नागरिकता कानून के विरोध में हुई हिंसा के दौरान सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई को लेकर सरकार के एक्शन पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। बता दें, नुकसान की भारपाई के लिए प्रशासन की तरफ से जारी नोटिस को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी। जिसपर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये आदेश दिया।
प्रयागराज (Uttar Pradesh). नागरिकता कानून के विरोध में हुई हिंसा के दौरान सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई को लेकर सरकार के एक्शन पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। बता दें, नुकसान की भारपाई के लिए प्रशासन की तरफ से जारी नोटिस को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी। जिसपर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये आदेश दिया।
क्या है पूरा मामला
नागरिकता कानून को लेकर देश के कई हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन हुए थे। इसी क्रम में दिसंबर 2019 में यूपी के कानपुर में भी हिंसा हुई थी। जिसमें काफी सार्वजनिक संपत्तियों का नुकसान हुआ था। हिंसा के बाद सीएम योगी ने कहा था कि नुकसान की भरपाई उपद्रवियों की संपत्ति जब्त करके होगी। जिसके बाद प्रशासन ने सीएम के आदेश के अनुसार लोगों को नोटिस भेजना शुरू किया। एडीएम कानपुर सिटी द्वारा 4 फरवरी 2020 को नुकसान की भरपाई के लिए नोटिस जारी किया गया था।
याचिका में दी गई ये दलील
इस नोटिस को चुनौती देते हुए कानपुर के मोहम्मद फैजान ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याचिका पर जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस एस एस शमशेरी की खंडपीठ ने आदेश दिया। याची के अधिवक्ता का कहना था, सुप्रीम कोर्ट द्वारा सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान के मामले में तय की गई गाइडलाइन के तहत लोक संपत्ति के नुकसान का आकलन करने का अधिकार हाईकोर्ट के सीटिंग या सेवानिवृत्त जज अथवा जिला जज को है। एडीएम को नोटिस जारी करने का अधिकार नहीं। यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में नियमावली बनाई है। वह नियमावली सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है। वहीं, सरकारी वकील ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि हालांकि मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। सुप्रीम कोर्ट ने कोई अंतरिम राहत नहीं दी है। लिहाजा नोटिस पर रोक न लगाई जाए।
कोर्ट ने दलील सुनने के बाद सुनाया ये फैसला
कोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा, सुप्रीम कोर्ट एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है। जबकि यहां पर याची ने व्यक्तिगत रूप से नोटिस जारी करने वाले प्राधिकारी की अधिकारिता को चुनौती दी है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का कोई फैसला आने तक नोटिस के क्रियान्वयन पर रोक लगाई जाती है, जो कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर निर्भर करेगी।