किन चीजों का इस्तेमाल होता है
कार्बन डेटिंग का इस्तेमाल कार्बनिक पदार्थों पर किया जा सकता है। इसकी मदद से लकड़ी, चारकोल, हड्डी, चमड़े, बाल, फर, सींग, रक्त अवशेष, मिट्टी, शैल, कोरल, चिटिन, बर्तन, भित्ति चित्र, पेपर, पार्चमेंट बीज, बीजाणु और पराग की उम्र का पता लगाया जा सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, पत्थर और धातु की कार्बन डेटिंग नहीं हो सकती है। सरल शब्दों में कहें तो कार्बन डेटिंग से सिर्फ उस वस्तु की उम्र का ही पता लगाया जा सकता है, जिसमें कार्बन पाया जाता है। यही कारण है कि ज्ञानवापी में जो कथित शिवलिंग मिला है, उसकी उम्र का पता लगाने के लिए कार्बन डेटिंग विधि के प्रयोग पर सवाल भी उठ रहे हैं।
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