Devuthani Ekadashi 2021: आज इस विधि से करें तुलसी पूजा और बोलें मंत्र, घर में रहेगी पॉजिटिव एनर्जी

इस बार 15 नवंबर, सोमवार को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है। इस दिन देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi 2021) का पर्व मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु 4 महीने के बाद नींद जागते हैं। इस दिन से विवाह आदि सभी तरह के मांगलिक काम फिर से शुरू हो जाएंगे।

Asianet News Hindi | Published : Nov 14, 2021 2:16 PM IST

उज्जैन. ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi 2021) इस तिथि पर तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराने की परंपरा है। शालिग्राम को भगवान विष्णु का प्रतीक माना गया है। एक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने छल से देवी तुलसी का पतिव्रत भंग किया था, इसके बाद तुलसी के पति शंखचूड़ का वध शिव जी ने कर दिया था। जब ये बात तुलसी ने विष्णु जी को पत्थर होने का शाप दिया था। तब विष्णु जी ने ये शाप स्वीकार किया और तुलसी को पूजनीय होने का वर दिया था।

घर में तुलसी हो तो दूर रहते हैं कई दोष
ज्योतिषाचार्य पं. शर्मा के अनुसार, घर में तुलसी हो तो वास्तु दोष शांत रहते हैं, वातावरण में सकारात्मकता बनी रहती है। आयुर्वेद में भी तुलसी का उपयोग कई तरह की दवाओं में किया जाता है। तुलसी के पत्तों का सेवन रोज करने से स्वास्थ्य संबंधी कई लाभ मिलते हैं। रोज तुलसी के पास दीपक जलाने धर्म लाभ मिलता है। तुलसी का सबसे प्रमुख गुण है शुद्धता। तुलसी अपने आस-पास के वातावरण शुद्ध बनाती है। इसकी वजह से घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।

एकादशी पर इस मंत्र से करें तुलसी पूजा
देवउठनी एकादशी पर सुबह तुलसी के आसपास साफ-सफाई और पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए। स्नान के बाद तुलसी को जल चढ़ाएं। हल्दी, दूध, कुंकुम, चावल, भोग, चुनरी आदि पूजन सामर्गी अर्पित करें। सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास दीपक जलाएं। कर्पूर जलाकर आरती करें। अगर इस दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह नहीं करवा सकते हैं तो तुलसी की सामान्य पूजा करें। घर में सुख-समृद्धि बनाए रखने के लिए प्रार्थना करें। तुलसी नामाष्टक का पाठ करें। इस प्रकार तुलसी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और सभी तरह की समस्याएं दूर होती हैं।

तुलसी नामाष्टक मंत्र
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
यः पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।

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