अयोध्या में 2 नवंबर 1990 में हुई घटना को लोग आज भी भूल नहीं पाए हैं। रामधुन करते जा रहे कारसेवकों पर जिस तरह से गोलीबारी की गई उसके बाद कई लोगों ने सरयू में कूदकर तो कुछ ने शवों के बीच लेटकर जान बचाई।
अयोध्या: भारत के इतिहास में 2 नवंबर 1990 का दिन काले अध्याय के समान है। जानकार बताते हैं कि यह तारीख खून से रंगी हुई है। इसी दिन अयोध्या में कारसेवकों पर पुलिस ने मुलायम सिंह यादव के आदेश पर गोलियां चलाई थीं। इस भयावह गोलीकांड में 40 कारसेवकों की मौत हुई थी। गौर करने वाली बात है कि सरकारी आदेश का पालन करने वाले पुलिसकर्मियों की आंखों में कारसेवकों पर गोली चलाते वक्त आंसू भी देखे गए। 2 नवंबर के गोलीकांड से पहले 30 अक्टूबर को भी कारसेवकों पर गोलियां चलाई गई थी और उसमें 11 कारसेवक मारे गए थे।
रामधुन करते जा रहे कारसेवकों पर चलवाई गई गोली
2 नवंबर 1990 की घटना को पत्रकार महेंद्र त्रिपाठी ने अपनी आंखों से देखा। उस दौरान उन्हें भी मारे गए कारसेवकों के बीच लेटकर ही खुद की जान बचानी पड़ी थी। यहां तक सुरक्षाबल के लोग उन्हें मृत समझकर गाड़ी में भी डालने लगे थे, तब उन्होंने उठकर बताया कि वह जिंदा है। महेंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि 2 नवंबर 1990 के दिन मुलायम सिंह की सरकार थी। उन्होंने कारसेवकों को कहा था कि 'परिंदा भी पर नहीं मारेगा।' इस डायलॉग को वीएचपी और कारसेवकों ने काफी चैलेंज के रूप में लिया। लाखों की संख्या में कारसेवक अयोध्या में जमा हो गए। सभी प्रांतों से लोग वहां पहुंचे। अशोक सिंघल, साध्वी ऋतंभरा, उमा भारती और विनय कटियार के नेतृत्व में कारसेवकों का हुजूम कारसेवकपुरम के पास से गुजरता हुआ दिगंबर अखाड़े तक पहुंचा। यहीं पर गोलीबारी की गई। सभी कारसेवक रामधुन करते जा रहे थे। गोली चलने के बाद कई कारसेवक वहां पर शहीद हो गए। इसमें कोलकाता के हीरालाल कोठरी के दोनों बेटे राम कुमार कोठारी और शरद कुमार कोठारी भी शहीद हुए थे। इसके अलावा अन्य जगहों के कारसेवक भी उसमें शहीद हुए थे। हनुमानगढ़ी चौराहे के पास भी भारी संख्या में लोग गोलियों का शिकार हुए।
हेलीकॉप्टर से भी चल रही थी गोलियां, जान बचाने के लिए शवों के बीच लेट गए
महेंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि वह फोटो खींचते हुए गुंबद के पीछे तक पहुंच गए। वहां पर भी गोलीबारी चल रही थी। ऊपर एक हेलीकॉप्टर भी मंडरा रहा था। लोग कह रहे थे कि इसमें मुलायम सिंह बैठे हैं और गोली चलवा रहे हैं। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था। बाद में पता लगा कि अधिकारी उस हेलीकॉप्टर के जरिए वहां के हालात जान रहे थे। हालांकि गोलियां ऊपर से भी चल रही थी। मेरे(महेंद्र त्रिपाठी) अगल-बगल के कारसेवक भी ऊपर से हो रही गोलीबारी में शहीद हो गए। इसके बाद महेंद्र वहीं पर डरकर लेट गए। सीआरपीएफ के जवान जब कारसेवकों के शवों को गाड़ीं में फेंककर भरने लगे तो उन्होंने महेंद्र को भी गाड़ी में भरने का प्रयास किया। हालांकि उन्होंने उठकर बताया कि वह जिंदा हैं और फोटोग्राफर हैं।
जान बचाने के लिए सरयू में कूद गए थे कई कारसेवक
महेंद्र त्रिपाठी के द्वारा अपना परिचय दिए जाने पर सीआरपीएफ के जवानों ने उन्हें सलाह भी दी कि गोली किसी को देखकर नहीं चलती है वह किसी को नहीं पहचानती आप किसी तरह से यहां से निकल जाए। इसके बाद महेंद्र वापस अपने आवास रायगंज चले गए। इस बीच तमाम सरकारी गाड़ियों में भी कारसेवकों के द्वारा आग लगाई गई। उस माहौल को संभालने में सरकार नाकाम हो गई थी। इससे पहले 30 अक्टूबर को भी यही कारसेवक रामधुन करते हुए बाबरी मस्जिद के गुंबद पर चढ़ गए थे। वहां जय श्री राम का घोष लगाया गया था। वहीं कारसेवक जब 2 नबंवर को दोबारा जा रहे थे तो दिगंबर अखाड़ा के बाद गोली के जरिए उन्हें मौत की नींद सुला दिया गया। इसमें अयोध्या के भी 4-5 लोग मारे गए थे। कारसेवक उस समय हर गली में मौजूद थे। सरयू पुल पर भी कई कारसेवक मौजूद थे और कई कारसेवक जान बचाने के लिए सरयू में कूद गए। बाद में उनके शव निकाले गए।