ताजमहल की तर्ज पर बनी इस मस्जिद में भरा है कई टन सोना, 5000 लोग बैठकर अदा कर सकते है नमाज

अलीगढ़ की जामा मस्जिद भारत ही नहीं बल्कि पूरे एशिया में मशहूर है। इस मस्जिद में लगा भारी मात्रा में सोना इसे चर्चा का विषय बनाता है। जामा मस्जिद और ताजमहल में कई समानताएं हैं। 

अलीगढ़: भारत ही नहीं बल्कि एशिया में सबसे ज्यादा सोना लगे होने के कारण यहां की जामा मस्जिद काफी मशहूर है। अलीगढ़ के ऊपरकोट इलाके में स्थित जामा मस्जिद और ताजमहल में कई समानताएं भी है। इसको लेकर कई खास बाते हैं जो चर्चाओं का विषय रहती है। कहा जाता है कि ताजमहल बनाने वाले मुख्य इंजीनियर ईरान के अबू ईसा अंफादी के पोते ने जामा मस्जिद का निर्माण करवाया था। इसके 17 गुंबदो को ठोस सोने से बनाया गया है। हालांकि ताजमहल और स्वर्ण मंदिर में तो सिर्फ सोने की परत ही चढ़ाई गई है। इस मस्जिद में कुल 6 कुंटल सोना लगा हुआ है। 

5000 लोग पढ़ सकते हैं नमाज, बनी है 73 शहीदों की कब्र
इस मस्जिद में 5000 लोग एक साथ बैठकर नमाज अदा कर सकते हैं। इसी के साथ इस मस्जिद में महिलाओं के अलग से नमाज अदा करने के लिए भी जगह बनी हुई है। जामा मस्जिद का निर्माण कोल के गर्वनर साबित खान जंगे बहादुर के शासनकाल में 1724 में करवाया गया था। इसके निर्माण में 4 साल लगे थे और यह 1728 में बनकर तैयार हुई थी। अगर गौर किया जाए तो ताजमहल और जामा मस्जिद की कारीगरी में बहुत सी समानताएं देखने को मिलती हैं। इस मस्जिद में कुल 17 गुंबद हैं। इस मस्जिद की एक खास बात यह भी है कि यहां 1857 की क्रांति में शहीद हुए 73 शहीदों की कब्रें बनी हुई हैं। इसे गंज-ए-शहीदान यानी शहीदों की बस्ती भी कहा जाता है। 

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बारह साल में बनकर हुई थी तैयार
जामा मस्जिद का निर्माण मुगल शासक मुहम्मद साह 1719-1728 के समय में हुआ था। इसे कोल के नवाब साबित खान ने 1727 में शुरू करवाया गया था। यह तकरीबन बारह साल में बनकर तैयार हुई थी। इसकी सबसे लम्बी मीनार बाइस फीट की है। मस्जिद के अंदर का फ्रंट हिस्सा तकरीबन एक सौ बाइस फीट चौड़ा है। इसकी लंबाई तकरीबन डेढ़ सौ फीट की है। मस्जिद की पहली मंजिल पर चालीस और दूसरी मंजिल पर सीढ़ियां की संख्या उन्नीस है। इसी के साथ मस्जिद में तीन गेट लगे हुए हैं।

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