कई देशों में जारी हैं क्रूर प्रथा, मुखिया की मौत पर महिलाओं की काट देते हैं अंगुलियां, हड्डी का सूप पीना जरूरी

गुलामी और दास प्रथा (Slave Trade), अजीबो-गरीब परंपराओं (Weird Culture and Tradition) पर कहने को तो सरकारों ने रोक लगा रखा है, मगर कई देशों में यह आज भी जारी है। हालांकि, यह क्रूर, अमानवीय और दर्दनाक परंपराएं चोरी-छिपे ही सही मगर अब भी कायम हैं और खासकर आदिवासी इसका पूरा शिद्दत से पालन करते आ रहे हैं। 
 

Asianet News Hindi | Published : Mar 25, 2022 4:32 AM IST

नई दिल्ली। आज गुलामी और दास कुप्रथा का अंतरराष्ट्रीय स्मरण दिवस  (International Day of Remembrance of Victims of Slavery and Transatlantic Slave Trade 2022) है। हालांकि, यह दिन खासकर अफ्रिकियों के साथ करीब चार सौ साल तक जारी रही गुलामी प्रथा (Slave Trade) के दौरान बरती गई क्रूरता की याद में 2008 से मनाई जा रही है, मगर आज भी तमाम देशों में ऐसी कुप्रथाएं हैं, जो उनके मानवाधिकारों का हनन करती हैं। 

दुनियाभर में तमाम देशों में लोग विभिन्न जातियों और समुदायों में रहते हैं। प्रत्येक जाति की कुछ अलग विशेषता, परंपरा और प्रथा होती है। यही चीज उन्हें अन्य जातियों से अलग करती है। कुछ परंपराएं और प्रथा अच्छी होती हैं, उनकी बेहतरी के लिए होती हैं तो कुछ ऐसी भी हैं, जिन्हें जानने के बाद आपकी आत्मा कांप उठेगी। आइए जानते हैं ऐसी ही कुछ अमानवीय और दर्दनाक प्रथाओं के बारे में जो आज भी बदस्तूर जारी हैं। 

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मुखिया की मौत पर महिलाओं की अंगुली काट लेते हैं 
इंडोनेशिया का एक द्वीप है पापुआ गिनी। यहां एक प्रजाति रहती है, जिसका नाम हे दानी। इस समुदाय के लोगों को अजीबो-गरीब परंपरा का पालन करना पड़ता है। यह प्रथा बेहद अमानवीय और दर्दनाक है। इसके तहत, परिवार के मुखिया की मौत होने पर उस घर की सभी महिलाओं की अंगुलियां काट ली जाती है। इसके पीछे उनका मानना है कि इससे मृतक की आत्मा को शांति मिलेगी। अंगुलियां काटने के लिए महिला के हाथ को रस्सी से बांधा जाता है और अंगुली को कुल्हाड़ी से काट दिया जाता है। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना और विरोध होने के बाद वहां की सरकार इस पर रोक लगा चुकी है, मगर कुछ लोग चोरी-छिपे इसे जारी रखे हुए हैं। 

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मृत रिश्तेदार की हड्डी का सूप पीना जरूरी 
यही नहीं, ब्राजिल और वेनेजुएला के सीमा क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी समुदाय आज भी आदिमानवों सा जीवन जी रहे हैं। ये लोग अब भी पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन कर रहे हैं। किसी परिजन या रिश्तेदार की मौत होने पर जलाकर अंतिम संस्कार किया जाता है। शरीर राख में बदलने के बाद बची हुई हड्डियों और राख को एकत्रित कर खाया जाता है। हड्डी का सूप बनाते हैं और उसे पीते हैं। यह सूप केले के साथ मिलाकर पीना पड़ता है। ऐसा करने के पीछे इनका तर्क है कि इससे वे मृतक के प्रति अपना जुड़ाव और प्रेम प्रदर्शित करते हैं। 

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