Mahalaxmi Vrat 2022: 17 सितंबर को इस आसान विधि से करें महालक्ष्मी व्रत-पूजा जानें मंत्र और मुहूर्त

Mahalaxmi Vrat 2022: धर्म ग्रंथों के अनुसार आश्विन मास में महालक्ष्मी व्रत करने की परंपरा है। इस बार ये व्रत 17 सितंबर, शनिवार को किया जाएगा। इस दिन हाथी पर बैठी देवी लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है।
 

Manish Meharele | Published : Sep 13, 2022 11:48 AM IST / Updated: Sep 16 2022, 09:06 AM IST

उज्जैन. इस बार महालक्ष्मी व्रत (Mahalaxmi Vrat 2022) 17 सितंबर, शनिवार को किया जाएगा। इस व्रत से कई पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हैं। इस व्रत में हाथी पर विराजित मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसलिए इसे हाथी अष्टमी या हाथी पूजन भी कहा जाता है। कई स्थानों पर सिर्फ हाथी की ही पूजा भी की जाती है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। आगे जानिए इस व्रत की विधि व शुभ मुहूर्त आदि… 

कब से कब तक रहेगी अष्टमी तिथि? (Mahalaxmi Vrat 2022)
पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 17 सितंबर, शनिवार की दोपहर 02:14 से शुरू होकर 18 सितंबर, रविवार की शाम 04:33 तक रहेगी। चूंकि महालक्ष्मी व्रत शाम को किया जाता है, इसलिए ये 17 सितंबर, शनिवार को ये व्रत किया जाएगा। इस दिन श्रीवत्स सर्वार्थसिद्धि, अमृतसिद्धि और द्विपुष्कर नाम का शुभ योग होने से महालक्ष्मी व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है।

इस विधि से करें महालक्ष्मी व्रत (Mahalaxmi Vrat Puja Vidhi)
- 17  सितंबर, शनिवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें और ये मंत्र बोलें-
करिष्यsहं महालक्ष्मि व्रतमें त्वत्परायणा,
तदविघ्नेन में यातु समप्तिं स्वत्प्रसादत:

अर्थात्- हे देवी, मैं आपकी सेवा में तत्पर होकर आपके इस महाव्रत का पालन करूंगी। मेरा यह व्रत निर्विघ्न पूर्ण हो। मां लक्ष्मी से यह कहकर अपने हाथ की कलाई में डोरा बांध लें, जिसमें 16 गांठे लगी हों।
- व्रत-पूजा का संकल्प लेने के बाद किसी साफ स्थान पर देवी लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। ध्यान रखें कि इस दिन गजलक्ष्मी यानी हाथी पर बैठी देवी लक्ष्मी की पूजा का विधान है। 
- इसके बाद देवी लक्ष्मी के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं और तिलक लगाकर पूजा आरंभ करें। सर्वप्रथम माता को हार-फूल अर्पित करें। इसके बाद चंदन, अबीर, गुलाल, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल आदि चीजें चढ़ाएं। 
- पूजन के दौरान नए सूत 16-16 की संख्या में 16 बार रखें। इसके बाद नीचे लिखा मंत्र बोलें-
क्षीरोदार्णवसम्भूता लक्ष्मीश्चन्द्र सहोदरा
व्रतोनानेत सन्तुष्टा भवताद्विष्णुबल्लभा

अर्थात-  क्षीरसागर से प्रकट हुई लक्ष्मी, चंद्रमा की सहोदर, विष्णु वल्लभा मेरे द्वारा किए गए इस व्रत से संतुष्ट हों।
- इसके बाद देवी लक्ष्मी के साथ-साथ हाथी की भी पूजा करें। कुछ स्थानों पर इस व्रत को हाथी पूजा के नाम से भी जाना जाता है। अंत में भोग लगाकर देवी की आरती करें। इस प्रकार यह व्रत पूरा होता है। पूजा संपन्न होने पर पहले प्रसाद ग्रहण करें बाद में भोजन कर सकते हैं।


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