रामपुर में भाजपा ने किया आजम खां का किला नेस्तनाबूद, इन 5 प्वाइंट में समझिए हार के कारण

यूपी के रामपुर उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी आकाश सक्सेना ने सपा प्रत्याशी आसिम रजा को हराकर जीत हासिल की है। रामपुर उपचुनाव में भाजपा और सपा के बीच कांटे की टक्कर थी। वहीं दोनों पार्टियों ने उपचुनाव में जीत हासिल करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी।

रामपुर: उत्तर प्रदेश के रामपुर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा और सपा के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली। जहां एक ओर भाजपा प्रत्याशी आकाश सक्सेना चुनाव मैदान में थे तो वहीं दूसरी ओर सपा प्रत्याशी और आजम खां के करीबी आसिम रजा चुनाव मैदान में उतरे थे। बता दें कि आजम खां यहां से 10 बार विधायक रहे हैं। वहीं हेट स्पीच मामले में सजा होने और विधायकी जाने के बाद आजम के परिवार से कोई चुनाव मैदान में नहीं उतरा था। वहीं भाजपा आजम के किले में सेंध लगाने में कामयाब हो गई। रामपुर विधानसभी सीट पर उपचुनाव में बड़ा उलटफेर हुआ। वहीं भाजपा के लिए यह जीत काफी मायने रखती है। क्योंकि रामपुर को सपा के दिग्गज नेता आजम खां का सबसे मजबूत दुर्ग माना जाता है। इन 5 प्वाइंट्स में समझिए कि आखिर अपने ही गढ़ से आजम खां को हार का सामना क्यों करना पड़ा।

1- जातीय समीकरण- पसमांदा मुसलमान
बता दें कि रामपुर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में मुस्लिमों की भूमिका बेहद अहम रही। यहां से करीब 3.80 लाख मतदाताओं में से 55 प्रतिशत मतदाता मुस्लिम समुदाय से है। इनमें से सबसे ज्यादा पसमांदा मुसलमान है। इन समीकरणों को देखते हुए बीजेपी ने मुस्लिम नेताओं को चुनाव के प्रचार के लिए मैदान में उतारा था। रामपुर शहर विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव के प्रचार के लिए बीजेपी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी पहुंचे थे। इस दौरान नकवी ने भाजपा प्रत्याशी आकाश सक्सेना को जिताने की अपील की थी। ऐसे में भाजपा ने बिना भेदभाव के विकास के मुद्दे पर जोर दिया। वहीं बीजेपी की तरफ से नवंबर, 2022 में ही रामपुर में अल्पसंख्यक लाभार्थी सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इस सम्मेलन के जरिए भाजपा का पूरा फोकस पसमांदा मुसलमान पर था। ऐसे में भाजपा की इस रणनीति से सपा को हार का सामना करना पड़ा। बता दें कि यानी पसमांदा मुसलमान ने उन्हें भी भाजपा को वोट दिया। पूर्व केंद्रीय मंत्री नकवी पसमांदा मुसलमानों के बाहुल्य वाले क्षेत्रों में ‘खिचड़ी पंचायत’ कर माहौल को अपने पक्ष में करने की कोशिश की थी।

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2- आजम के करीबियों ने थामा भाजपा का दामन
हेट स्पीच मामले में खाली हुई सीट पर हुए उपचुनाव के दौरान आजम खां के विरोधी ही नहीं बल्कि उनके करीबी नेता भी बीजेपी के समर्थन में खुलकर खड़े हुए थे। जिस कारण से सपा के लिए चुनौती और अधिक बढ़ गई थी। आजम खान के निजी मीडिया प्रभारी फसाहत अली खां उर्फ शानू के अलावा कई करीबी सपा नेताओं ने भाजपा ज्वाइन कर ली। बता दें कि उपचुनाव के लिए वोटिंग में प्रचार अभियान तेज होते ही नाराज नेता भी पाला बदलने लगे थे। इस उपचुनाव से पहले सपा और आजम खान को बड़ा झटका लगा था। भाजपा में शामिल होने वाले कार्यकर्ताओं ने कहा कि समाजवादी पार्टी में उन्हें सम्मान नहीं मिला और इसलिए वह अब बीजेपी में शामिल हो रहे हैं। अपनों की नाराजगी दूर नहीं कर पाने के कारण सपा को यहां से हार का सामना करना पड़ा। आजम के करीबियों के भाजपा में शामिल होने से पार्टी के वोटबैंक पर इसका सीधा असर पड़ा है। वहीं भाजपा भी आजम के करीबियों में सेंधमारी करने में कामयाब रही।

3- आजम खां के घर से नहीं था प्रत्याशी
बता दें कि वर्ष 1977 के बाद यह पहला मौका है जब आजम खां या उनके परिवार का कोई भी सदस्य रामपुर विधानसभा सीट चुनाव मैदान में नहीं उतरा है। सपा ने आजम खां की पत्नी डॉ. तंजीन फातिमा और उनकी बहू को टिकट नहीं दिया था। बल्कि सपा ने आजम खां के करीबी आसिम रजा पर विश्वास जताया था। 1977 से लगातार आजम खां या उनके परिवार का कोई सदस्य इस सीट से चुनाव लड़ रहा था। वर्ष 1992 से 2022 तक आजम खां ने 12 विधानसभा चुनाव लड़े हैं। जिनमें से 10 चुनावों में उन्हें जीत मिली है। वहीं दो चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था। वहीं साल 2019 के आजम खां के सांसद बनने के बाद हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी तजीन फातिमा ने चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी। यह पहला मौका था जब पिछले 45 सालों में आजम परिवार से कोई रामपुर सीट से चुनाव नहीं लड़ा था। इस दौरान आजम खां और उनके परिवार पर साल 2019 से जितने भी मुकदमे हुए हैं उनमें से ज्यादातर मुकदमे भाजपा प्रत्याशी आकाश सक्सेना ने ही कराए हैं।

4- बसपा व कांग्रेस ने उम्मीदवार नहीं उतारा
वहीं रामपुर उपचुनाव में बसपा और कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी नहीं उतारे थे। ऐसे में सीधी लड़ाई भाजपा और सपा के बीच थी। इस चुनाव में सपा को मिली हार से यह साफ जाहिर है कि रामपुर उपचुनाव में बसपा और कांग्रेस की गैरमौजूदगी ने सीधे तौर पर भाजपा को फायदा पहुंचाया है। ऐसे में दलित मतदाताओं ने भी भाजपा पर अपना भरोसा जताया है। कई बार बसपा प्रमुख मायावती सपा अध्यक्ष पर साफतौर पर निशाना साधते भी नजर आई हैं कि सपा पार्टी भाजपा को हराने में सक्षम नहीं है। वहीं इसी का फायदा सीधे तौर पर भाजपा को पहुंचा है। अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिए दलित और मुस्लिम समीकरण को साधने की भाजपा की कोशिश रंग लाई है। बसपा और कांग्रेस प्रत्याशी के मैदान में नहीं उतरने से सपा को नुकसान और बीजेपी को लाभ मिला है। वहीं कांग्रेस का उपचुनाव को लेकर कहना था कि वो फिलहाल अपने संगठन को मजबूत बनाकर निकाय चुनाव पर फोकस कर रही है। 

5- वोटर्स में दिखा डर, मतदान प्रतिशत भी रहा काफी कम
बीते 5 दिसंबर को हुए रामपुर उपचुनाव में सबसे कम वोटिंग हुई। इस सीट पर केवल 33.94 फीसदी वोटिंग हुई। वहीं सपा विधायक अब्दुल्ला आजम ने कम वोटिंग को लेकर कहा कि चुनाव आयोग और जिला प्रशासन की नाकामी के कारण ऐसा हुआ है। मतदान के दौरान सपा ने भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा था कि वह लोगों को मतदान नहीं करने दे रही है। सियासी खींचतान के बीच मतदान के दौरान तोड़फोड़ और गुंडागर्दी करने की भी बात सामने आई थी। जिस कारण वोटर्स में डर दिखा और इसका सीधा असर मतदान पर पड़ा। बता दें कि इलेक्शन कमिशन के अनुसार, रामपुर उपचुनाव में मात्र 31.22 प्रतिशत मतदान हो पाया था। वहीं पोलिंग बूथ के बाहर तोड़फोड़ का भी आरोप लगाया गया था। रामपुर विधानसभा शहर के अंतर्गत 454 बूथ बनाए गए थे। वहीं 34 सेक्टर मजिस्ट्रेट और 6 जोनल मजिस्ट्रेटों को तैनात किया गया था। इन सबके बावजूद भी बूथ कैप्चरिंग मतदाताओं में डर और तोड़फोड़ की घटनाएं सामने आईं थीं।

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