राहुल की भारत जोड़ो यात्रा से अखिलेश, मायावती और जयंत ने बनाई दूरी, जानिए क्या हैं इसके मायने

Published : Jan 06, 2023, 12:42 PM ISTUpdated : Jan 06, 2023, 12:49 PM IST
राहुल की भारत जोड़ो यात्रा से अखिलेश, मायावती और जयंत ने बनाई दूरी, जानिए क्या हैं इसके मायने

सार

यूपी में कांग्रेस की यात्रा भले ही ढाईं दिन की रही हो, लेकिन इस यात्रा में उमड़ा जनसैलाब खासा चर्चा में हैं। वहीं विपक्ष की इस यात्रा से दूरी के भी मायने खास हैं। विपक्षी दल जानते हैं कि भाजपा को हराने के लिए एकता जरूरी है।

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में उमड़ा जनसैलाब जहां एक ओर खासा चर्चाओं में बना हुआ है तो वहीं विपक्ष की इस यात्रा से दूरी के भी खास मायने हैं। बता दें कि विपक्षी दल उस अंतरविरोध को बेहद अच्छे से समझते हैं। जिसमें बीजेपी को हराने के लिए एकता होना जरूरी है। सेकिन साथ ही खुद के वजूद के लिए ही खतरा किसी भी कीमत पर नहीं चाहते हैं। यही वजह है कि मायावती, अखिलेश और जयंत चौधरी को ने इस यात्रा के लिए अपनी शुभकामनाएं तो दीं, लेकिन वह यात्रा का हिस्सा नहीं बनें। वहीं ओमप्रकाश राजभर ने भी इस यात्रा से उचित दूरी बनाए रखा।

यात्रा को हल्के में नहीं ले रहा सत्ता पक्ष
वहीं राममंदिर तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की प्रशंसा की है। जिससे यह साफ साबित होता है कि सत्ता पक्ष इस य़ात्रा को हल्के में नहीं रहा है। चंपत राय द्वारा की गई प्रशंसा को भाजपा सरकार के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने उनकी निजी राय बताया है। वहीं अगर यूपी के इतिहास की बात करें तो बसपा, सपा और अन्य विपक्षी दल कांग्रेस के पैर पर पैर रख कर आगे बढ़े हैं। कांग्रेस जहां इसको हमेशा मन में रखती है तो वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल के रणनीतिकार भी इसे भलीभांति समझते-बूझते हैं।

कांग्रेस ने बचाई थी मुलायम सरकार
बता दें कि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने सपा की हार के बाद सार्वजनिक तौर परह यह कहा था कि कांग्रेस के साथ गठबंधन के पक्ष में वह कभी नहीं थे। कांग्रेस ने 1990 में जनता दल के टूटने के बाद अल्पमत में आई मुलायम सरकार को बचाया था। वहीं कांग्रेस के रणनीतिकार इसे पार्टी की भूल मानते हैं। रणनीतिकारों के अनुसार, यदि उस दौरान मुलायम सरकार नहीं बच पाती तो जनता के बीच सीधा संदेश जाता कि क्षेत्रीय दल स्थायी सरकार नहीं दे सकते। कांग्रेस ने इनकी जमीन को तैयार किया तो वहीं अपनी पार्टी के लिए खाई का काम किया। 

दो दलों में बंटे मतदाता
इसके बाद हुए चुनावों में सपा या बसपा आगे बढ़ते चले गए। लेकिन कांग्रेस पार्टी का ग्राफ नीचे आता चला गया। वहीं अन्य छोटे दल भी अपनी जमीन को तैयार करने में सफल रहे। दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक डॉ. लक्ष्मण यादव ने इस अंतर्विरोध पर कहा कि आज का वोटर मुख्य रूप से दो दलों में बंट चुका है। वोटर या तो भाजपा के पक्ष में है या फिर विपक्ष में। जो मतदाता भाजपा के विपक्ष में है, वह सपा, कांग्रेस, रालोद या बसपा जैसे दलों की तरफ ही जाएगा। वहीं सत्ता पाने के लिए साथ में आना जरूरी है। हालांकि इस अंतर्विरोध का कैसे समाधान निकलता है। यह तो भविष्य में सामने आएगा।

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