
अयोध्या: भगवान राम की नगरी में अयोध्या में कार्तिक माह की अक्षय नवमी के दिन 14 कोसी परिक्रमा की शुरुआत होती है। कार्तिमक माह की शुरुआत होते ही रामनगरी अयोध्या में लाखों की संख्या में श्रद्धालु कल्पवास करते हैं। इसके लिए नवमी के दिन दूर-दराज से श्रद्धालु सरयू तट पर पहुंचकर स्नान करते हैं और फिर भगवान की अराधना में लीन होकर परिक्रमा करते हैं। इस आयोजन को लेकर शासन प्रशासन के द्वारा काफी तैयारियां भी की जाती हैं।
42 किलोमीटर की यात्रा से जुड़ी है कई मान्यताएं
आपको बता दें कि 14 कोस की परिक्रमा सरयू तट से शुरू होकर इसके चारों ओर के मार्गों से गुजरती है। परिक्रमा लगभग 42 किलोमीटर की होती है। लेकिन बहुत कम लोगों को यह जानकारी है कि अयोध्या में ही 14 कोस की परिक्रमा क्यों होती है और इसके पीछे की क्या पौराणिक मान्यताएं है। तो आज हम आपको इसी से जुड़ी जानकारी देने जा रहे हैं।
खत्म हो जाते हैं सभी पाप, परमधाम की होती है प्राप्ति
अयोध्या के पुजारी इसको लेकर बताते हैं कि यह प्रभुराम की जन्मस्थली है। यहां मानव स्वरूप में भगवान विष्णु ने जन्म लिया था। अयोध्या में तमाम मठ मंदिर हैं जहां पूजा-अर्चना होती है। स्वंय हनुमान जी भी यहां विराजमान हैं। इस प्रकार जो अयोध्या की परिक्रमा करता है उसे किसी तरह की कोई समस्या नहीं होती है। अयोध्या की 14 कोसी परिक्रमा करने से 14 लोक का भ्रमण नहीं करना पड़ता। इसी के चलते 14 कोस की परिक्रमा का बड़ा महत्व है। जो कुछ भी पाप जन्म जन्मांतर में मनुष्य के द्वारा जाने अनजाने में किया गया होता है वह सब एक-एक कदम चलते-चलते प्रायश्चित होकर खत्म हो जाता है। आत्मा पापों से मुक्त हो जाता है और परमधाम की प्राप्ति हो जाती है। इसी के चलते अयोध्या की 14 कोस की परिक्रमा की जाती है।
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