
दिव्या गौरव
लखनऊ: यादव बाहुल्य मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट से सोमवार को समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव के पर्चा भरने के कुछ ही देर बाद केन्द्रीय राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह बघेल का इसी सीट से नामांकन हुआ। इसी के साथ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने साफ संकेत दे दिया है कि ऐतिहासिक जीत की उम्मीद लगाए सपा अध्यक्ष को उसकी तरफ से कड़ी टक्कर मिलने वाली है।
अखिलेश ने सोमवार को करहल विधानसभा सीट के लिए अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया। पहले ऐसी संभावनाएं जताई जा रही थीं कि अन्य राजनीतिक दल इस सीट को हल्के में लेते हुए इसे अखिलेश के हवाले कर देंगे। लेकिन दोपहर बाद केंद्रीय राज्य मंत्री एवं आगरा के सांसद एस.पी. सिंह बघेल अपना नामांकन करने आ पहुंचे। अब करहल विधानसभा की इस सीट पर कड़ा ओर संघर्षपूर्ण मुकाबले की उम्मीद जताई जाने लगी है।
मुलायम के सुरक्षा अधिकारी रहे हैं बघेल
अखिलेश के मुकाबले भाजपा ने करहल विधानसभा सीट पर जिन केंद्रीय राज्य मंत्री को चुनाव मैदान में उतरा है, वह कभी अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव के सुरक्षा अधिकारी भी रह चुके हैं। अखिलेश मैनपुरी मुख्यालय से जैसे ही नामांकन करके बाहर वापस निकले वैसे ही भाजपा उम्मीदवार के तौर पर एसपी सिंह बघेल भी अपना नामांकन करने के लिए आ पहुंचे। बघेल के नामांकन करने के बाद भाजपा के स्थानीय और राज्य स्तरीय नेता उत्साहित नजर आए। साल 2002 के अलावा भाजपा कभी भी करहल में चुनाव नहीं जीत सकी है। करहल की विधानसभा सीट को सपा या फिर मुलायम परिवार के लिए अजेय और जीवनदायनी मानी जाती है।
यहीं से की थी मुलायम ने राजनीति की शुरुआत
इटावा से मैनपुरी तक समाजवादियों का गढ़ माना जाता है। इलाके में मुलायम सिंह के परिवार की गहरी पैठ दिखती है जबकि भाजपा का जनाधार यहां बेहद कम है। करहल सीट की राजनीति की शुरुआत और उससे पहले भी ये इलाका मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि थी। नेताजी का गृह जिला इटावा भी इसके करीब ही है। अखिलेश सरकार के कार्यकाल में बना आगरा लखनऊ एक्सप्रेस भी इस इलाके के बीच से गुजरता है। मैनपुरी के करहल से ही मुलायम ने शुरुआती पढ़ाई लिखाई की और जिस जैन इंटर कॉलेज से वो पढ़े-लिखे बाद में वहीं शिक्षक बन गए। यहीं से नेतागीरी की दुनिया में कदम रखा और अब अखिलेश यहीं से अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं।
मुलायम ने लड़वाया था बघेल को पहला चुनाव
बात करें एसपी सिंह बघेल की तो यूपी पुलिस में सब इंस्पेक्टर के पद पर तैनात रहे प्रो. एसपी सिंह बघेल से मुलायम सिंह यादव इतने प्रभावित हुए थे कि उन्हें चुनावी मैदान में उतारने का फैसला किया। मुलायम ने उन्हें वर्ष 1989 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़वाया। बघेल जलेसर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बने थे। हालांकि, वे पहला चुनाव हार गए थे। वर्ष 1996 में जलेसर सीट से एसपी की ओर से फिर चुनाव लड़ा, लेकिन दूसरी बार भी हार गए थे। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की 13 महीने चली सरकार के बाद 1998 में फिर से लोकसभा का चुनाव हुआ और जलेसर सीट से प्रो. एसपी सिंह लोकसभा पहुंच गए। जलेसर सीट से वे दो बार के सांसद रहे हैं। बाद में बघेल बीएसपी में चले गए। बीएसपी ने वर्ष 2010 में उन्हें राज्यसभा भेजा। साथ ही, राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी भी दी। वर्ष 2014 में वे फिरोजाबाद लोकसभा से एसपी के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव के सामने बीजेपी से चुनाव लड़ा, लेकिन वहां उन्हें हार मिली। इसके बाद वे राज्यसभा से इस्तीफा देकर उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। पार्टी ने उन्हें वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में आगरा संसदीय सीट से मैदान में उतारा और उन्होंने यहां से जीत दर्ज की। पिछले साल हुए मोदी सरकार के कैबिनेट विस्तार में उन्हें केंद्र में मंत्री पद दिया गया।
कुछ ऐसा है करहल का चुनावी गणित
करहल विधानसभा सीट पर यादव वोट बैंक का वर्चस्व है। वे ही यहां पर जीत का गणित सेट करते हैं। करहल विधान सभा क्षेत्र में करीब 3 लाख 71 हजार वोटर हैं। इसमें यादव वोटरों की संख्या लगभग 1 लाख 44 हजार है। मतलब कुल वोटर्स का 38 परसेंट वोट सिर्फ यादवों का है। दूसरे नंबर पर क्षत्रिय मतदाता हैं। इसके अलावा लोधी और अन्य समाज के वोटर भी हैं। यहां से केवल एक बार भाजपा जीत दर्ज करने में कामयाब हुई है। लगातार सपा का कब्जा रहा है। पार्टी बड़े अंतर से चुनाव जीतती रही है। अब एसपी सिंह बघेल के चुनावी मैदान में उतरने से वोट के दो भागों में बंटने की संभावना बढ़ गई है।
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