कोरोना वायरस के जीन में पाया जाने वाले 29 प्रोटीनों में से 11 को फाइटोकेमिकल फार्च्यूनलिन निष्क्रिय कर देता है। यह यौगिक गोजिवादी क्वाथ में काफी प्रचुर मात्रा में पाया जा रहा है।
अनुज तिवारी
वाराणसी: वानस्पतिक रसायनों का यौगिक ‘फाइटोकेमिकल फार्च्यूनलिन’ कोरोना वायरस के जीन में पाए जाने वाले 29 प्रोटीन समूहों में से 11 को निष्क्रिय कर देता है। यह रासायनिक यौगिक गोजिवादी क्वाथ में प्रचुर मात्रा में पाया गया है। यही कारण है कोरोना काल में जिन मरीजों को यह काढ़ा दिया गया था, वे सभी शत-प्रतिशत ठीक हो गए थे। बीएचयू एवं जर्मनी के आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के विज्ञानियों की संयुक्त टीम ने गोजिवादी क्वाथ की सफलता के रहस्य पर शोध कर यह तथ्य सामने लाया है। यह शोध प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘कंप्यूटर्स इन बायोलाजी एंड मेडिसिन’ में प्रकाशित हुआ है।
कोरोना काल में बीएचयू के आयुर्वेद संकाय के शरीर क्रिया विज्ञान के सहायक आचार्य वैद्य सुशील कुमार दूबे व अन्य चिकित्सकों ने मरीजों को गोजिवादी क्वाथ दिया था। इससे शत-प्रतिशत मरीज ठीक हुए थे। तब इस काढ़े की ओर आधुनिक चिकित्सा विज्ञानियों का ध्यान गया, तो इसकी सफलता का रहस्य जानने को शोध शुरू हुआ। बीएचयू महिला महाविद्यायल के ही जैव सूचना विज्ञान के डा. राजीव मिश्र के नेतृत्व में विज्ञानियों की एक टीम ने शोध में फार्च्यूनलिन के चमत्कार को देखा। यह वानस्पतिक रासायनिक यौगिक सिर्फ कोरोना वायरस को निष्क्रिय नहीं करता, बल्कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को भी मजबूत बनाता है। यह कोविड के सभी प्रतिरूपों पर प्रभावी है।
आयुर्वेदिक काढ़ा में मौजूद हैं 16 कंटेंट
डॉ. सुशील कुमार दुबे ने कहा आयुर्वेद की युक्ति पूर्ण रूप से मुक्ति। प्रधानमंत्री जब आयुर्वेद अपनाने की बात करते हैं तो पूरा देश उनको सुनता है। उस स्थिति में हमारा काढ़ा अहम हो जाता है। गोझीवाडी क्वाथ पर रिसर्च के बाद पता चला कि इस आयुर्वेदिक काढ़ा में कुल 16 कंटेंट हैं। स्टडी में देखा गया कि एक साइट्रस और दूसरी फाइकस फैमिली मिलती है। फाइकस में अंजीर का पौधा और साइट्रस फैमिली में नींबू का पौधा था। इन्ही पर शोध हुआ। नींबू का उपयोग लोगों ने किया और कोविड से राहत दिलाया। खजूर और ताड़ी का उपयोग करते हैं तो टीबी जैसे रोग से बच सकते हैं। तो खजूर, ताड़ी के बाद अंजीर और साइट्रस फैमिली रोगों से बचाने का काम कर रही है।काढ़ा कैसे उपयोग करना है उसे अगल-बगल के आयुर्वेद एक्सपर्ट से पूछ सकते हैं। यदि, चार भाग पानी मिलाते हैं। तीन भाग पानी खत्म हो जाए और एक भाग बचे उसका उपयोग सुबह शाम कर सकते हैं। औषधि बनाने के पांच तरीका होते हैं। पहला प्लांट का रस, दूसरा टैबलेट या चटनी, तीसरा काढ़ा, चौथा प्लांट को भिगोकर सुबह पीएं और अंतिम तरीका डिप टी की तरह से इस्तेमाल कर लिए। इसमें तीसरा तरीका काढ़े का होता है जो ज्यादा प्रभावी होता है।
इम्युनिटी बूस्टर के तौर पर काम कर रहा था काढ़ा
डॉ. राजीव मिश्रा ने कहा कि बीएचयू अस्पताल के आयुर्वेद विभाग में कोविड संक्रमण के दौरान रोगियों को दे रहे थे। यह एक पारंपरिक दवा है। कैसे काम करता है इसके मॉलिक्यूल मैकेनिज्म के बारे में सोच रहे थे। अंदर जो भी अवयव या घटक है उनको बाहर निकाला। हमने सौ से ज्यादा मॉलिक्यूल को निकाला। फिर इसकी स्टडी के लिए हमें कंप्यूटर की जरूरत पड़ी। उसके माध्यम से काम किया गया। सार्स कोविड 29 अलग प्रकार के प्रोटीन से बना होता है। जब स्टडी की गई, तो दवा का एक घटक 11 तरह के प्रोटीन का खात्मा करता है। दूसरी खास बात यह है कि काढ़ा इम्युनिटी बूस्टर के तौर पर काम कर रही थी। यदि हम कोरोना के ज्यादा से ज्यादा प्रोटीन को समाप्त कर पाएंगे, तो रिकवरी जल्द होगी। मानव कोशिकाओं में इसकी और सूक्ष्म स्टडी की जाए तो यह कोरोना के कारगर दवा के रूप में काम कर सकता है।
शोध टीम के विज्ञानी
डा. राजीव मिश्र (जैव सूचना विज्ञानी, एमएमवी बीएचयू), शिवांगी अग्रवाल (जैव सूचना विज्ञानी, एमएमवी बीएचयू), डा. एकता पाठक (मधुमेह और मोटापा संस्थान, हेल्महोल्ट्ज जेंट्रम, जर्मनी), डा. विश्वंभर सिंह (आइएमएस, बीएचयू), डा. रामेश्वर नाथ चौरसिया (आइएमएस, बीएचयू), प्रो. नीलम अत्रि (एमएमवी बीएचयू), विभा मिश्रा (एमएमवी बीएचयू), अफीफा परवीन (एमएमवी बीएचयू), डा. सुनील कुमार मिश्र (आइआइटी बीएचयू), अश्विनी कुमार चौधरी (वनस्पति विज्ञान विभाग, बीएचयू)।
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