
कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सैनिकों के छक्के छुड़ाने वाले परमवीर चक्र विजेता ऑनररी कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव 31 दिसंबर ,2021 को 24 साल की उत्कृष्ट सेवा के बाद रिटायर्ड हो गए। जिसके बाद बुलंदशहर स्थित उनके गांव में भव्य स्वागत किया गया। रिटायर्ड कैप्टन योगेंद्र यादव की गिनती देश के सबसे बहादुर सपूतों में होती है। अदम्य साहस व वीरता को लेकर उन्हें सैनिकों के लिए सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। आइए आपको भी बताते हैं कि जब वो अपनी यूनिट से गांव लौटे तो उनका स्वागत किस तरह से किया गया।
20 किलोमीटर की निकाली गई सम्मान यात्रा
औरंगाबाद अहीर ग्राम बुलंदशहर के लोगों ने एक स्वागत समारोह का आयोजन किया गया। जिसमें दिल्ली से THOR (The Harmony of Riders) के जांबाज बाइकर्स पूरे जोश और उमंग के साथ लगभग 20 किलोमीटर की सम्मान यात्रा का आयोजन किया। इस यात्रा के दौरान परमवीर विजेता योगेंद्र यादव गांव वालों ने फूलो की वर्षा की। गुलावठी शहीदी स्मारक और अन्य शहीदों का भी सम्मान किया गया। इस मौके पर कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों से आए हुए दल का नेतृत्व करने आए अजीत शर्मा जी ने बताया कि उनका यह ग्रुप देश प्रेम और सैनिकों के सम्मान में सतत कार्यरत है। परमवीर योगेंद्र सिंह यादव ने वहां पर उपस्थित सभी लोगों को देश के प्रति समर्पित रहने वह अपने कार्यों का निष्पादन पूर्ण स्तर से करने की प्रेरणा दी।
कारगिल में दिखाई बहादुरी
18 ग्रेनेडियर्स के सूबेदार-मेजर योगेंद्र सिंह यादव ने 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान घर-घर में एक जाना-पहचाना नाम बन गए थे, जब उन्होंने द्रास इलाके में टाइगर हिल पर कब्जा जमाया था। यह उस वक्त शत्रु पक्ष पर बड़ी बढ़त थी, जिन्होंने घुसपैठ पर वहां कब्जा जमा लिया था। भारत और पाकिस्तान के बीच यह संघर्ष तीन महीने तक चला था, जिसके लिए चार लोगों को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। इनमें से एक कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव भी थे।
पिता भी लड़ चुके हैं 65 और 71 की वॉर
कारगिल युद्ध के जिन चार योद्धाओं को उस वक्त परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था, उनमें से केवल सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव और सूबेदार संजय कुमार ही बचे रहे, जबकि कैप्टन विक्रम बत्रा और लेफ्टिनेंट मनोज पांडे इस जंग में शहीद हो गए। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। उन्हें टाइगर हिल की लड़ाई के दौरान किस तरह उन्हें पैर, छाती, कमर और हाथ में 15 गोलियां लगी थी। सेना में बहादुरी का जज्बा उन्हें अपने पिता से मिला। कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव के पिता 11वीं कुमाऊं के सिपाही रामकृष्ण यादव भी 1965 और 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ चुके थे।
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