अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ (AIMPLB) बोर्ड पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगा। रविवार को लखनऊ में हुई AIMPLB की बैठक में इसका फैसला लिया गया। बोर्ड की तरफ से कासिम रसूल इलियास ने कहा, याचिका दाखिल करने के साथ मस्जिद के लिए दी गई 5 एकड़ जमीन को भी मंजूर नहीं करने का फैसला लिया गया है।
लखनऊ (Uttar Pradesh). अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ (AIMPLB) बोर्ड पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगा। रविवार को लखनऊ में हुई AIMPLB की बैठक में इसका फैसला लिया गया। बोर्ड की तरफ से कासिम रसूल इलियास ने कहा, याचिका दाखिल करने के साथ मस्जिद के लिए दी गई 5 एकड़ जमीन को भी मंजूर नहीं करने का फैसला लिया गया है। साथ ही याचिका में कहा गया है कि मुसलमान किसी दूसरे स्थान पर अपना अधिकार लेने के लिए उच्चतम न्यायालय नहीं गए थे। वहीं, जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा, हमें पता है पुनर्विचार याचिका का हाल क्या होना है, लेकिन फिर भी हमारा यह हक है। बता दें, इस बैठक में एएमआईएएम अध्यक्ष असददुद्दीन ओवैसी भी शामिल थे। जिन्होंने हाल ही में एक ट्वीट किया था] जिसमें उन्होंने लिखा था, मुझे मेरी मस्जिद वापस चाहिए।
पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के लिए ये हैं तीन अहम बातें
- 22/23 दिसंबर 1949 की रात जब बलपूर्वक रामचंद्रजी की मूर्ति और अन्य मूर्तियों का रखा जाना असंवैधानिक था तो इन मूर्तियों को 'देवता' कैसे मान लिया गया? जो हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार भी देवता (Deity) नहीं हो सकती हैं।
- बाबरी मस्जिद में 1857 से 1949 तक मुसलमानों का कब्जा और नमाज पढ़ा जाना साबित हुआ है तो मस्जिद की जमीन को वाद संख्या 5 के वादी संख्या 1 को किस आधार पर दे दी गई?
- संविधान की अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते समय माननीय न्यायमूर्ति ने इस बात पर विचार नहीं किया कि वक्फ एक्ट 1995 की धारा 104-ए और 51 (1) के अंतर्गत मस्जिद की जमीन को एक्सचेंज या ट्रांसफर पूर्णतया बाधित है। फिर इस कानून के विरुद्ध और उपरोक्त वैधानिक रोक/पाबंदी को अनुच्छेद 142 के तहत मस्जिद की जमीन के बदले में दूसरी जमीन कैसे दी जा सकती है? जबकि खुद माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने दूसरे निर्णयों में स्पष्ट कर रखा है कि अनुच्छेद 142 के अधिकार का प्रयोग करने की माननीय न्यायमूर्तियों के लिए कोई सीमा निश्चित नहीं है।
5 मुस्लिम पक्षकार दाखिल करेंगे पुनर्विचार याचिका
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य जफरयाब जिलानी ने बताया मिसबाहुद्दीन, मौलाना महफूजुर्रहमान, मोहम्मद उमर और हाजी महबूब ने पुनर्विचार याचिका दायर करने पर अपनी सहमति AIMPLB को दी है। इनके अलावा जमीयत उलेमा-ए-हिंद (हामिद मोहम्मद सिद्दीकी) की ओर से मौलाना अरशद मदनी ने भी याचिका दाखिल करने का ऐलान किया है।
ये मुस्लिम पक्षकार दाखिल नहीं करेंगे याचिका
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका से किनारा करने वाले मुस्लिम पक्षकारों में इकबाल अंसारी, सुन्नी वक्फ बोर्ड शामिल है।
AIMPLB की प्रेस कॉन्फ्रेंस की 10 बड़ी बातें
1- AIMPLB ने कहा, बाबरी मस्जिद की तामीर बाबर के कमांडर मीर बाकी द्वारा 1528 में हुई थी जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कबूल किया है।
2. मुसलमानों द्वारा दिए गए सबूत के मुताबिक, 1857 से 1949 बाबरी मस्जिद की तीन गुंबद वाली इमारत और मस्जिद का अंदरूनी हिस्सा मुसलमानों के कब्जे और इस्तेमाल में रहा है। इसे भी सुप्रीम कोर्ट ने माना है।
3- 'बाबरी मस्जिद में आखिरी नमाज 16 सितंबर 1949 को पढ़ी गई थी, सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को माना है।'
4- 'गुंबद के नीचे जन्मभूमि का प्रमाण नहीं मिला है, इस बात को भी सुप्रीम कोर्ट ने माना था।'
5- '1949 में मस्जिद में मूर्ति रखे जाने को सुप्रीम कोर्ट ने गैरकानूनी बताया है।'
6- 'सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को भी माना कि मस्जिद को किसी मंदिर को तोड़कर नहीं बनाया गया था।'
7- 'सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ASI की रिपोर्ट से यह साबित नहीं हो पाया कि मस्जिद का निर्माण किसी मंदिर को तोड़कर किया गया था।'
8- 'फैसले में कई अंतर्विरोध, जब बाहर से लाकर मूर्ति रखी गई तो उन्हें देवता कैसे मान लिया गया।'
9- 'मस्जिद के लिए दूसरी जगह जमीन स्वीकार नहीं करेगा मुस्लिम पक्ष।'
10- 'मस्जिद की जमीन के बदले में मुसलमान कोई अन्य जमीन कबूल नहीं कर सकते।'
ये थे अयोध्या मामले पर सभी मुस्लिम पक्षकार
अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट में कुल 14 अपीलें दायर की गई थीं। इनमें 6 याचिकाएं हिंदुओं और 8 मुस्लिम पक्षकारों की ओर से दाखिल की गई थीं। मुस्लिम पक्षकारों में सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद (हामिद मोहम्मद सिद्दीकी), इकबाल अंसारी, मौलाना महमूदुर्रहमान, मिसबाहुद्दीन, मौलाना महफूजुर्रहमान मिफ्ताही, मोहम्मद उमर, हाजी महबूब और मौलाना असद रशीदी शामिल थे। बता दें, AIMPLB इस मामले में सीधे तौर पर शामिल नहीं था, लेकिन मुस्लिम पक्षकार की ओर से पूरा मामला उसी की निगरानी में चल रहा था।