Gyanwapi Masjid Verdict : 1991 में दायर हुआ पहला केस, जानें ज्ञानवापी मामले में अब तक क्या-क्या हुआ
साल 1991 में पहली बार हरिहर पांडे, सोमनाथ व्यास और रामरंग शर्मा ने अदालत में याचिका दायर की। जिसमें कहा गया कि मंदिर तोड़ने के बाद वहां के अवशेषों से ही ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करवाया गया था।
Satyam Bhardwaj | Published : Jul 21, 2023 1:04 PM IST / Updated: Jul 21 2023, 06:43 PM IST
ट्रेडिंग डेस्क : ज्ञानवापी मामले में वाराणसी जिला न्यायालय का बड़ा फैसला सामने आ चुका है। अदालत ने बजूखाने के अलावा पूरे ज्ञानवापी परिसर के ASI सर्वे की इजाजत दे दी है। मुस्लिम पक्ष की सभी दलीलों को खारिज करते हुए कोर्ट ने 3 से 6 महीने में सर्वे का काम पूरा करने के आदेश दिए हैं। बता दें कि वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से एकदम सटा हुआ ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanwapi Masjid) है। दावा है कि 1669 में मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिर तुड़वाकर इस मस्जिद का निर्माण करवा दिया था। इसी को लेकर ज्ञानवापी विवाद है। हिंदू पक्ष का दावा है कि इस मस्जिद में भगवान शिव का स्वयंभू ज्योर्तिलिंग है। इसके खिलाफ 1991 में पहला केस दायक किया गया था। पिछले 32 साल से इसे लेकर मुकदमा चल रहा है।
ज्ञानवापी मामले में पहली याचिका किसने दायर की
Latest Videos
हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद की जगह भगवान विश्वेश्वर का स्वयंभू ज्योर्तिलिंग हुआ करा था लेकिन औरंगजेब ने मंदिर को तुड़वा दिया और यहां मस्जिद बनवा दिया। इसी को लेकर साल 1991 में पहली बार हरिहर पांडे, सोमनाथ व्यास और रामरंग शर्मा ने अदालत में याचिका दायर की। जिसमें कहा गया कि मंदिर तोड़ने के बाद वहां के अवशेषों से ही तब मस्जिद का निर्माण करवाया गया था।
32 साल में ज्ञानवापी केस में क्या-क्या हुआ
साल 1991 में हरिहर पांडे, सोमनाथ व्यास और रामरंग शर्मा ने सबसे पहले भगवान विश्वेश्वर की ओर से वाराणसी कोर्ट में याचिका दायर की। जिसमें पूजा की अनुमति मांगी गई।
दो साल बाद 1993 में ज्ञानवापी के केस पर स्टे लगा दिया गया। अदालत ने दोनों पक्षों से जो स्थिति है उसे बनाए रखने का आदेश दिया।
पांच साल बाद 1998 में एक बार फिर इस मामले की सुनवाई शुरू हुई। तब अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने हाईकोर्ट में तर्क दिया कि इस केस की सुनवाई सिविल कोर्ट में नहीं हो सकती। इसके बाद हाईकोर्ट ने सिविल कोर्ट में केस की सुनवाई पर रोक लगा दी।
22 साल बाद 2019 में एक बार फिर भगवान विश्वेश्वर की तरफ से विजय शंकर ने बनारस कोर्ट में मुकदमा दायर कर ASI सर्वे कराने की मांग की।
अगले ही साल 2020 में विजय शंकर की इस याचिका का अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने जमकर विरोध जताया।
2021 में श्रृंगार गौरी की पूजा दर्शन की मांग करते हुए 5 महिलाएं रेखा पाठक, मंजू व्यास, लक्ष्मी देवी, राखी सिंह और सीता शाहू ने एक दूसरी याचिका दायर कर दी।
2022 में कोर्ट ने श्रृंगार गौरी विग्रह का पता लगाने के लिए एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त कर दिया। 26 अप्रैल 2022 को सिविल कोर्ट ने ज्ञानपावी परिसर के सर्वे का आदेश दे दिया। मई में जब सर्वे चल रहा था, तब दावा किया गया कि मस्जिद में शिवलिंग आकृति प्राप्त हुई है।
जुलाई 2022 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। सर्वोच्च न्यायालय ने जिला अदालत के फैसले का इंतजार करने का निर्देश दिया।
दिसंबर 2022 में फास्ट ट्रैक कोर्ट में एक और मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई। जिसमें वजूखाने में मिले शिवलिंग जैसी आकृति की पूजा करने का अधिकार, मुस्लिमों के प्रवेश पर रोक, अवैध ढांचे को हटाने से जुड़े मामले थे।
मई 2023 में हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद में मिले शिवलिंग की कार्बन डेंटिंग कराने का आदेश दिया। हालांकि, 7 दिन बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी।
23 मई को 2023 को वाराणसी जिला जज ने ज्ञानवापी मामले के सातों केस एक साथ सुने जाने का फैसला किया।
12 और 14 जुलाई 2023 को ज्ञानवापी परिसर का ASI का सर्वे कराने पर बहस हुई। मुस्लिम पक्ष की तरफ से कड़ा विरोध जताया गया था।
21 जुलाई 2023 को अदालत ने बजूखाने को छोड़ पूरे ज्ञानवापी परिसर के ASI सर्वेक्षण का आदेश दिया।