निष्कासित छात्र को परीक्षा देने से इंकार कर रहा AMU प्रशासन, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जवाब मांगते हुए कही बड़ी बात

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट कहा कि सजा सुधारात्मक होनी चाहिए, जिससे व्यक्ति सामाजिक जीवन की मुख्यधारा में लौट सके। भारतीय कानून प्रणाली के तहत एक दोष सिद्ध व्यक्ति को भी पढ़ाई करने और जेल से परीक्षा में शामिल होने का अधिकार है।

प्रयागराज: उत्तर प्रदेश के जिले प्रयागराज में स्थिति इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारतीय कानून प्रणाली के तहत एक दोषी व्यक्ति को भी अपने अध्ययन को आगे बढ़ाने और जेल से परीक्षा में शामिल होने का अधिकार है। जिससे वह समाजिक जीवन की मुख्यधारा में प्रवेश कर सके। यह टिप्पणी हाईकोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के निष्कासित विधि छात्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए की है। छात्र को विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा बीए एलएलबी पाठ्यक्रम पूरा करने की अनुमति नहीं दी गई थी। उसको अनुशासनहीनता के आरोप में उसे विश्वि विद्यालय से बर्खास्त कर दिया गया था। 

कोर्ट में छात्र ने प्रस्तुत किया हलफनामा
इस मामले में कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी प्रशासन से जानकारी मांगी है। कोर्ट ने पूछा है कि अनुशासन बनाए रखने के साथ छात्र अपनी पढ़ाई कैसे पूरी कर सकता है। याची छात्र आदिल खान की याचिका पर न्यायमूर्ति नीरज तिवारी की पीठ सुनवाई कर रही थी। दरअसल विश्व विद्यालय का छात्र सातवीं सेमेस्टर की परीक्षा में उपस्थित हुआ था, लेकिन उक्त सेमेस्टर पर रिजल्ट घोषित नहीं किया गया था। इसी दौरान उसे अनुशासनहीनता के आरोप में विश्वविद्यालय द्वारा पांच साल की अवधि के लिए निष्कासित कर दिया गया था। छात्र ने कोर्ट में अनुशासन और अच्छे आचरण को बनाए रखने के लिए हलफनामा प्रस्तुत किया। जिसमें वह न केवल नियमों का पालन करेगा और विश्वविद्यालय के परिसर और अंदर और बाहर शांति और सद्भाव और पूर्ण अनुशासन बनाए रखेगा।

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कोर्ट ने विश्वविद्यालय को दिया निर्देश
ऐसा ही हलफनामा छात्र ने विवि के समक्ष भी प्रस्तुत किया था लेकिन  विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपने निष्कासन आदेश को रद्द करने से इन्कार कर दिया। विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से तर्क प्रस्तुत किया गया कि याची के खिलाफ दो आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसे देखते हुए कोर्ट ने कहा कि याची छात्र अभी तक दोषी सिद्ध नहीं हुआ है इसलिए उसे अपनी पढ़ाई पूरी करने का अधिकार था। न्यायालय ने विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि वह अदालत को इसके बारे में तय की गई अगली तारीख को सूचित करे। विश्वविद्यालय के अनुशासन को भंग किए बिना अपने शैक्षिक कैरियर को बचाने के लिए याचिकाकर्ता अपने बीए एलएलबी पाठ्यक्रम को कैसे पूरा करेगा।

कोर्ट ने 17 अगस्त की तारीख की निर्धारित
हाईकोर्ट ने कहा कि भारतीय कानूनी व्यवस्था में एक दोषी व्यक्ति को भी अपने अध्ययन को आगे बढ़ाने और जेल से परीक्षा में बैठने का अधिकार है ताकि वह सामाजिक जीवन की मुख्य धारा में प्रवेश कर सके। आगे कहता है कि किसी भी व्यक्ति को दी जाने वाली सजा सुधारात्मक होनी चाहिए थी और पूर्वाग्रही नहीं। याची छात्र बीए एलएलबी पाठ्यक्रम को पूरा करने से इन्कार करने से उसका करियर बर्बाद हो सकता है। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि निश्चित रूप से याचिकाकर्ता एक युवा छात्र है और उसे खुद को सही करने और जीवन का सही रास्ता चुनने का मौका दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए 17 अगस्त की तिथि निर्धारित की है।

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