Exclusive: रुड़की-हैदराबाद के इंजीनियरों की रिसर्च,एवरेज रिक्टर से डबल आए भूकंप तो भी राम मंदिर का कुछ ना होगा

राम मंदिर निर्माण के लिए कर्नाटक से अयोध्या तक 17 हजार ग्रेनाइट पत्थरों के स्लैब मंगाए गए हैं। इन स्लैब्स में एक खास तकनीक से होल्स कर इन्हें एक दूसरे से जोड़ा गया है। इस तरह राम मंदिर के चबूतरे की 7 लेयर बनाई जा रही हैं। 

Asianet News Hindi | Published : May 2, 2022 7:56 AM IST / Updated: May 05 2022, 08:46 AM IST

नई दिल्ली। भगवान राम (Ram Mandir) का भव्य मंदिर अयोध्या (Ayodhya) में बन रहा है। मंदिर के गर्भगृह को दिसंबर, 2023 तक पूरा करने का लक्ष्य है। ताकि श्रद्धालु नए मंदिर में रामलला के दर्शन कर सकें। वहीं मंदिर परिसर के बाकी निर्माण कार्य को 2024 के अंत तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। मंदिर की उम्र 1000 साल मानकर इसका निर्माण कार्य किया जा रहा है, जिसमें सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टिट्यूशन रुड़की और जियोफिजिकल स्टडी रिसर्च लैब हैदराबाद के इंजीनियर्स ने काफी मदद की है। मंदिर निर्माण की तकनीक और कामकाज के बारे में और अधिक जानने के लिए एशियानेट न्यूज (Asianet News) के राजेश कालरा ने राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेन्द्र मिश्रा से बातचीत की। 

नृपेन्द्र मिश्रा के मुताबिक, मंदिर के लिए 17 हजार ग्रेनाइट पत्थरों को कर्नाटक से अध्योध्या लाया गया। जब ये पत्थर आ गया तो अब एक नई समस्या थी कि इसमें जो अरेंजमेंट्स करने होते हैं, वो कैसे होंगे? इसकी जो ड्राइंग या डिजाइन है वो कुछ इस तरह से करनी पड़ती है कि ग्रेनाइट में होल्स बनाने पड़ते हैं। ये होल्स एक साइज के और कुछ इस तरह से होते हैं कि ये एक-दूसरे पर पूरी तरह फिट रहें। ऐसा इसलिए किया जाता है कि अगर कभी भूकंप आ जाए तो क्या होगा, 500 साल में भूकंप आए तो क्या होगा? 

इन दो संस्थानों ने दिया ग्रेनाइट में होल्स बनाने का सुझाव : 
मिश्रा के मुताबिक, इसके लिए सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टिट्यूशन रुड़की और जियोफिजिकल स्टडी रिसर्च लैब हैदराबाद ने हमें ग्रेनाइट के पत्थरों पर होल्स बनाने का सुझाव दिया। बता दें कि राम मंदिर के निर्माण में पत्थरों को जोड़ने के लिए सीमेंट जैसे मैटेरियल का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। सभी पत्थरों पर नंबरिंग की गई है, इसके मुताबिक ही पत्थरों को होल्स में फिट किया जाएगा। इन होल्स को मजबूती देने के लिए इन्हें तांबे की पत्तियों से जोड़ा जा रहा है। 

भूकंप में भी मजबूती से खड़ा रहेगा राम मंदिर :  
नृपेन्द्र मिश्रा के मुताबिक, भूकंप में भी मंदिर टस से मस न हो, इसके लिए हमने नेपाल से लेकर 500 किलोमीटर दूर तक भूकंप की स्टडी की। इसमें रिक्टर स्केल पर मिनिमम और मैक्सिमम तीव्रता को बारीकी से देखा गया। राम मंदिर के स्ट्रक्चर को इस तरह तैयार किया गया है कि ये रिक्टर स्केल पर भूकंप की दोगुनी तीव्रता को भी आसानी से झेल सकता है। मंदिर के लिए लाए गए ग्रेनाइट पत्थर से 7 लेयर बननी हैं, जिनमें से 3 लेयर बन चुकी हैं।

जानें कब आया राम मंदिर का फैसला और कब बना ट्रस्ट : 
सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर, 2019 को अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का हक मानते हुए फैसला मंदिर के पक्ष में सुनाया। इसके साथ ही चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की विशेष बेंच ने राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए अलग से ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया। इसके बाद 5 फरवरी, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में ट्रस्ट के गठन का ऐलान किया। इस ट्रस्ट का नाम 'श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र' रखा गया।

कौन हैं नृपेन्द्र मिश्रा : 
नृपेन्द्र मिश्रा यूपी काडर के 1967 बैच के रिटायर्ड आईएएस अफसर हैं। मूलत: यूपी के देवरिया के रहने वाले नृपेन्द्र मिश्रा की छवि ईमानदार और तेज तर्रार अफसर की रही है। नृपेंद्र मिश्रा प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव भी रह चुके हैं। इसके पहले भी वो अलग-अलग मंत्रालयों में कई महत्वपूर्ण पद संभाल चुके हैं। मिश्रा यूपी के मुख्य सचिव भी रह चुके हैं। इसके अलावा वो यूपीए सरकार के दौरान ट्राई के चेयरमैन भी थे। जब नृपेंद्र मिश्रा ट्राई के चेयरमैन पद से रिटायर हुए तो पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन (PIF) से जुड़ गए। बाद में राम मंदिर का फैसला आने के बाद सरकार ने उन्हे अहम जिम्मेदारी सौंपते हुए राम मंदिर निर्माण समिति का अध्यक्ष बनाया। 

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